नज़रिया

यूक्रेन की लड़ाई, अमेरिकी चुनाव पर आई

युद्ध को अक्सर समस्या का समाधान मान लिया जाता है, लेकिन कई बार यही समझ दूसरी नई समस्याओं की जड़ बन जाती है। रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रसंग में अमेरिका के साथ भी ठीक ऐसा ही हुआ है। लड़ाई भले ही इन दोनों देशों में छिड़ी हो, लेकिन इसके बीच में फंस गया है अमेरिका जो ना सीधे-सीधे युद्ध में उतर पा रहा है और ना ही इससे पीछा छुड़ा पा रहा है। दुनिया भर में अपनी चौधराहट बनी रहे या फिर कहीं रूस का दोस्त चीन दुनिया का नया चौधरी ना बन जाए, इस चक्कर में अमेरिका लगातार यूक्रेन को नए-नए हथियार पहुंचा रहा है लेकिन रूस को परास्त करने का उसका मंसूबा सफल नहीं हो पा रहा है। जंग शुरू होने के सोलह महीने बाद भी यूक्रेनी शहरों पर रूस के हमले जारी हैं और इस बात की उम्मीद लगातार कम होती जा रही है कि पश्चिमी देशों की मदद के बल पर यूक्रेन निकट भविष्य में अपने क्षेत्रों को रूस के कब्जे से मुक्त करवा पाएगा।

युद्ध को पहले से ज्यादा आक्रामक और यूक्रेन की क्षमताओं को अधिक मारक बनाने के लिए अमेरिका ने अब उसे अपने अत्याधुनिक अबराम्स टैंक दिए हैं। बेशक अबराम्स की मदद से यूक्रेन अपनी पोजीशन को मजबूत और सैन्य बलों का पुनर्गठन कर सकेगा, पर वास्तविकता यही है कि इसकी मौजूदगी यूक्रेनी सेना के रुख में केवल मनोवैज्ञानिक फर्क ही डाल पाएगी। अव्वल तो अमेरिका ने 31 अबराम्स की आपूर्ति करने की प्रतिबद्धता जताई है, लेकिन यूक्रेन ने यह नहीं बताया कि उसे कितने टैंक मिले हैं। जिस तरह अमेरिकी रक्षा सचिव की ओर से इसे डिलीवरी की पहली खेप कहा जा रहा है, उससे यही समझ आता है कि अभी यूक्रेन को सभी टैंकों की आपूर्ति नहीं की गई है। यानी जो टैंक आए हैं वो युद्ध पर सीमित प्रभाव ही डाल पाएंगे। इसे लेकर अमेरिका की आलोचना भी हो रही है। दूसरी बात यह है कि पहले से ही युद्ध के मैदान में मौजूद जर्मन-निर्मित लेपर्ड-2 और ब्रिटिश-निर्मित चैलेंजर 2एस जैसे दूसरे युद्धक टैंकों की तुलना में अबराम्स अकेले रणनीतिक परिदृश्य में कोई खास बदलाव ला पाएंगे, इसकी संभावना भी कम है।

अमेरिका के शीर्ष वैज्ञानिक और सैन्य पर्यवेक्षक बाइडेन प्रशासन को लगातार इस बात के संकेत दे रहे हैं कि युद्ध क्षेत्र का जिस तरह का भूगोल है, वहां हवाई श्रेष्ठता कायम किए बिना रूस को हराने का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। रूस ने यूक्रेनी सेनाओं और शहरों पर बमबारी करने के लिए अत्याधुनिक ड्रोन और क्रूज़ मिसाइलों का इस्तेमाल किया है, जबकि यूक्रेन की वायु सेना अपने छोटे सोवियत-युग के बेड़े के भरोसे ही है। मान्यता यही है कि अमेरिका समेत पश्चिमी देश यूक्रेन से इस तरह से लड़ने के लिए कह रहे हैं जैसे वे खुद कभी नहीं लड़ेंगे। हवाई श्रेष्ठता हासिल किए बिना अमेरिका कभी युद्ध में शामिल नहीं होता लेकिन वो यूक्रेन से ठीक ऐसा करने की उम्मीद कर रहा है। इससे तो यही लगता है अमेरिका की रणनीति यूक्रेन को लड़ाकर उसकी जीत सुनिश्चित करने की नहीं, बल्कि उसके सैनिकों को लड़ने और मरने के लिए छोड़ देने की है। वैसे हकीकत यह भी है कि खुद अमेरिका को हवाई मदद के बिना जमीनी लड़ाई का ज्यादा अनुभव नहीं है। खाड़ी युद्ध की ही बात करें, तो टैंक तो दूर की बात है, जमीन पर अपना एक सैनिक भी आगे बढ़ाने से पहले अमेरिकी युद्धक विमानों ने हफ्तों तक हजारों उड़ानें भरीं थी और इनसे हजारों टन बम गिराए थे।

