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जानें कौन हैं अर्जुन अवॉर्ड जीतने वाली भारत की पहली महिला पहलवान? राष्ट्रमंडल खेलों में कायम किया था दबदबा

Geetika Jakhar: कभी कन्या भ्रूण हत्या के लिए हरियाणा बदनाम रहा है लेकिन आज यहां की बेटिंयां देश का नाम रोशन कर रही हैं और पूरी दुनिया में अपनी ताकत का लोहा मनवा रही हैं. इसी तरह यहां की एक बेटी हैं, जो भारत की पहली महिला पहलवान रही हैं और वह हमेशा ये बात कहती रही हैं कि “कुश्ती पुरुष प्रधान खेल नहीं है.” उनका आज ही के दिन 1985 में जन्म हुआ था.

जी हां हम बात कर रहे हैं हरियाणा की गीतिका जाखड़ की. वह भारत की एक दिग्गज महिला पहलवान रही हैं और उन्होंने महिला पहलवानी में क्रांति लाई थी. 13 साल की उम्र में ही उन्होंने कुश्ती खेलना शुरू कर दिया था और मात्र 15 साल की उम्र में भारत केसरी का खिताब जीता और फिर लगातार 9 वर्षों तक इस खिताब को जीतती रहीं. धीरे-धीरे ये मंच बड़ा होता गया और इस महिला पहलवान की बादशाहत बढ़ती गई.

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विरासत में मिली कुश्ती

बता दें कि देश की पहली महिला पहलवान और हिसार की डीएसपी गीतिका जाखड़ को खेल और कुश्ती विरासत में मिली है. वह खेल से जुड़े परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उन्होंने अपने दादा से पहलवानी के गुर सीखे थे, जो अपने जमाने के जाने-माने पहलवान रहे हैं.

2006 में मिला था अर्जुन पुरस्कार

गीतिका जाखड़ भारतीय खेलों के इतिहास में एकमात्र महिला पहलवान हैं, जिन्हें 2005 राष्ट्रमंडल खेलों के सर्वश्रेष्ठ पहलवान के रूप में आंका गया. इसी के साथ ही, गीतिका पहली महिला पहलवान भी हैं, जिसे 2006 में भारत सरकार ने अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया था.

मिली हैं ये उपलब्धियां

गीतिका जाखड़ के नाम एक दो नहीं बल्कि दर्जनों उपलब्धियां दर्ज हैं. 2003 और 2005 कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल और 2007 में सिल्वर मेडल जीता. तो वहीं 2006 के एशियाई खेलों में सिल्वर मेडल और 2014 एशियाई खेलों में ब्रॉन्ज मेडल जीता था. 2007 नेशनल गेम्स और 2007 सीनियर नेशनल चैंपियनशिप में गीतिका ने गोल्ड मेडल जीता. 2009 में, उन्हें कल्पना चावला उत्कृष्टता पुरस्कार मिला. 2011 में वह राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली सबसे कम उम्र की पहलवान बनीं. गीतिका ने 2014 के राष्ट्रमंडल खेलों में 63 किलोग्राम वर्ग में शानदार प्रदर्शन कर रजत पदक जीता तो वहीं 2019 में, गीतिका ने विश्व पुलिस और फायर गेम्स में 69 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीता था.

कुश्ती नहीं थी पहली पसंद

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि गीतिका की पहली पसंद कुश्ती नहीं थी. सबसे पहले उन्होंने एथलेटिक्स में अपना हाथ आजमाया था, लेकिन एक बार उन्होंने कुछ लड़कियों को कुश्ती करते देखा तो उनके मन में भी कुश्ती के प्रति प्रेम जगा और फिर उन्होंने कुश्ती करनी शुरू कर दी और तभी ठान लिया कि इसी में अपना नाम कमाना है.

रोल मॉडल हैं गीतिका

मालूम हो कि महिला कुश्ती में भारत का भविष्य उज्जवल है. निशा दहिया, अंतिम पंघाल जैसे कई युवा खिलाड़ी बड़े मंच के लिए तैयार हो रहे हैं और अपने पहले ही ओलंपिक में इन पहलवानों ने खुद को साबित भी किया. कई युवा महिला पहलवान गीतिका जाखड़ को अपना रोल मॉडल भी मानती हैं. भारतीय महिला कुश्ती और गीतिका जाखड़ के बीच खास कनेक्शन है. चाहे, महिला कुश्ती को बढ़ावा देना हो या फिर महिला पहलवानों के यौन शोषण का मामला. हर बार गीतिका महिला पहलवानों के सपोर्ट में रहीं. उनका हमेशा से ये मानना रहा कि एक खिलाड़ी की पहचान या काबिलियत उसके जेंडर से नहीं बल्कि उसके खेल से होनी चाहिए.

ये तो सभी जानते हैं कि कुश्ती भारत का पसंदीदा और काफी पुराना खेल है. हालांकि कुश्ती में हमेशा से पुरुषों का दबदबा रहा है. हमारे समाज में ऐसा माना जाता था कि कुश्ती पुरुषों का खेल है, क्योंकि महिलाएं कमजोर होती हैं लेकिन अब लोगों के विचार बदल रहे हैं. हमीदा बानो, गीतिका जाखड़, साक्षी मलिक और फोगाट परिवार की बेटियों ने पहलवानी के क्षेत्र में अपना नाम कमाया है और ये साबित किया है कि कुश्ती सिर्फ पुरुषों के लिए ही नहीं है.

-भारत एक्सप्रेस

Archana Sharma

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