सुबोध उनियाल.
उत्तराखंड सरकार में वन मंत्री सुबोध उनियाल ने शुक्रवार को देहरादून में हुए भारत एक्सप्रेस के कॉन्क्लेव ‘नये भारत की बात, उत्तराखंड के साथ’ में शामिल होकर वनों के संरक्षण पर बात की.
वनों के संरक्षण को लेकर सरकार के क्या विजन है, इसके जवाब में मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा, ‘राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में फॉरेस्ट कवर एरिया बढ़ा है. आज 71 प्रतिशत से ज्यादा क्षेत्र वनाच्छादित है. वनों की प्रासंगिकता पहले के समय से बहुत ज्यादा बढ़ गई है, क्योंकि आज पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज, वाटर लेवल लगातार गिरना और प्रदूषण के दुष्प्रभाव से पीड़ित है और आने वाला समय बड़ा खतरनाक और चैलेंजिंग है. आज वनों का संरक्षण करना मैं समझता हूं बहुत ज्यादा जरूरी है. हमारी सरकार ने इसके लिए प्रयास किया है.’
लोगों से वनों का जुड़ाव
मंत्री ने एक वाकया सुनाते हुए कहा, ‘वन हमारे से पहले ही इस धरती पर हैं. सरकारों, अधिकारियों, लोगों का अस्तित्व बाद में आया. जंगलों का अस्तित्व हमसे कहीं पुराना है. यानी कि हम लोगों का जंगलों के अस्तित्व में कोई योगदान नहीं रहा है, पर क्या कारण है कि हम लोगों के आने के बाद 1980 में वन संरक्षण अधिनियम लाना पड़ा. स्पष्ट कारण है कि हमारे आने के बाद वनों का कहीं ना कहीं नुकसान हुआ और नुकसान का सीधा कारण था कि हमने आम आदमी की जो कनेक्टिविटी थी जंगलों से वो तोड़ दी.’
आजीविका का साधन
उन्होंने कहा, ‘आप पुराने समय में जाएंगे तो जंगल ही आदमी की आजीविका का सबसे बड़ा साधन था. लकड़ी पर ही खाना बनता था, हर परिवार पशुपालन करता था और जंगलों में जाकर ही पशु चरा करते थे. लकड़ी और घास लाने का काम भी जंगलों से होता था, जब यह सारी चीज खत्म हो गई तो कहीं ना कहीं जंगलों से आदमी का जुड़ाव टूट गया तो आज आवश्यकता है कि ऐसी पॉलिसी बनाओ जो पीपल फ्रेंडली ताकि आम आदमी को आप जंगलों से कनेक्ट कर सकें.’
वन संरक्षण को लेकर जागरूकता
मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा, ‘मेरा पहला प्रयास था कि लोगों को वनों के संरक्षण के प्रति हम कैसे इनवॉल्व करें. उसके लिए हम लोगों ने नीतियां बदलीं. मैंने ट्री प्रोटेक्शन एक्ट में बहुत बड़ा परिवर्तन करते हुए मात्र 17 प्रजातियों को प्रतिबंध में रखा, बाकी सैकड़ों प्रजातियों को हटा दिया कि चाहे लोग अपने खेत में कोई पेड़ अगर लगा रहे हैं तो उन 17 के अलावा किसी पेड़ को काटने में उसको अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है. 17 में भी तीन प्रजातियां ऐसी रखी है, चीड़, सेमल और तुन, जिनको प्रतिबंधित तो रखा है? लेकिन उस एक्ट में परिवर्तन कर कह दिया अगर कोई व्यक्ति अपनी जमीन पर चीड़ सेमल या तुन को काटने की अनुमति मांगता है तो एक परीक्षण करने के बाद उसको अनुमति देना अनिवार्य होगा. परीक्षण इसलिए क्योंकि हमारे पहाड़ों में जंगलों के पेड़ ज्यादा पेड़ चीड़, तुन और सेमल के हैं तो ऐसा न हो कि जंगल से आदमी चोरी करके लाए और अपने खेत की बताए. इसलिए एक बार वन विभाग जाकर चेक कर ले. इससे लोगों को बहुत रिलीफ मिली.’
-भारत एक्सप्रेस
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