भारत की सनातन वैदिक संस्कृति अनेक अर्थों में विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है। क्योंकि ये व्यक्ति, पर्यावरण व समाज के बीच संतुलन पर आधारित जीवन मूल्यों की स्थापना करती है। भारत विश्व गुरु था इसके तमाम ऐतिहासिक प्रमाण हैं जिन्हें हज़ारों वर्षों से भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों ने अपने लेखन में उल्लेख किया है। विसंगतियां भी हर समाज में होती हैं। भारत इसका अपवाद नहीं है। यह भी सही है कि अंग्रेज इतिहासकारों और आज़ादी के बाद वामपंथी इतिहासकारों ने ऐतिहासिक तथ्यों को अपनी विचारधारा के अनुरूप तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया। इसलिए सनातनी मानसिकता के लोगों के मन में ये बात हमेशा से बैठी रही कि उनके इतिहास के साथ न्याय नहीं हुआ। अचानक 2014 से ये दबी भावनाएँ अब मुखर हो गईं हैं।
अपने धर्म, संस्कृति और इतिहास की श्रेष्ठता को बताना और स्थापित करने में कोई बुराई नहीं है। ये किया ही जाना चाहिए। पर ऐसा करते समय उत्साह के अतिरेक में अगर हम तथ्यों से छेड़छाड़ करेंगे, अपने विपक्षियों के ऊपर हमला करते समय उनकी उपलब्धियों को वैसे ही छिपाएँगे जैसे वे करते आए हैं और उन पर झूठे आरोप मढ़ कर या उन्हें बदनाम करने की दृष्टि से उन पर हमला करेंगे, तो हमारी ये क़वायद सफल नहीं होगी। हम उपहास के पात्र बनेंगे। हमारे दावों की पुष्टि न हो पाने पर हम झूठे सिद्ध हो जाएँगे और फिर हमारी सही बात भी ग़लत कही जाएगी। आज के दौर में सूचना तकनीकी का इतना विस्तार हो गया है कि दुनिया के किसी भी कोने में बैठा व्यक्ति किसी भी दावे की वैधता को क्षणों में चुनौती दे सकता है, अगर वो दावा सत्य नहीं है।
ट्विटर पर पोस्टों को खंगालते समय मेरी निगाह ‘सनातनी पूर्णिमा’ की इस पोस्ट पर अटक गई, जिसमें लिखा था, वियतनाम विश्व का एक छोटा सा देश है जिसने अमेरिका जैसे बड़े बलशाली देश को झुका दिया। लगभग बीस वर्षों तक चले युद्ध में अमेरिका पराजित हुआ। अमेरिका पर विजय के बाद वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष से एक पत्रकार ने एक सवाल पूछा… आप युद्ध कैसे जीते या अमेरिका को कैसे झुका दिया? उत्तर सुनकर आप हैरान रह जायेंगे और आपका सीना भी गर्व से भर जायेगा। उत्तर था, “सभी देशों में सबसे शक्ति शाली देश अमेरिका को हराने के लिए मैंने एक महान व श्रेष्ठ भारतीय राजा का चरित्र पढ़ा और उस जीवनी से मिली प्रेरणा व युद्धनीति का प्रयोग कर हमने सरलता से विजय प्राप्त की”।
आगे पत्रकार ने पूछा, कौन थे वो महान राजा? वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष ने खड़े होकर जवाब दिया, “वो थे भारत के राजस्थान में मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप सिंह” (ये सिंह कबसे जुड़ गया?)