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जर्मनी के बाजार में एक व्यक्ति को हिंदू धर्म से जुड़ा रहस्यमयी कागज का टुकड़ा मिला, पता लगाने के लिए इंटरनेट से मांगी मदद

व्यक्ति ने Reddit पर अपनी पोस्ट में भारतीयों से यह पता लगाने में मदद मांगी कि यह क्या है. जिसके बाद भारतीय यूजर्स तुरंत आगे आए और जर्मन व्यक्ति की मदद करने के लिए पाठ का अनुवाद किया. अधिकांश यूजर्स ने पाठ को वाराणसी में छपे पंचांग से संबंधित बताया.

जर्मनी के एक बाजार में एक व्यक्ति को रहस्यमयी कागज का टुकड़ा मिला. उसकी पहचान के लिए उसने इंटरनेट से मदद मांगी. एक जर्मन व्यक्ति ने रेडिट(Reddit) पर एक अज्ञात देवनागरी में लिखे कागज के एक टुकड़े की तस्वीरें साझा कीं, जो उसे हैम्बर्ग के बाजार में मिली थीं. हिंदी या संस्कृत में लिखे पाठ से भरे दो पीले पन्नों की तस्वीरें साझा करते हुए, उसने कहा कि उसे यह पहचानने में मदद चाहिए कि ये पन्ने कहाँ से हैं और उनका क्या मतलब है.

व्यक्ति ने लिखा, “यह मुझे जर्मनी के हैम्बर्ग में एक फ्ली मार्केट में मिला. क्या आप मुझे बता सकते हैं कि यह क्या है.”

वाराणसी में छपा पंचांग है

उसने Reddit पर अपनी पोस्ट में भारतीयों से यह पता लगाने में मदद मांगी कि यह क्या है. जिसके बाद भारतीय यूजर्स तुरंत आगे आए और जर्मन व्यक्ति की मदद करने के लिए पाठ का अनुवाद किया. अधिकांश यूजर्स ने पाठ को वाराणसी में छपे पंचांग से संबंधित बताया. पंचांग एक हिंदू कैलेंडर और ज्योतिष पंचांग है जिसका उपयोग मुख्य रूप से हिंदू धर्म में घटनाओं और अनुष्ठानों के समय के लिए किया जाता है.

यह 150-180 साल पुराना है

एक भारतीय यूजर्स ने लिखा, “यह एक हिंदू कैलेंडर है जिसे पंचांग के नाम से जाना जाता है, जिसे भार्गव प्रेस द्वारा छापा जाता है. इस प्रेस का स्वामित्व और प्रबंधन पंडित नवल किशोर भार्गव के पास था, जो अपने समय के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक थे. उनकी महत्ता का उल्लेख “मिर्जा गालिब” फिल्म में भी किया गया है, जहाँ उन्होंने गालिब के लिए प्रकाशन करने से मना कर दिया था. अगर मैं गलत नहीं हूँ तो यह कैलेंडर कम से कम 150 से 180 साल पुराना है. मुझे यह इसलिए पता है क्योंकि वे हमारे पूर्वज थे, लगभग पाँच पीढ़ियों पहले वे हमारे रिश्तेदार रहे हैं. उनके वंशज अभी भी लखनऊ में रहते हैं, लेकिन वे अब प्रेस नहीं चलाते हैं,”

क्या दीवार पर चिपका सकता हूं

जिसके बाद उस जर्मन व्यक्ति ने लिखा, “सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद. मैं इसे कभी नहीं खोज पाता. एक सवाल बाकी है, क्या यह दुर्लभ है. इसलिए पूछ रहा हूँ ताकि मैं इसे उसी के अनुसार संरक्षित कर सकूं, अगर यह आम है तो मैं इसे अपनी दीवार पर चिपका लूँगा.”  जिस पर कई लोगों ने जर्मन व्यक्ति से कहा कि यह पाठ बहुत महंगा नहीं है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण कलाकृति थी. भारतीय इस बात से भी हैरान थे कि यह जर्मनी तक पहुंचा कैसे.

-भारत एक्सप्रेस

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