Mahalakshmi Ashtakam Strotra Benefits: हर व्यक्ति अपने जीवन में सुख-समृद्धि और शांति चाहता है. सनातन धर्म में मां लक्ष्मी को ऐश्वर्य और धन की देवी के रूप में स्वीकार किया गया है. मान्यता है कि जो कोई मां लक्ष्मी की विधिवत उपासना करता है उसके जीवन में धन-दौलत की कोई कमी नहीं होती. वैसे तो मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय किए जाते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे आसान उपाय के बारे में बता रहे हैं जिसे अपनाने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होने लगती है. इसके अलावा अगर कोई धन-दौलत में वृद्धि चाहता है तो वह भी इस उपाय को कर सकता है. आइए जनते हैं महा लक्ष्मी अष्टकम् स्तोत्र के बारे में.
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोस्तुते॥1॥
भावार्थ- श्रीपीठपर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाया लक्ष्मी तुम्हें नमस्कार है. जो अपनी हाथों में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हैं, ऐसी महालक्ष्मी को प्रणाम है.
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥2॥
भावार्थ- गरुड़ पर सवार होकर कोलासुर को भय देने वाली व सभी प्रकार के पापों को हरने वाली हे देवि महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है.
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते॥3॥
भावार्थ- सब कुछ जानने वाली, सबको वरदान देने वाली, दुष्टों को भय देने वाली और सबके दुखों को दूर करने वाली, देवि महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है.
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मंत्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते॥4॥
भावार्थ- सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष को देने वाली हे मां लक्ष्मी तुम्हें सदा प्रणाम है.
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥5॥
भावार्थ- हे देवि! हे आदि-अन्त-रहित आदिशक्ति, हे महेश्वरि! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है.
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते॥6॥
भावार्थ- हे देवि! तुम स्थूल, सूक्ष्म और महा रौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और समस्त पापों का नाश करने वाली हो. हे देवि महालक्ष्मी तुम्हें नमस्कार है.
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते॥7॥
भावार्थ- हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवि! हे परमेश्वरि! हे जगदम्ब! हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है.
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते॥8॥
भावार्थ- हे देवि तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषित हो. संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त और समस्त लोक को जन्म देने वाली हो. हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है.
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा॥9॥
भावार्थ- जो मनुष्य भक्तिमय होकर इस महा लक्ष्मी अष्टक स्तोत्र का रोज पाठ करता है. वह हर प्रकार की सिद्धियों और राज्य वैभव को हमेशा प्राप्त करता है.
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः॥10॥
भावार्थ- जो कोई इस स्तोत्र का रोजाना एक समय पाठ करता है, वह बड़े-बड़े पापों से मुक्त हो जाता है. इसके अलावा जो व्यक्ति मह लक्ष्मी अष्टक स्तोत्र का दो समय (सुबह-शाम) पाठ करता है, वह धन-दौलत से भर जाता है.
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मिर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥11॥
भावार्थ- जो व्यक्ति इस स्तोत्र को रोजना तीन समय पाठ करता है उसके शत्रुओं का नाश होता है. साथ ही मां महा लक्ष्मी उसके ऊपर हमेशा प्रसन्न रहती हैं.
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