। महाराणा प्रताप का नाम लेते समय उनकी आँखों में एक वीरता भरी चमक थी, आगे उन्होंने कहा, “अगर ऐसे राजा ने हमारे देश में जन्म लिया होता तो हमने सारे विश्व पर राज किया होता।” कुछ वर्षों के बाद उस राष्ट्राध्यक्ष की मृत्यु हुई तो जानिए उसने अपनी समाधि पर क्या लिखवाया, “यह महाराणा प्रताप के एक शिष्य की समाधि है”। कालांतर में वियतनाम के विदेशमंत्री भारत के दौरे पर आए थे। पूर्व नियोजित कार्य क्रमानुसार उन्हें पहले लाल किला व बाद में गांधीजी की समाधि दिखलाई गई। ये सब दिखलाते हुए उन्होंने पूछा “मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप की समाधि कहाँ है?” तब भारत सरकार के अधिकारी चकित रह गए, और उन्होंने वहाँ उदयपुर का उल्लेख किया। वियतनाम के विदेशमंत्री उदयपुर गये, वहाँ उन्होंने महाराणा प्रताप की समाधि के दर्शन किये। समाधि के दर्शन करने के बाद उन्होंने समाधि के पास की मिट्टी उठाई और उसे अपने बैग में भर लिया। इस पर पत्रकार ने मिट्टी रखने का कारण पूछा। उन विदेशमंत्री महोदय ने कहा “ये मिट्टी शूरवीरों की है इस मिट्टी में एक महान् राजा ने जन्म लिया ये मिट्टी मैं अपने देश की मिट्टी में मिला दूंगा ताकि मेरे देश में भी ऐसे ही वीर पैदा हों। मेरा यह राजा केवल भारत का गर्व न होकर सम्पूर्ण विश्व का गर्व होना चाहिए”।
इस पोस्ट को पढ़ कर उत्साही लोगों ने बढ़-चढ़ कर हर्ष और गर्व अभिव्यक्त करना शुरू कर दिया। उत्सुकतावश मैंने भी गूगल पर जा कर जब खोज की तो पता चला कि जो सूचना दी गयी है उसमें वियतनाम के ऐसे किसी राष्ट्रपति का ज़िक्र नहीं है जो महाराणा प्रताप से प्रेरित रहा हो या उनका विदेश मंत्री उदयपुर गया हो। तब मैंने इस दावे के प्रमाण की माँग करते हुए अपनी प्रतिक्रिया लिखी। कुछ और खोज करने पर पता चला कि पिछले वर्ष ऐसा ही दावा छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में भी किया गया था। उसमें भी प्रमाण माँगने पर दावा करने वाला प्रमाण नहीं दे पाया। वियतनाम घूम कर आए एक व्यक्ति ने तो साफ़ लिखा कि वियतनाम में ऐसी किसी घटना की कोई जानकारी नहीं है। एक और व्यक्ति ने लिखा की वियतनाम के संघर्ष के नेता और लंबे समय तक वहाँ के प्रधान मंत्री रहे हो चि मिन्ह धुर वामपंथी थे और उनके किसी लेख या भाषण में महाराणा प्रताप या शिवाजी का कोई उल्लेख नहीं है। इससे तो यही सिद्ध होता है कि ये ‘ह्वाट्सऐप विश्वविद्यालय’ की ही खोज है जिसका तथ्यों से कोई लेना-देना नहीं है।
वियतनाम का तो ये एक उदाहरण है। अपने राजनैतिक विरोधियों की छवि नष्ट करने के लिए और उनकी उपलब्धियों को नकारने के लिए ऐसी पोस्ट सारा दिन दर्जनों की तादाद में आती रहती हैं। बिना उनकी सत्यता परखे समाज का एक हिस्सा उन्हें फॉरवर्ड करने में जुट जाता है। जिससे कुछ समय बाद झूठ सच लगने लगता है। पर जब कोई ऐसे मूर्खतापूर्ण व द्वेषपूर्ण दावों की पड़ताल करता है और उन्हें झूठा सिद्ध कर देता है तो सामने की तरफ़ सन्नाटा छ जाता है। न उत्तर दिया जाता है और न ही अपने अपराध के लिए क्षमा माँगी जाती है। ये सिलसिला यूँ ही चलता जा रहा है। समझ में नहीं आता कि सैंकड़ों करोड़ रुपये खर्च करके आईटी सेल चलाने वाले राजनैतिक संगठन या दल ऐसा झूठ फैला कर क्या हासिल करना चाहते हैं? इससे उनकी विश्वसनीयता तेज़ी से घटती जा रही है। वो दिन दूर नहीं जब ऐसा भ्रम फैलाने वालों की भी वही गति होगी जो उस भेड़ चराने वाले लड़के की हुई थी जो बार-बार झूठा शोर मचाता था, “बचाओ-बचाओ भेड़िया आया”।
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