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SpaceX और ISRO की ऐतिहासिक साझेदारी: GSAT-20 की सफल लॉन्चिंग, इससे फ्लाइटों में भी मिलेगा इंटरनेट

जीसैट 20, भारत के लिए एक बड़ा कदम साबित हो सकता है, क्योंकि यह न केवल उन्नत संचार तकनीक से लैस है, बल्कि यह दूर-दराज के इलाकों और विमानों में भी इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराएगा.

GSAT-20

18 नवंबर की आधी रात को, एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स ने केप केनावेरल, फ्लोरिडा से अपना फाल्कन 9 रॉकेट लॉन्च किया, जो भारतीय स्पेस एजेंसी ISRO के लिए बेहद महत्वपूर्ण था. इस उड़ान में लॉन्च किया गया सैटेलाइट, जीसैट 20, भारत के लिए एक बड़ा कदम साबित हो सकता है, क्योंकि यह न केवल उन्नत संचार तकनीक से लैस है, बल्कि यह दूर-दराज के इलाकों और विमानों में भी इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराएगा.

GSAT-20: एक नई शुरुआत

जीसैट 20 (या जीसैट एन-2) एक 4700 किलोग्राम वजनी कमर्शियल सैटेलाइट है, जिसे स्पेस कॉम्प्लेक्स 40, फ्लोरिडा से लॉन्च किया गया. यह सैटेलाइट अमेरिकी स्पेस फोर्स के नियंत्रण वाले लॉन्च पैड से उतरा. इसरो के चेयरमैन डॉ. श्रीधर पणिकर सोमनाथ ने मिशन की सफलता की पुष्टि करते हुए बताया कि इस सैटेलाइट को पूरी तरह से तैयार किया गया है और इसकी ऑपरेशनल अवधि 14 साल है.

ISRO और SpaceX की पहली साझेदारी

यह पहली बार था जब ISRO ने स्पेस एक्स के साथ सहयोग किया था. इस साझेदारी के माध्यम से, इसरो ने फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए जीसैट 20 सैटेलाइट को लॉन्च किया. इस सैटेलाइट में अत्याधुनिक फ्रीक्वेंसी का उपयोग किया गया है, जो इसे अधिक बैंडविथ प्रदान करता है और संचार क्षमता को बेहतर बनाता है.

SpaceX हीं क्यों?

इसरो के पास पहले से मार्क 3 (LVM 3) रॉकेट हैं, जिनकी पेलोड क्षमता 4000 किलोग्राम तक की है, जबकि जीसैट 20 का वजन 4700 किलोग्राम है. इसरो की मौजूदा रॉकेट्स की सीमित क्षमता के कारण, इसरो ने स्पेस एक्स का चयन किया, क्योंकि फाल्कन 9 रॉकेट्स रीयूजेबल होते हैं, जिससे लागत में भी बचत होती है.

स्पेस एक्स के रॉकेट की ऑर्बिटल क्लास की क्षमता है, जिसका मतलब है कि यह रॉकेट पृथ्वी के लोअर ऑर्बिट में पेलोड को पहुंचाने के लिए सक्षम है. फाल्कन 9 रॉकेट 70 मीटर लंबा और 3.7 मीटर व्यास वाला है, और इसमें 9 मर्लिन इंजन होते हैं, जिनकी कुल ताकत 90,000 हॉर्सपावर के बराबर होती है.

रॉकेट के उन्नत तकनीकी पहलू

फाल्कन 9 रॉकेट की विशेषता यह है कि यह रीयूजेबल है, यानी एक बार अंतरिक्ष में जाने के बाद यह रॉकेट वापसी कर सकता है और पुनः उपयोग के लिए तैयार हो जाता है. इसका सिस्टम फ्लाइट पाथ रिकॉर्ड करता है, यानी रॉकेट जिस रास्ते से जाता है, वह उसे याद रखता है, और फिर उसी मार्ग का अनुसरण करते हुए वापस लौटता है. रॉकेट की वापसी को सुनिश्चित करने के लिए कोल्ड गैस थ्रस्टर्स, ग्रिड फिन और री-इग्नाइटेबल इंजन का उपयोग किया जाता है.

इस रॉकेट में 9 मर्लिन इंजन होते हैं, जो रॉकेट ग्रेड केरोसिन और लिक्विड ऑक्सीजन से संचालित होते हैं. जब रॉकेट अंतरिक्ष में पहुंचता है, तो निचला हिस्सा पृथ्वी पर गिर जाता है, और ऊपरी हिस्सा सैटेलाइट को लोअर ऑर्बिट में स्थापित कर देता है.


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ISRO और स्पेस एक्स की साझेदारी: भविष्य की दिशा

यह लॉन्च ISRO के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है, क्योंकि यह भारत और अमेरिका के बीच स्पेस क्षेत्र में एक नई साझेदारी को दिखाता है. साथ ही, यह मिशन भारत की स्पेस एजेंसी की उन्नत क्षमता को भी प्रदर्शित करता है, जिससे भविष्य में और भी बड़ी परियोजनाओं के लिए एक मजबूत बुनियाद तैयार हो रही है.

यह सफलता न केवल भारत के लिए गर्व की बात है, बल्कि इससे वैश्विक स्पेस समुदाय में भारत की स्थिति और मजबूत होगी, और इसके साथ ही अंतरिक्ष अन्वेषण में नई संभावनाओं की राह भी खोलेगी.

-भारत एक्सप्रेस



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