
ताहिर हुसैन. (फाइल फोटो)
दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन को सुप्रीम कोर्ट से फिलहाल राहत नही मिली है. ताहिर हुसैन की ओर से दायर अंतरिम जमानत याचिका पर जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस अमानुल्लाह ने विभाजित फैसला सुनाया है. कोर्ट ने मामले को सीजेआई के पास भेजा. सीजेआई अब इन मामले की सुनवाई के लिए तीन जजों की बेंच नक गठत करेंगे.
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता की छत से अप्रत्याशित सामग्री जब्त की गई. उस दौरान दूसरे घर जल रहे थे तो पथराव कैसे किया जा रहा था. इसे 1 किमी दूर नहीं फेंका जा सकता. एएसजी ने कहा कि ऐसे निष्कर्ष निकालना खतरनाक है.
जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि 5 साल तक सरकारी गवाह से पूछताछ नहीं की गई. वह अभी दिल्ली से बाहर हैं. मैं ज्यादा टिप्पणी नहीं करना चाहता. हाईकोर्ट ने ताहिर को अंतरिम जमानत देने से इंकार कर दिया, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उनकी अंतरिम जमानत की मांग दिल्ली में चुनाव लड़ने को लेकर है. उनकी नियमित जमानत की याचिका हाईकोर्ट में लंबित है.
हमारे पास सीमित मुद्दा चुनाव प्रचार के लिए जमानत देने से संबंधित है.हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि चुनाव प्रचार कोई मूल अधिकार से संबंधित मसला नहीं है और ना ही किसी अन्य अधिकार से जुड़ा है. याचिकाकर्ता भारतीय नागरिक है और एक नागरिक के रूप में उसके अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता इस मामले और पीएमएलए सहित 11 मामलों में शामिल है, एक नागरिक के रूप में उसकी विश्वसनीयता कमजोर हो जाती है. अधिकांश मामलों में, याचिकाएँ फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों से संबंधित हैं और उनमें से कई में उन्हें जमानत दी गई है.
वर्तमान मामले में यह न केवल दंगों से संबंधित है, बल्कि भारत सरकार के एक खुफिया अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या से भी संबंधित है. आरोप बहुत गंभीर प्रकृति के हैं और कई महत्वपूर्ण गवाहों से पूछताछ की जानी बाकी है. याचिकाकर्ता का तर्क है कि नामांकन के लिए केवल हिरासत पैरोल पर्याप्त नहीं है यदि उसे प्रचार के लिए बाहर नहीं जाने दिया गया. यह ध्यान दिया जाता है कि चुनाव लड़ने का अधिकार हिरासत पैरोल द्वारा संरक्षित है. चूंकि चुनाव के लिए प्रचार करने का अधिकार मौलिक या वैधानिक अधिकार नहीं है, इसलिए यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है कि याचिकाकर्ता को उपरोक्त उद्देश्य के लिए रिहा किया जाना चाहिए या नहीं.
कोर्ट ने कहा कि यदि अंतरिम जमानतदारों को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी जाती है तो इससे भ्रम का पिटारा खुल जाएगा और चूंकि चुनाव साल भर होते रहते हैं, इसलिए हर कैदी आएगा और कहेगा कि वे चुनाव लड़ना चाहते हैं और इससे मुकदमेबाजी की बाढ़ आ जाएगी और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती. यदि इसकी अनुमति दी जाती है, तो अगली कड़ी में याचिकाकर्ता वोट देने का अधिकार मांगेगा, जो एक मान्यता प्राप्त अधिकार है, लेकिन आरपीए द्वारा सीमित है, जिसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी चुनाव में मतदान नहीं करेगा, अगर वह जेल में बंद है या पुलिस की वैध हिरासत में है. वही जस्टिस अमानुल्लाह ने अपने फैसले में कहा कि जस्टिस पकंज मिथल से उनका अलग मत है. जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि ताहिर की दलील है कि वो पिछले पांच साल से जेल में हैं और लंबा समय हो गया है. पार्षद रहते उनका रिकॉर्ड अच्छा था.
दुर्भाग्यवश घटना के बाद से वह जेल में हैं. आठ मामलों में उन्हें जमानत मिली है और शेष में उनकी जमानत याचिकाएं अदालत में लंबित हैं. उनके मामले में स्पीडी ट्रायल नहीं हुआ और अभियोजन ने कई तेजी से सुनवाई का प्रयास नहीं किया. इसमें साढ़े चार साल से ज्यादा समय बीत गया. जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा यह दलील भी पेश की गई अरविंद केजरीवाल पार्टी के संयोजक और मुख्यमंत्री भी थे और उन्हें प्रचार करने के लिए जमानत दी गई. जबकि ताहिर AIMIM पार्टी के एक उम्मीदवार हैं. केजरीवाल का मामला तीन जजों की बेंच के सामने था. साधु सिंह के फैसले के आधार पर उन्हें जमानत मिली थी. जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा मैंने जांचा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ गंभीर आरोप हैं. लेकिन वह लंबे समय से जेल में हैं और उचित आधारों पर उन्हें निर्धारित समय के लिए जमानत दी जाए.
-भारत एक्सप्रेस
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