बीते सप्ताह वाशिंगटन डीसी के दौरे पर गए यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने भी जमीनी चुनौतियों को देखते हुए अमेरिका से लंबी दूरी की मिसाइलों सहित अन्य सहायता की मांग की थी। इसके जवाब में पेंटागन ने 325 मिलियन डॉलर के सहायता पैकेज की घोषणा की है जिसमें अधिक तोपखाने, गोला-बारूद और टैंक रोधी हथियारों के साथ ही आधुनिक वायु रक्षा प्रणालियां भी शामिल हैं। अमेरिकी मीडिया में ऐसी खबरें हैं कि राष्ट्रपति जो बाइडन ने जेलेंस्की को अमेरिकी सेना सामरिक मिसाइल प्रणाली (एटीएसीएमएस) देने का भी भरोसा दिया है। हालांकि इस बात को आधिकारिक नहीं किया गया है। एटीएसीएमएस को वैरिएंट के आधार पर लगभग 100 और 190 मील की रेंज वाले मोबाइल लॉन्चर से फायर किया जा सकता है। इसके कुछ मॉडल क्लस्टर युद्ध सामग्री ले जाने में भी सक्षम हैं। ये युद्ध सामग्री छोटे बम के रूप में होती है जो विस्फोट होने पर एक बड़े क्षेत्र में बिखर जाती है। ऐसा अनुमान है कि इनकी मदद से यूक्रेन बिना जमीनी लड़ाई लड़े रूसी कब्जे वाले क्षेत्र में सप्लाई लाइन, हवाई अड्डों और रेल नेटवर्क को बाधित कर सकेगा।

अमेरिका हाल ही में यूक्रेन को एफ-16 देने के लिए भी तैयार हुआ है। हालांकि इसका फायदा दिखने में भी अभी लंबा वक्त दिखेगा। एफ-16 उड़ाने वाले यूक्रेनी लड़ाकों के तैयार होने में ही कई महीने लग जाएंगे। हालत यह है कि अभी इसकी बुनियादी शुरुआत के तौर पर होने वाला यूक्रेनी पायलटों का अंग्रेजी भाषा का प्रशिक्षण ही शुरू नहीं हो पाया है। अमेरिकी अधिकारी भी बार-बार चेतावनी दे रहे हैं कि एफ-16, एटीएसीएमएस या एम-1 अबराम्स टैंक से रातों-रात बदलाव नहीं होने जा रहा है क्योंकि ऐसे हथियारों के सटीक प्रभाव की भविष्यवाणी करना चुनौतीपूर्ण होता है।

अनिर्णय की यह स्थिति अमेरिका की घरेलू राजनीति को भी प्रभावित कर रही है। बेनतीजा संघर्ष जारी रहने के कारण जो बाइडेन की अप्रूवल रेटिंग घट रही है और माना जा रहा है कि इसी वजह से बाइडेन ने रूस-यूक्रेन युद्ध में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। लेकिन इसके कारण अमेरिका के वित्तीय साल 2024 के बजट पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। अगले साल राष्ट्रपति पद की रेस को लेकर बीते रविवार दो प्री-पोल सर्वे के नतीजे जारी हुए हैं और दोनों में ही बाइडेन की स्थिति अच्छी नहीं है। एबीसी न्यूज/वाशिंगटन पोस्ट के सर्वे ने बाइडेन की साख में तेज गिरावट दिखाई है लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि डोनाल्ड ट्रंप को लेकर अमेरिकी लोगों का भरोसा बढ़ता दिख रहा है। इस सर्वे में ट्रंप को 52 और बाइडेन को 42 अंक मिले हैं। 1984 में रोनाल्ड रीगन के बाद कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति दस फीसद के अंतर से चुनाव नहीं जीता है। इतना ही नहीं 56 फीसद लोगों ने बाइडेन के कामकाज से नाखुशी जताई है और इसमें एक मुद्दा यूक्रेन युद्ध भी है। रिकॉर्ड संख्या में अमेरिकी जनता ने माना कि बाइडेन के कार्यकाल में उनकी स्थिति खराब हुई है। वहीं, तीन-चौथाई अमेरिकी लोगों ने माना कि बाइडेन की उम्र बहुत अधिक हो गई है और एक और कार्यकाल के लिए उनका राष्ट्रपति पद संभालना संभव नहीं है जबकि ट्रंप के लिए इन्हीं लोगों ने उम्र के फैक्टर को नजरंदाज किया है।

एनबीसी के सर्वे में भी आम अमेरिकी ताजा हालात को लेकर निराश ही दिखा है। हालांकि बाइडेन के लिए इस सर्वे में थोड़ी राहत यह है उच्चतम नकारात्मक अप्रूवल रेटिंग के बावजूद राष्ट्रपति पद के मुकाबले में वह ट्रंप से बराबरी की टक्कर में हैं। इस मामले में दोनों को 46 फीसद अंक मिले हैं जो बताता है कि ट्रंप से मुकाबले की स्थिति में ऐसे कई लोग बाइडेन का साथ दे सकते हैं जो अन्य पैमानों पर उन्हें स्वीकार नहीं कर रहे हैं। अब शायद बाइडेन को भी एहसास हो रहा होगा कि जिस युद्ध को वह यूक्रेन की समस्या का समाधान समझ रहे थे, वो अब उनके लिए ही सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया है।

-भारत एक्सप्रेस

उपेन्द्र राय, सीएमडी / एडिटर-इन-चीफ, भारत एक्सप्रेस

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