विश्लेषण

क्या हो आवारा पशुओं की समस्या का समाधान ?

जी20 शिखर सम्मेलन की तैयारी में देश की राजधानी दिल्ली को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है। केंद्र और दिल्ली की सरकार इस सम्मेलन को कामयाब करने की दृष्टि से हर वो कदम उठा रही है जिससे कि इसमें शिरकत करने वाले विदेशी मेहमानों को किसी भी तरह की असुविधा न हो। दिल्ली को सजाने के साथ-साथ सुरक्षा व्यवस्था के चलते भी कई कदम उठाए गये हैं। इसके साथ ही दिल्ली के कुछ इलाक़ों से आवारा कुत्तों को हटाने के आदेश भी जारी हुए थे, जिसे पशु प्रेमियों के विरोध के चलते रद्द किया गया। आदेश का विरोध कर, पशु प्रेमियों ने इसे आवारा कुत्तों के हित में बताया है। परंतु यहाँ सवाल उठता है कि इस समस्या से छुटकारा कैसे मिले?

शहरों में आवारा कुत्तों की समस्या हर दिन बढ़ती जा रही है। आम जनता को हर गली मोहल्ले में आवारा कुत्तों से खुद को बचा कर निकलना पड़ता है। यदि इन कुत्तों से बचने के लिए हम इन्हें लाठी, डंडा या पत्थर का डर दिखाते हैं तो पशु प्रेमी इसका विरोध करते हैं। कुछ जगहों पर तो ये लोग नागरिकों को पुलिस की कार्यवाही की धमकी तक दे देते हैं। परंतु क्या कभी किसी पशु प्रेमी ने इस समस्या का हल खोजने की कोशिश भी की है? क्या कारण है कि आवारा कुत्तों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है?

आवारा कुत्तों परिभाषित करें तो यह तीन प्रकार के होते हैं। पहले वो जो किसी भी इलाक़े में आराम से घूमते हैं और वहाँ के स्थानीय नागरिकों पर निर्भर रहते हैं और उनके दिये खाने पर जीवित रहते हैं। दूसरे वो जो पहले प्रकार की तरह ही होते हैं लेकिन वो किसी पर निर्भर नहीं रहते। वो इलाक़े के कूड़े आदि में से अपने खाने का इंतज़ाम कर लेते हैं। तीसरे वो, जिन पालतू कुत्तों को उनके स्वामी बेघर कर देते हैं। पहले और दूसरे प्रकार के कुत्ते किसी न किसी तरह से जीवित रह पाते हैं क्योंकि वो सड़कों पर रहने के आदि हो जाते हैं। जो भी खाने को मिल जाए उससे संतुष्ट रहते हैं। जबकि तीसरे प्रकार के कुत्तों को इन सबकी आदत नहीं होती और वो या तो दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं या गंदा ख़ाना खाने से बीमार पड़ जाते हैं। इनमें से किसी भी आवारा कुत्ते को रेबीज़ जैसी घातक बीमारी हो जाए और वो कुत्ता किसी को काट ले तो उस व्यक्ति की तो जान पर बन आती है।

जी20 शिखर सम्मेलन से पहले जब दिल्ली नगर निगम ने यह आदेश दिया कि आवारा कुत्तों को कुछ इलाक़ों से हटा कर किसी सुरक्षित स्थान पर भेजा जाएगा, तो लगा कि यह एक अच्छी पहल है। जिस तरह देश भर में कई सामाजिक संस्थाएँ गौवंश की सुरक्षा कि दृष्टि से गौशाला चलाती हैं। उसी तरह क्यों न आवारा कुत्तों के लिए भी ‘डॉग शेल्टर’ जैसी कोई योजना बनाई जाए जहां आवारा कुत्तों को एक सुरक्षित माहौल में रखा जाए। यहाँ पर इन बेज़ुबानों के इलाज की भी उचित व्यवस्था हो। जिन भी पशु प्रेमियों को इन बेज़ुबानों के प्रति अपना वात्सल्य दिखाने की कामना हो वे समय निकाल कर वहाँ नियमित रूप से जाएँ और न सिर्फ़ उनको ख़ाना खिलाए बल्कि उनके साथ समय भी बिताएँ। ऐसा करने से न तो किसी पशु पर अत्याचार होगा और न ही ऐसे आवारा कुत्तों से किसी आम नागरिक को कोई ख़तरा होगा।

