दिल्ली हाईकोर्ट ने दो दशक से अधिक समय से जेल में बंद एक आतंकवादी फिरोज अहमद भट्ट को पैरोल देने से मना कर दिया. उसने जम्मू-कश्मीर जाने के लिए छह हफ्ते की पैरोल मांगी थी. कोर्ट ने गंभीर अपराधों में बंद आतंकवादी भट्ट के प्रति मानवीय संवेदना बरतते हुए उसे अपने माता-पिता से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात कराने का निर्देश दिया. भट्ट ने कहा था कि उसे अपने माता-पिता से मिलने और शादी करने के लिए पैरोल दी जाए.
वैसे उसके एक साथी को भी उसी तरह से पैरोल दिया गया था, लेकिन उसने जेल से बाहर आते ही फिर से आतंकवादी संगठनों में शामिल हो गया था, जो बाद में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया था. न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि भट्ट को पैरोल दिए जाने पर क्षेत्र में उसकी मौजूदगी व्यापक सुरक्षा हितों के लिए खतरा पैदा कर सकती है.
न्यायमूर्ति ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता देशद्रोह जैसे जघन्य अपराध का दोषी है. उसके साथी को जब पैरोल दिया गया था तो वह फिर से आतंकवादी संगठन में शामिल हो गया था. ये ऐसे कारक हैं जो उसके पैरोल देने के रास्ते में बाधा बन रहा है. इसलिए उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए यह अदालत उसे पैरोल देने के लिए उपयुक्त मामला नहीं मानता है.
मामले के अनुसार भट्ट आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (जेएएम) का सदस्य था. वह 11 सितंबर, 2003 से जेल में है. उसे आतंकवाद निरोधक अधिनियम की धारा 3(3)/3(5)/4/20 और आईपीसी की धारा 121/121/122/123 और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4, 5 के तहत दोषी ठहराया गया था. कोर्ट ने उसे आजीवन कठोर कारावास की सजा सुनाई थी. उसकी यह सजा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकररार रखी थी.
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