(प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहित स्थिति से इतर अगर दो वयस्क सहमति से यौन संबंध बनाते हैं तो उसे कोई गलत काम नहीं माना जा सकता, जबकि सामाजिक मानदंड कहता है कि यौन संबंध विवाह के बाद बनना चाहिए. इस तरह के संबंध को लेकर अगर कोई यौन दुराचार का झूठा आरोप लगाता है तो उससे आरोपी की प्रतिष्ठा धूमिल होती है. इस तरह के आरोप से सही मामलों की विश्वसनीयता भी कम होती है.
न्यायमूर्ति अमित महाजन ने उक्त टिप्पणी करते हुए बलात्कार के एक आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दे दिया. न्यायमूर्ति ने कहा कि इस तरह के मामलों की वास्तविकता जानने के लिए अदालत को ज्यादा परिश्रम करना चाहिए. खासकर जब सहमति व इरादे के मुद्दे विवादास्पद हों.
क्या था मामला
महिला ने आरोप लगाया था कि उसके साथ शादी का वायदा कर कई बार जबरदस्ती यौन संबंध बनाए गए.बाद में पता चला कि आरोपी शादीशुदा है और उसके दो बच्चे हैं. महिला ने यह भी दावा कि आरोपी ने कई बार उससे उपहार मांगा और उससे 1.5 लाख रुपऐ लिए व कई कीमती सामान भी लिए. न्यायमूर्ति ने कहा कि घटना के समय महिला वयस्क थी. उसके साथ शादी का वायदा कर यौन संबंध बनाए गए यह जमानत के दौरान विचार नहीं किया जा सकता है. उसपर मुकदमे की सुनवाई के दौरान निर्णय किया जाएगा.
न्यायमूर्ति ने यह भी कहा कि महिला शिकायत दर्ज करने से पहले कई बार आरोपी से मिली थी, जबकि वह जानती थी कि आरोपी शादीशुदा है, फिर भी उसने आरोपी के साथ रिश्ते को जारी रखा. उसने यह निर्णय पूरी सोच-समझकर लिया होगा. उसके इस व्यवहार से उस पर मनोवैज्ञानिक दवाब बनाकर स्वीकृति लेने का संकेत नहीं मिलती है, बल्कि मौन सहमति का संकेत मिलता है. वैसे जमानत पर विचार के दौरान अदालत के लिए यह निर्णय लेना उचित नहीं है कि सहमति विवाह का झूठा वायदा कर लिया गया था. यह सब मुकदमे की सुनवाई के दौरान पेश साक्ष्य के आधार पर विचार किया जाएगा.
-भारत एक्सप्रेस
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