Ukraine: पूर्वी यूरोप में स्थित यूक्रेन एक खूबसूरत देश भले ही है लेकिन इसकी एक घटना इतनी भयावह है कि सोचने मात्र से ही रूह कांप जाती है. जोसेफ स्टालिन के नेतृत्व में 1932-33 में यूक्रेन में अकाल इस तरह पड़ा था कि भूखे लोग ये भी नहीं देख रहे थे कि वह किसे मारकर खा रहे हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अकाल इस कदर अपनी चरम पर था कि लोग अपनी भूख को मिटाने के लिए अपनी ही कमजोर संतान को मार कर खाने लगे थे. तो वहीं भूख से तड़पते लोग ग्रामीण इलाकों में भटक रहे थे और जो भी खाने को मिल जाता वे खाने लगते थे. इस अकाल को लेकर सोशल मीडिया पर तमाम खबरें वायरल हो रही है.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उस वक्त नरभक्षण के लिए करीब 2500 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. यूक्रेन में पड़े अकाल से सम्बंधित जो खबरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, उसके मुताबिक जब 1932-33 में यूक्रेन में भयंकर अकाल पड़ा था उस वक्त यूक्रेन सोवियत संघ का ही हिस्सा हुआ करता था. इस अकाल में लाखों लोग मौत के मुंह में समा गए थे. रिपोर्ट्स की मानें तो भूख मिटाने के लिए लोग ये भी नहीं देख पा रहे थे कि वह किसे मार कर खा रहे हैं. बताते हैं कि लोग अपनी ही कमजोर संतान को मार कर खाने लगे थे. यानि अकाल इस कदर अपनी चरम पर था कि लोग इंसानी मांस तक खाने के लिए मजबूर थे.
भले ही यूक्रेन में घूमने के लिए दुनियाभर से सैलानी अब आते हैं लेकिन जब किसी को भी यहां के अकाल की स्थिति के बारे में जानकारी होती है तो वह हैरान रह जाता है. बता दें कि यूक्रेन की सीमा कई देशों से मिलती है. यूक्रेन के पूर्व में रूस, पश्चिम में हंगरी, पोलैंड और स्लोवाकिया, उत्तर में बेलारूस, दक्षिणपश्चिम में रोमानिया, माल्दोवा और दक्षिण में काला सागर और अजोव सागर हैं. यूक्रेन की राजधानी कीव है.
टफ्ट्स यूनिवर्सिटी में वर्ल्ड पीस फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक और 2018 की पुस्तक, मास स्टार्वेशन: द हिस्ट्री एंड फ्यूचर ऑफ फैमिन के लेखक एलेक्स डी वाल के मुताबिक, “यूक्रेनी अकाल एक मानव निर्मित अकाल का स्पष्ट मामला था.”
उन दिनों यूक्रेन-रूस के पश्चिम में काला सागर के किनारे टेक्सास के आकार का एक राष्ट्र सोवियत संघ का हिस्सा था, जिस पर तब स्टालिन का शासन था. 1929 में पूरी तरह से साम्यवादी अर्थव्यवस्था बनाने की अपनी योजना के तहत स्टालिन ने सामूहिकीकरण लागू किया था.
इसके तहत व्यक्तिगत रूप से स्वामित्व वाले और संचालित खेतों की जगह बड़े राज्य द्वारा संचालित सामूहिक खेत स्थापित किए गए. यूक्रेन के छोटे, ज़्यादातर निर्वाह किसान अपनी जमीन और आजीविका छोड़ने का विरोध कर रहे थे.
इतिहासकार ऐनी एप्पलबाम ने अपनी 2017 की पुस्तक रेड फैमिन: स्टालिन्स वॉर ऑन यूक्रेन में लिखा है कि उस समय विरोध करने वाले किसानों को सोवियत शासन ने कुलक कहकर उनका उपहास किया था. संपन्न किसानों को भी सोवियत विचारधारा में राज्य का दुश्मन माना जाता था और यही कारण रहा कि सोवियत अधिकारियों ने इन किसानों को बलपूर्वक उनके खेतों से खदेड़ दिया और स्टालिन की गुप्त पुलिस ने 50,000 यूक्रेनी किसान परिवारों को साइबेरिया में निर्वासित करने की योजना तक बना डाली.
आधुनिक यूक्रेन पर विशेषज्ञता रखने वाले इतिहासकार और लेखक तथा पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के रूसी, पूर्वी यूरोपीय और यूरेशियन अध्ययन केंद्र के अकादमिक सलाहकार ट्रेवर एर्लाचर स्टालिन को लेकर कहते हैं कि “स्टालिन यूक्रेनी राष्ट्र को अपने आधुनिक, सर्वहारा, समाजवादी राष्ट्र के रूप में परिवर्तित करने के लक्ष्य से प्रेरित प्रतीत होते थे, भले ही इसके लिए इसकी आबादी के व्यापक वर्गों का भौतिक विनाश करना पड़े.”
यूक्रेनी किसानों के लिए अभी भी पर्याप्त भोजन हो सकता था, लेकिन एप्पलबाम लिखते हैं, स्टालिन ने तब आदेश दिया कि कोटा पूरा न करने की सज़ा के तौर पर उनके पास जो थोड़ा बहुत था, उसे जब्त कर लिया जाए. तो दूसरी ओर इतिहासकारों के बयान के मुताबिक, यूक्रेन में सामूहिकीकरण बहुत अच्छा नहीं रहा.
1932 के पतन तक, करीब-करीब उसी समय जब स्टालिन की पत्नी, नादेज़्दा सर्गेवना एलिलुयेवा, जिन्होंने कथित तौर पर उनकी सामूहिकीकरण नीति पर आपत्ति जताई थी और फिर आत्महत्या कर ली थी. यह स्पष्ट हो गया था कि यूक्रेन की अनाज की फसल सोवियत योजनाकारों के लक्ष्य से 60 प्रतिशत कम होने जा रही थी.
ओहियो में मियामी विश्वविद्यालय में रूसी इतिहास के प्रोफेसर स्टीफन नोरिस के मुताबिक, “1932-33 का अकाल स्टालिनवादी सरकार द्वारा बाद में लिए गए निर्णयों से उत्पन्न हुआ था, जब यह स्पष्ट हो गया था कि 1929 की योजना उम्मीद के मुताबिक नहीं चली, जिससे खाद्य संकट और भूखमरी पैदा हो गई थी.”
नॉरिस के बयान के मुताबिक, दिसंबर 1932 में जारी एक दस्तावेज़, जिसका नाम “यूक्रेन, उत्तरी काकेशस और पश्चिमी ओब्लास्ट में अनाज की खरीद पर” था, पार्टी के कार्यकर्ताओं को उन क्षेत्रों से अधिक अनाज निकालने का निर्देश दिया गया था, जिन्होंने अपने कोटे पूरे नहीं किए थे. इसमें विरोध करने वाले सामूहिक खेत प्रमुखों और नए कोटे पूरे न करने वाले पार्टी सदस्यों की गिरफ़्तारी की भी मांग की गई थी.
-भारत एक्सप्रेस
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