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Lucknow: बसपा कार्यालय के अंदर लगी कांशीराम, आंबेडकर और मायावती की मूर्तियां कहां गईं? स्टैच्यू के गायब होने पर अटकलें तेज

मायावती ने बसपा कार्यालय में कांशीराम और अंबेडकर के साथ अपनी मूर्ति को लगावाकर एक समय में दलित समाज को बड़ा संदेश देने का काम किया था और खुद को उनका हितैषी बताया था, जिसका लाभ भी उनको मिला था.

हटा दी गई हैं ये मूर्तियां

Lucknow: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से बड़ी खबर सामने आ रही है. यहां बसपा कार्यालय में सालों से लगी कांशीराम, आंबेडकर और बसपा सुप्रीमो मायावती की मूर्तियों को हटा दिया गया है. मूर्तियां कहां गई हैं, इसके बारे में कोई स्पष्ट जवाब पार्टी की ओर से नहीं आया है. जानकारी सामने आ रही है कि मूर्तियों को मायावती के आवास पर शिफ्ट कर दिया गया है. वहीं कोई कह रहा है कि कार्यालय में ही अंदर रखवा दिया गया है. फिलहाल ऐसा क्यों किया गया है. इसकी कोई जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन इस खबर के सामने आने के बार राजनीति में चर्चा जोरों पर है और लोग तरह-तरह का कयास लगा रहे हैं.

मायावती ने मंगवाया अपने आवास पर!

बसपा कार्यालय में लगी मूर्तियां जिनको लोग रोज देखते थे, जब वह अपनी जगह लगी नहीं मिली तो कानाफूसी शुरू हो गई. बसपा कार्यकर्ताओं में ही इसको लेकर जमकर चर्चा हुई तो बात मीडिया तक भी पहुंची. कांशीराम व आंबेडकर जयंती पर पुष्प अर्पित करने के लिए कार्यालय में ही बसपा सुप्रीमो मायावती आती थीं, लेकिन अब आंबेडकर के साथ ही कांशीराम और फिर उनकी खुद की भी मूर्ति अपने स्थान से गायब है. लोग तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं. इस सम्बंध में ये भी जानकारी सामने आ रही है कि मूर्तियों को मायावती के आवास पर शिफ्ट कर दिया गया है. इसके पीछे ये तर्क दिया जा रहा है कि इन सभी महापुरुषों की जयंती या पुण्यतिथि पर पुष्प अर्पित करने के लिए मायावती को कार्यालय आना पड़ता था. इसीलिए उन्होंने इसे अपने आवास पर ही मंगवा लिया.

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मूर्तियों के सहारे बनी थीं दलित समाज की मसीहा

इस पूरे मामले को लोग लोकसभा चुनाव-2024 से जोड़कर भी देख रहे हैं. इसमें भी चुनावी समीकरण की गणित लगाई जा रही है. हालांकि अभी इस सम्बंध में पार्टी की ओर से राज से पर्दा नहीं उठाया गया है. मालूम हो कि मायावती ने बसपा कार्यालय में कांशीराम और आंबेडकर के साथ अपनी मूर्ति लगावाकर एक समय में दलित समाज को बड़ा संदेश देने की कोशिश की थी और खुद को उनका मसीहा बताया था. उन्होंने बसपा को दलितों का साथी और कांशीराम व आंबेडकर का असली वारिस साबित करना चाहा था. हालांकि इस कोशिश में मायावती सफल भी रहीं और लम्बे समय तक यूपी की सत्ता में रहीं. बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने यूपी में राज किया, लेकिन पिछले कई चुनावों से बसपा को मुंह की खानी पड़ रही है. पिछले चुनावों में बसपा इस कदर कमजोर पड़ी है कि लोग यहां तक कहने लगे हैं कि अब बसपा यूपी से खत्म हो गई है, लेकिन मायावती इस बुझती लौ को फिर से हवा देकर जलाने में जुटी हैं और आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 के लिए नए हथकंडे अपना रही हैं. फिलहाल देखना ये है कि इस मूर्ति गायब होने के पीछे का असली राज कब सामने आता है?

-भारत एक्सप्रेस

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