UP News: पानी की किल्लत से जूझ रहे उत्तर प्रदेश के एक गांव को आजादी के 76 साल बाद राहत मिली है और लोग खुशी से झूम रहे हैं. इसको लेकर गांव के एक शख्स ने खुशी जताई और कहा कि हम सभी लोग पानी खरीदने के लिए अपने बजट का आधा हिस्सा खर्च कर रहे थे. उन्होंने आगे कहा कि उचित योजना के अभाव के चलते करीब एक दशक पहले बीच में ही काम रोक दिया गया था. गांव वालों ने कहा कि जल जीवन मिशन में भी गांव को शामिल नहीं किया गया था. वह बोले कि अब पानी मिला है तो लग रहा है मानो जीवन मिल गया हो. यह पहली गर्मी है जब हम पानी की चिंता से पूरी तरह से मुक्त हैं.
यहां बात हो रही है उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर की पहाड़ियों पर स्थित लहुरिया दाह गांव की. यहां के लोगों को आजादी के बाद पहली बार नल से पानी मिला है यानी यहां पर हली बार पाइप से पानी की सप्लाई की गई है. इस गांव में करीब 1200 लोग रहते हैं और ये सभी अब तक गांव के पास के झरने के सहारे ही जीवन जी रहे थे. दिक्कत तो तब होती थी जब गर्मी आती थी. क्योंकि गर्मियो में ये झरना सूख जाता है. इस पर गांव में पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए टैंकर से पानी पहुंचाया जाता था और गांव वालों को इसके लिए काफी पैसा भी खर्च करना पड़ता था लेकिन पिछले साल 31 अगस्त 2023 को गांव में नल से पानी की सप्लाई शुरू हो गई थी. इसके बाद गांव में ये पहली गर्मी है जब लोगों को पानी को लेकर चिंता नहीं है. मीडिया सूत्रों के मुताबिक तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट दिव्या मित्तल ने पाइपलाइन से पानी की सप्लाई शुरू कराई थी.
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बता दें कि मध्य प्रदेश सीमा पर मिर्ज़ापुर जिला मुख्यालय से 49 किमी दूर स्थित लहुरिया दाह में कोल, धारकर, यादव, पाल और केशरवानी समुदायों की मिश्रित आबादी निवास करती है औऱ लहुरिया दाह, देवहार ग्राम पंचायत की सीमा में आता है. गांव के लोगों ने बताया कि पानी की सप्लाई के लिए एक बड़ा संघर्ष करना पड़ा है. इसके बाद इस गांव के लिए अलग से एक प्रस्ताव शासन को भेजा गया, जिसे मंजूरी मिल गई. इसी के बाद 31 अगस्त 2023 को गांव में नल से पानी की सप्लाई शुरू हो गई थी. गांव वालों ने बताया कि गांव में एकमात्र कुआं है जिसका उपयोग वर्षा जल संचयन के लिए किया जाता है तो वहीं जानवरों के लिए पानी इकट्ठा करने के लिए एक कृत्रिम बांध बनाया गया है.
गांव वालों ने बताया कि पानी की सप्लाई के लिए 4.87 करोड़ रुपये से अधिक की पिछली परियोजना के सफल न होने के बाद तत्कालीन जिला अधिकारी दिव्या मित्तल से मुलाकात की. इसके बाद उन्होंने गम्भीरता से इस समस्या को लिया और नए तरीके से प्रयास शुरू किया. इस पर 10 करोड़ रुपये से अधिक की नई परियोजना को मंजूरी मिल गई. इसके बाद स्थानीय प्रशासन ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के भूभौतिकीविदों और अन्य तकनीकी विशेषज्ञों से मदद मांगी क्योंकि ये गांव कठोर चट्टानों की सतह पर स्थित है. इसलिए पानी की पाइपलाइन ले जाने के लिए उपयुक्त तकनीक का पता लगाने के लिए जल जीवन मिशन, यूपी जल निगम, नमामि गंगे के अधिकारियों और मुख्य विकास अधिकारी की एक संयुक्त टीम का गठन किया गया. इसके बाद पानी की सप्लाई में सफलता मिल सकी.
गांव के लोग बताते हैं कि लहुरिया दाह तक पानी की पाइपलाइन लाने का काम इतना कठिन था कि इस पर पहले काम किया गया लेकिन फिर एक दशक पहले इसे बंद कर दिया गया था. गांव के एक दूधिया बताते हैं कि जब वह दूध बेचने के लिए दूसरे मैदानी इलाकों के गांव में जाते थे तो कंटेनर में पानी लेकर वापस आते थे. वह बताते हैं कि पिछले 25-30 सालों से गांव में टैंकरों से ही पानी उपलब्ध कराया जा रहा था लेकिन इसके लिए हम गांव वालों को अच्छा-खासा रुपया भी खर्च करना पड़ता था. अक्सर पानी को लेकर लोगों में तकरार हो जाती थी, लेकिन अब सुकून है.
-भारत एक्सप्रेस
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