फाइल फोटो-सोशल मीडिया
Rukhsana Sultana: इन दिनों पूरे देश में इमरजेंसी (Emergency) के उन काले दिनों की चर्चा जोरों पर हो रही है. बता दें कि 25 जून 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा इमरजेंसी का ऐलान किया गया था और ये इमरजेंसी (आपातकाल) पूरे 21 महीने यानी 21 मार्च 1977 तक चली थी. इस दिन को देश में काले दिवस के रूप में आज भी मनाया जाता है. इसकी 50वीं बरसी पर भाजपा लगातार कांग्रेस पर निशाना साध रही है तो वहीं आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के संयुक्त सत्र में अपना अभिभाषण देते हुए इमरजेंसी को भारत के संविधान पर सबसे बड़ा प्रहार बताया है.
उन्होंने कहा कि साल 1975 में जब आपातकाल लगाया गया था, तब देश में हाहाकार सा मच गया था और उस दौरान लोकतंत्र में दरार डालने की कोशिशें हुई थीं. इसके अलावा राष्ट्रपति ने ये भी कहा कि हमारे लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने के हर प्रयास की सभी को निंदा करनी चाहिए. विभाजनकारी ताकतें लोकतंत्र को कमजोर करने, देश के भीतर और बाहर से समाज में खाई पैदा करने की साजिश रच रही हैं. उन्होने इसे संविधान पर सीधा हमला और काला अध्याय भी बताया.
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जानें कौन थी रुखसाना सुल्ताना?
तो वहीं इमरजेंसी के दौरान तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने नसबंदी प्रोग्राम चलाकर देश की जनता को खून के आंसू रुलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. तो वहीं जब नसबंदी और इमरजेंसी की याद आती है तो इसी के साथ याद आता है रुखसाना सुल्ताना का चेहरा भी. ‘रुखसाना सुल्ताना’ बीते जमाने की जानी-मानी अभिनेत्री अमृता सिंह की मां थीं और आज की फेमस अभिनेत्री सारा अली खान की नानी थीं. इमरजेंसी के बाद वो गुमनामी के अंधेरों खो गई थीं. तत्कालीन लोगों द्वारा शेयर किए गए बयान के मुताबिक, कहा जाता है कि उन्होंने सियासी दुनिया छोड़कर मशहूर लेखक खुशवंत सिंह के भतीजे और आर्मी ऑफिसर शविंदर सिंह से शादी करके घर बसा लिया था.
कई कांग्रेस नेता ठोकते थे सलाम
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रशीद किदवई ने अपनी किताब ’24 अकबर रोड’ में इमरजेंसी के साथ ही ‘रुखसाना सुल्ताना’ के बारे में भी खुलकर लिखा है. इस किताब नें उन्होंने ये तक लिख दिया है कि ‘रूखसाना सुल्ताना’ को देखते ही कांग्रेस के दफ्तर में कई नेता उन्हें नंबे डिग्री के एंगल से सलाम ठोंकते थे.
जबरन नसबंदी कराने का लगा आरोप
बता दें कि उस समय देश में बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए संजय गांधी ने नसबंदी प्रोग्राम चलाया था और इसकी जिम्मेदारी रुखसाना सुल्ताना को दी गई थी. कहा जाता है कि उनके ऊपर जबरन पुरुषों की नसबंदी कराने का आरोप लगा था. रुखसाना सुल्ताना को दिल्ली के मुस्लिम इलाके जामा मस्जिद के लोगों की नसबंदी कराने की जिम्मेदारी दी गई थी. मीडिया रिपोट्स के मुताबिक बताया जाता है कि एक साल में करीब 13000 लोगों की नसंबदी कराई गई थी. कहा जाता है कि इससे लोगों में इतना खौफ भर गया था कि जब रुखसाना सड़क पर उतरती थीं तो कर्फ्यू जैसे हालात हो जाते थे क्योंकि लोग अपने घरों में छिप जाते थे.
इसलिए मेनका गांधी भी नहीं करती थीं पसंद
बताया जाता है कि ‘रुखसाना सुल्ताना’ इतनी खूबसूरत थीं कि उनके आगे बड़ी-बड़ी अभिनेत्रियां भी मात खा जाती थीं. कांग्रेस में काफी दबदबा था. राजनीतिक गलियारों में इस बात की भी हमेशा चर्चा रही कि वह संजय गांधी की काफी करीबी थीं. इसी वजह से संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी भी उनके पसंद नहीं करती थीं. किताब में किदवई ने लिखा है कि ‘रुखसाना सुल्ताना ने जामा मस्जिद इलाके में 1 साल में करीब 13000 लोगों की नसंबदी कराई थी, जिसके लिए सरकार से उन्हें 84 हजार रुपए भी मिले थे. उन्हें देखते ही लोग डर के मारे कांपने लग जाते थे.’
जितनी तेज सुर्खियों में आईं, उतनी ही तेजी से हो गई थीं गायब
सुल्ताना के लिए कहा जाता है कि वह जितनी तेजी से सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी थीं, उतनी ही तेजी से गायब भी हो गई थीं. बताया जाता है कि उन्होने मशहूर लेखक खुशवंत सिंह के भतीजे और आर्मी ऑफिसर शविंदर सिंह से शादी करके घर बसा लिया था. इसके बाद सालों बाद दुनिया के सामने वह तब आईं थीं जब उनकी बेटी अमृता सिंह ने फिल्म ‘बेताब’ के माध्यम से बॉलीवुड में कदम रखा. इस दौरान वह फिल्म के प्रमोशन के लिए मीडिया के सामने तो आईं लेकिन गांधी परिवार से दूर ही रहीं,लेकिन जब तक वह राजनीति में रहीं तब तक उनके नाम की चर्चा होती रही.
-भारत एक्सप्रेस
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