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तीन साल के बच्चे को थप्पड़ मारने के आरोपी शिक्षक पर दर्ज FIR को कोर्ट ने किया रद्द, अदालत ने दी ये दलील

यह घटना वर्ष 2015 की है. कोर्ट ने कहा कि समझौते से दोनों पक्षों के बीच सद्भाव बढ़ेगा और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की ओर अग्रसरित करेगा. इस मामले में दोषसिद्धि की संभावना भी कम है.

Delhi Highcourt

दिल्ली हाई कोर्ट.

दिल्ली हाई कोर्ट ने समझौते के आधार पर एबीसीडी नहीं बोलने की वजह से एक तीन साल के बच्चे को थप्पड़ मारने के आरोपी शिक्षक के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है. न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंहदीरत्ता ने अपने फैसले में कहा कि शिकायतकर्ता बच्चे की मां एवं शिक्षक इस मामले को खत्म करना चाहते हैं. यह विवाद एक मामूली मुद्दे पर पैदा हुआ था. यह नौ साल से लंबित है. उन्होंने यह कहते हुए शिक्षक के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द कर दी.

9 साल बाद खत्म हुआ मामला

यह घटना वर्ष 2015 की है. कोर्ट ने कहा कि समझौते से दोनों पक्षों के बीच सद्भाव बढ़ेगा और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की ओर अग्रसरित करेगा. इस मामले में दोषसिद्धि की संभावना भी कम है. शिक्षक के खिलाफ पहले से कोई आपराधिक मामला भी नहीं है. न्यायमूर्ति ने इसके साथ ही किसी भी रूप में बच्चे को शारीरिक दंड देने की निंदा की और कहा कि भले ही इसका उद्देश्य बच्चे को यह एहसास दिलाना हो कि उसका कृत्य अस्वीकार्य, गलत या निराशाजनक है.

बच्चे को यातना देना गैरकानूनी

कोर्ट ने कहा कि बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में यह भी प्रावधान किया गया है कि स्कूलों में अनुशासन बच्चे की गरिमा के अनुरूप हो तथा किसी भी बच्चे को यातना या अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या दंड नहीं दिया जाए. कोर्ट ने कहा कि आरोपपत्र दाखिल होने तक पीड़ित बच्चे का बयान दर्ज नहीं किया गया था. पुलिस ने यह पता लगाने के लिए भी कभी किसी बाल मनोवैज्ञानिक/परामर्शदाता की सहायता नहीं ली कि लगभग साढ़े तीन साल का बच्चा अपने चेहरे पर चोट के निशान का सही कारण बताने की स्थिति में है या नहीं.

आरोपपत्र केवल अनुमान के आधार पर मां के बयान पर आगे बढ़ा है. शिक्षक ने कहा था कि मार्च में उसके और शिकायतकर्ता की मां के बीच मामला सुलझ गया है. उसका न तो नाबालिग को कोई नुकसान पहुंचाने या चोट पहुंचाने का कोई इरादा था और न ही एमएलसी में बाएं गाल और दाएं गाल पर चोट के निशान के अलावा ऐसा कोई स्पष्ट निशान दिखा है. इसलिए उसके खिलाफ दर्ज मामले को रद्द कर दिया जाए.

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शिक्षक के खिलाफ किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 23 (किशोर या बच्चे के साथ क्रूरता के लिए दंड) और आईपीसी की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए दंड) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए दंड) के तहत दर्ज प्राथमिकी दर्ज की गई थी. उसमें आरोप लगाया गया था कि मां ने नाबालिग बच्चे के चेहरे पर चोट के निशान पाए थे. उससे पूछताछ करने पर बच्चे ने बताया कि शिक्षक ने उसे इसलिए थप्पड़ मारा क्योंकि वह ‘एबीसीडी‘ अक्षर नहीं सुना पा रहा था.

-भारत एक्सप्रेस

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