दिसंबर भले साल के अंत का संकेत होता हो लेकिन इस बार ये महीना दुनिया भर में भारत की बढ़ती ताकत के नए अध्याय की शुरुआत का संदेश लेकर आया है। एक दिसंबर को भारत ने अगले एक साल के लिए औपचारिक रूप से जी-20 समूह की अध्यक्षता संभाल ली। अब अगले एक साल के दौरान देश में 55 अलग-अलग जगहों पर जी-20 देशों की 200 से ज्यादा बैठकें होंगी यानी साल के लगभग हर दूसरे दिन दुनिया की शीर्ष 19 अर्थव्यवस्थाएं देश में किसी-न-किसी मंच पर भारत की अध्यक्षता में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएंगी।
यह पहली बार होगा कि जी-20 का मेजबान देश 50 से ज्यादा शहरों में बैठक करेगा। साल 2023 की दूसरी छमाही में सदस्य देशों की सरकार के प्रमुखों का शिखर सम्मेलन भी होगा जो भारत में आयोजित पिछले बहुपक्षीय शिखर सम्मेलनों से गुणात्मक रूप से अलग होगा। पिछले शिखर सम्मेलनों में से किसी में भी दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एक स्थान पर एकत्रित नहीं हुई थीं और न ही इनमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी सदस्यों का प्रतिनिधित्व था। इस लिहाज से जी-20 शिखर सम्मेलन पिछले 75 साल के स्वतंत्र भारतीय इतिहास में अपनी तरह का पहला शिखर सम्मेलन भी होगा।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग की दिशा में जी-20 एक प्रमुख मंच है, जो वैश्विक जीडीपी का 85 फीसद, दुनिया भर के कारोबार का 75 फीसद से ज्यादा और दुनिया की दो तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। भारत को इसकी अध्यक्षता मिलना ना सिर्फ बड़ी बात है बल्कि अपनी सोच को सामने रखने का बड़ा अवसर भी है। खास बात यह है कि भारत को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ जुड़कर अपने राष्ट्रहित को साधने का मौका भी मिलेगा। इस प्रतिष्ठित कुर्सी को संभालते ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपनी पहचान के अनुसार बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में जता दिया कि भारत दुनिया की अगुवाई के लिए तैयार है। ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ का मंत्र दुनिया को प्रधानमंत्री का आश्वासन है कि भारत एकता की सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा।
प्रधानमंत्री के इस बयान पर खूब बातें हुई हैं, लेकिन वैश्विक राजनीति के इस अत्यंत महत्वपूर्ण मोड़ पर खुद प्रधानमंत्री का वैश्विक कद और न्यू वर्ल्ड ऑर्डर में भारत की बदली भूमिका भी चर्चा के कई आयाम खोलती है। इसमें कोई दो-राय नहीं है कि आज प्रधानमंत्री मोदी न केवल भारत को सफल नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं, बल्कि प्रमुख रणनीतिक मुद्दों पर दुनिया को भी अपनी सोच से प्रभावित कर रहे हैं। भारत के लिए यह निश्चित ही वैश्विक प्रभुत्व का एक गौरवशाली दौर है।
बड़े लोकतंत्रों के बीच अगर भारत कोविड-19 महामारी से निपटने में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला देश रहा है तो इसकी निर्णायक वजह लॉकडाउन और मुफ्त राशन से लेकर टीकाकरण पर सही समय पर लिए गए सटीक निर्णय हैं। जहां कई सारे देश अपनी कुछ लाख की आबादी को भी ठीक से नहीं संभाल पाए, वहीं प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व भारत के 80 करोड़ लोगों की ढाल बना। आबादी के पैमाने पर ही तुलना कर लें, तो तमाम सख्ती बरतने के बावजूद चीन के आज के हालात भारत की सफलता को और सराहनीय बनाते हैं। बात केवल जीवनरक्षा की ही नहीं है, महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था का प्रबंधन भारतीय नेतृत्व की एक और कुशलता के रूप में दुनिया के सामने आया है। इसका हासिल ये भी है कि भारत आज दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है। आर्थिक नीतियों के साथ ही आज भारत की विदेश नीति की भी दुनिया में धमक बढ़ी है। इंडिया फर्स्ट की नीति पर चलता आज का भारत एक ही समय में रूस और अमेरिका जैसे धुर विरोधियों की ऐसी जरूरत है जिससे मुंह मोड़ना इन दोनों महाशक्तियों के लिए भी संभव नहीं है। इसी तरह यूक्रेन युद्ध ने भी बताया है कि जियो पॉलिटिक्स में भारत की हैसियत अब निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है। स्वास्थ्य, राशन वितरण, आर्थिक समावेश, विदेश और सामरिक नीति के अलावा भी ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां नए भारत के पास सफलता का अपना मॉडल है। आजादी के बाद किसी एक समय में राष्ट्रीय हितों को लेकर ऐसी निश्चिंतता, ऐसा विश्वास मुझे तो दिखाई नहीं पड़ता।
