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OMG! यहां धरती से हर रोज निकलता है Gold, वैज्ञानिक भी हुए हैरान, जानें कहां हो रहा ऐसा

आज हम आपको ऐसी ही एक जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां ‘पाताल लोक’ से हर रोज लाखों का सोना निकलता है, लेकिन वहां तक पहुंच पाना लगभग नामुमकिन है.

Gold Mines

दुनिया में कई देशों के पास सोने की खदान है, जिसमें अमेरिका से लेकर ओशिनिया, अफ्रीका और एशिया के कई देश शामिल हैं. वहीं इसमें भारत और चीन भी हैं. ये तो आप जानते ही होंगे दुनिया में बेशकीमती धातुएं में से एक सोना भी है, जो धरती पर बहुत ही कम मात्रा में मौजूद है और कड़ी मेहनत के उत्खन्न से हासिल किया जाता है. यही वजह है कि यह पीली धातु बहुत कीमती है. वहीं, भारत में पाए जाने वाले महत्वपूर्ण खनिजों में सोना सबसे खास है.

वैज्ञानिक मानते हैं कि धरती के बहुत नीचे कई बहुमूल्य चीजें हो सकती हैं, लेकिन वहां तक पहुंचना इंसानों के लिए संभव ही नहीं है. आज हम आपको ऐसी ही एक जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां ‘पाताल लोक’ से हर रोज लाखों का सोना निकलता है, लेकिन वहां तक पहुंच पाना लगभग नामुमकिन है.

सोने की सबसे बड़ी खदान

ये जगह अंटार्कटिका में स्थित है. रिपोर्ट के मुताबिक, अंटार्कटिका में एक सक्रिय ज्वालामुखी पर्वत है, जिसका नाम माउंट एरेबस है. ये ज्वालामुखी हर रोज सोने की धूल उगलता है. ऐसे माना जाता है कि सोने की इस धूल की कीमत 6 हजार डॉलर यानी करीब 5 लाख रुपये है. हालांकि यहां तक पहुंच पाना संभव ही नहीं है, क्योंकि माउंट एरेबस अंटार्कटिका में मौजूद 138 सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है. विशेषज्ञों के अनुसार, ये ज्वालामुखी प्रतिदिन लगभग 80 ग्राम क्रिस्टलीकृत सोने से युक्त गैस को बाहर निकालने के लिए जाना जाता है. ये बहुमूल्य धूल 12,448 फीट की ऊंचाई पर उड़ती है.

चट्टान भी उगलता है ये ज्वालामुखी

रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह ज्वालामुखी नियमित रूप से गैस और भाप का उत्सर्जन करता है और कभी-कभी चट्टान भी उगलता है. न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी में लामोंट-डोहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेटरी के कॉनर बेकन ने लाइव साइंस को बताया कि इस ज्वालामुखी में साल 1972 से ही लगातार विस्फोट हो रहे हैं, लेकिन ऐसा भी माना जाता है कि यह लाखों सालों से सक्रिय है.

यहां जाना है बेहद मुश्किल

माउंट एरेबस की खोज साल 1841 में की गई थी. इस पर्वत का नाम कैप्टन जेम्स क्लार्क रॉस ने अपने जहाज एरेबस के नाम पर रखा था. वह एक खोजकर्ता थे और अपने अंटार्कटिक अभियान पर निकले थे. इस पहाड़ पर वैसे तो अब तक कई लोग चढ़ाई कर चुके हैं, लेकिन ज्वालामुखी तक नहीं गए हैं, क्योंकि ऐसा करना मौत के मुंह में जाने के समान है.

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