असम सरकार ने शनिवार को एक ऐसे विधयेक को मंजूरी दी जो चिकित्सा के नाम पर होने वाले ‘जादूई उपचार’ को पूरी तरह गैरकानूनी घोषित करेगा. इस विधेयक मे जिक्र है कि ‘जादूई उपचार’ से जुड़े किसी भी कृत्य में शमिल व्यक्ति के लिये कठोर सजा का प्रावधान किया गया है. बता दें कि ये फैसला असम के मुख्यमंत्री हिमत बिस्वा सरमा की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में लिया गया, बिल पर कैबिनेट अप्रूवल लेने के दौरान सीएम ने कहा कि विधेयक बनाने का एक उद्देश्य गलत तरीके से उपचार के लिए धार्मिक प्रचार-प्रसार को रोकना है.
इन बीमारियों के नाम पर होता रहा है जादुई उपचार
मंत्रिस्तरीय परिषद ने असम उपचार (बुराइयों की रोकथाम) प्रथा विधेयक, 2024 को लागू कर दिया है. इस विधेयक का प्राथमिक प्रयास बहरापन, गूंगापन, अंधापन, शारीरिक विकृति और ऑटिज्म (एक दिमागी ) बीमारी जैसी कुछ जन्मजात बीमारियों के इलाज के नाम पर जादुई उपचार को प्रतिबंधित करना है.
ईसाई समुदाय इसपर क्या आपत्ति जता रहा है
असम (Assam) में 10 फरवरी को एक हिंदुत्व संगठन- ‘कुटुम्ब सुरक्षा परिषद’ ने मिशनरी स्कूलों को 15 दिनों के अंदर यीशु और मैरी की तस्वीरों और मूर्तियों सहित ईसाई ‘प्रतीकों’ को हटाने की धमकी दी थी. हिंदुत्व संगठनों का दावा हैं कि इन संस्थानों का उपयोग “धार्मिक उद्देश्यों” के लिए किया जा रहा है. इसी बीच बीते सोमवार, 26 फरवरी को असम विधानसभा में वॉयस वोट से पारित एक कानून ने ईसाई धर्म समुदाय में तनाव की स्थिति पैदा कर दी.
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जादुई उपचार शब्द ईसाई धर्म में मौजूद नहीं है
असम क्रिश्चियन फोरम के सदस्य आर्कबिशप जान मूलचेरा ने एक भारतीय समाचार वेबसाइट को बताया कि यह कानून उपचार प्रथाओं और तरीकों के बारे में, बीमारी से निपटने के लिए “विश्वास और प्रार्थना” की भूमिका को लेकर “गलत धारणाओं” पर आधारित है, साथ ही यह धार्मिक “विविधता” का सम्मान करने में विफल है. ईसाई समुदाय में जादुई उपचार (मैजिकल ट्रीटमेंट ) नाम का कोई शब्द नहीं है. हमने इसके बारे में पहली बार असम विधानसभा में सुना. हम केवल उपचार ही नहीं करते हैं बल्कि यह प्रार्थना का हिस्सा है. हमारे पास हर दूसरे धर्म की तरह ही समस्या के निदान के लिए प्रार्थनाएं की जाती हैं. जब कोई बीमार व्यक्ति हमारे पास आता है, तो हम उसके लिए पर्सनली रूप से या ग्रुप में एक साथ खड़े होकर प्रेअर करते हैं. हम लोगों को ठीक करने के लिए जादू टोना का उपयोग नहीं करते हैं. सरकार इसे गलत और दंडनीय क्यों बना रही है, यह हमारी समझ के बाहर है.
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