बेशक जी-20 की अध्यक्षता चुनौतीपूर्ण दायित्व है लेकिन समूचे विश्व में पथ-प्रदर्शक के तौर पर स्वीकार्यता भारत की राह को तुलनात्मक रूप से आसान करेगी। भारत को अध्यक्षता ऐसे समय में मिली है जब दुनिया आर्थिक कठिनाइयों और वैश्विक मंदी के एक ट्रेंड का सामना कर रही है। इसके साथ ही अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ और जी-20 के बाकी सदस्य देशों के बीच राजनीतिक ध्रुवीकरण भी लगातार बढ़ रहा है। जी-20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन और स्वास्थ्य पर केन्द्रित सत्रों में हिस्सा लेंगे। इसके साथ ही प्रधानमंत्री वैश्विक अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, कृषि जैसे मुद्दों पर भी वैश्विक नेताओं से चर्चा करेंगे। ये वो तमाम क्षेत्र हैं जो वर्तमान समय की बड़ी चुनौतियां हैं। इन चर्चाओं का उद्देश्य दीर्घकालिक आर्थिक विकास हासिल करने के साथ ही सभी के लिए भोजन, उर्वरक और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। एक बड़ा लक्ष्य जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में भी रहने वाला है। जलवायु परिवर्तन पर IPCC की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करने के लिए 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करना ही होगा। इसे लेकर पश्चिमी देशों के अब तक के निराशाजनक रुख को बदलने में जी-20 के अध्यक्ष के रूप में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होगी क्योंकि भारत ने खुद इस दिशा में विकसित अर्थव्यवस्थाओं को आईना दिखाने वाली उपलब्धि हासिल की है। जर्मन वॉच, न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट तथा क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल ने इसी महीने प्रकाशित जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स–सीसीपीआई 2023) में जलवायु परिवर्तन के प्रदर्शन के आधार पर भारत को विश्व के शीर्ष 5 देशों में एवं जी-20 देशों में सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत ने दो स्थानों की छलांग लगाई है और अब वह आठवें स्थान पर है। इन सबसे ऊपर भारत आतंकवाद के मुद्दे पर चीन और पाकिस्तान को कड़ा संदेश भी दे सकता है। जी-20 अध्यक्ष के तौर पर अपनी मेजबानी में सदस्य देशों को इस मुद्दे पर एकजुट करने का भारत के पास ये सुनहरा मौका रहेगा।
वैसे जी-20 की अध्यक्षता 2022 में ही भारत में आने वाली थी, लेकिन यूक्रेन और ताइवान के हालात के चलते भारतीय नेतृत्व को राहत देते हुए इसे 2023 में स्थानांतरित कर दिया गया। लेकिन वो चुनौती अब भी बरकरार है। यूक्रेन और ताइवान संघर्ष से जुड़ी दो महत्वपूर्ण शक्तियां – अमेरिका और चीन का नेतृत्व घरेलू मोर्चों पर संकट में घिरा है। जो बाइडेन अपने रिपब्लिकन विरोधियों से जूझ रहे हैं, तो कोविड-जीरो नीति को लेकर शी जिनपिंग की छवि अपने देश में पहली बार सार्वजनिक रूप से खलनायक की बनती दिख रही है। जाहिर है अपनी राहें आसान करने के लिए दोनों ही नेता यूक्रेन और ताइवान मसले पर नरमी दिखाने के लिए आसानी से तैयार नहीं होंगे। इसका मतलब ये होगा कि युद्ध की आशंकाओं को टालने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को त्वरित कूटनीति को अमल में लाना होगा।
हालांकि जी-20 के अध्यक्ष के तौर पर भारत के सर्वोच्च कार्यकारी प्रतिनिधि के रूप में प्रधानमंत्री इस दिशा में किस तरह आगे बढ़ेंगे, इसका संकेत भी उन्होंने खुद दिया है। ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ की थीम को साकार करने के लिए प्रधानमंत्री ने आपस में लड़कर नहीं, बल्कि मिलकर काम करने की सलाह दी है। हमने देखा है कि यूक्रेन को लेकर ‘ये समय युद्ध का नहीं है’ वाला उनका बयान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब सराहा गया है। यहां तक कि बाली घोषणापत्र में भी शब्दों का मामूली हेरफेर कर इस बयान की भावना को जगह दी गई है। सवाल बस इतना है कि क्या मानवता को समग्र रूप से लाभ पहुंचाने की प्रधानमंत्री मोदी की मंशा को फलीभूत करने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अपनी मूलभूत मानसिकता में बदलाव कर साथ आने के लिए प्रेरित होंगी?
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