दुनिया भर में केवल नीदरलैंड ही एक ऐसा देश है जहां पर आपको आवारा कुत्ते नहीं मिलेंगे। यहाँ की सरकार द्वारा चलाए गये एक विशेष कार्यक्रम के तहत वहाँ के हर कुत्ते को सरकार द्वारा इकट्ठा कर उसकी जनसंख्या नियंत्रण करने वाले टीके लगाए जाते हैं। रेबीज़ जैसी बीमारियों से बचाव का टीकाकरण किया जाता है। उसके पश्चात या तो उन्हें उनके स्वामी के पास वापिस भेज दिया जाता है या उस इलाक़े में छोड़ दिया जाता है जहां से उसे लाया गया था। दुनिया भर के पशु प्रेमियों के संगठनों ने इस कार्यक्रम को सबसे सुरक्षित और असरदार माना है। इस कार्यक्रम से न सिर्फ़ आवारा कुत्तों की जनसंख्या पर रोक लगती है बल्कि आम नागरिकों को भी इस समस्या से निजाद मिलता है।

इसके साथ ही नीदरलैंड सरकार ने एक नियम भी लागू किया गया। किसी भी पालतू पशु की दुकान से ख़रीदे गये कुत्तों पर सरकार भारी मात्रा में टैक्स लगती है। वहीं दूसरी ओर यदि कोई भी नागरिक इन बेघर पशुओं को गोद लेकर अपनाता है तो उसे आयकर में छूट भी मिलती है। इस नियम के लागू होते ही लोगों ने अधिक से अधिक बेघर कुत्तों को अपनाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे नीदरलैंड की सड़कों व मोहल्लों से आवारा कुत्तों की संख्या घटते-घटते बिलकुल शून्य हो गई।

मामला केरल का हो, आगरा का हो, दिल्ली एनसीआर का हो या मुंबई का हो, देश भर से ऐसी खबरें आती हैं जहां कभी किसी बच्चे को, किसी डिलीवरी करने वाले को या किसी बुजुर्ग को इन आवारा पशुओं का शिकार होना पड़ता है। अगर कोई अपने बचाव में कोई कदम उठाए तो पशु प्रेमी बवाल खड़ा कर देते हैं। यदि हर शहर के पशु प्रेमी संगठित हो कर भारत सरकार को नीदरलैंड के मॉडल पर चलने का सुझाव दें तो वो दिन दूर नहीं जब हमारा देश भी आवारा पशुओं से मुक्त हो जाएगा।

इसलिए ज़रूरी है कि आवारा कुत्तों के हक़ के लिए लड़ने वाले एक्टिविस्ट इस बात का ध्यान दें कि उनकी ज़िम्मेदारी केवल बेज़ुबान पशुओं के प्रति ही नहीं बल्कि समाज के प्रति भी है। इसलिए इन एक्टिविस्टों को अपने गली मोहल्ले में सभी आवारा पशुओं को चिन्हित कर उनका पंजीकरण करवाना चाहिए। उनका टीकाकरण करवाना चाहिए। यदि उन आवारा पशुओं द्वारा किसी व्यक्ति को काट लिया जाता है या उसकी संपत्ति को नुक़सान पहुँचाया जाता है तो उसकी भरपाई और इलाज के लिए इन एक्टिविस्टों को ही ज़िम्मेदार ठहराना चाहिए। जिस तत्पर्ता से ये एक्टिविस्ट इन आवारा कुत्तों के अधिकारों के लिए नागरिकों से उलझ जाते हैं उसी तत्पर्ता से इन्हें नागरिकों की सुरक्षा व अधिकार को भी ध्यान में रखना चाहिए।

रजनीश कपूर, वरिष्ठ पत्रकार

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