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कौन बनेगा घोसी का सियासी सिकंदर?

Ghosi Bypoll: घोसी विधानसभा में शुरू में लाल झंडे का असर दो दशक तक रहा लेकिन उसके बाद घोसी की फिजा बदली.

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अखिलेश यादव व योगी आदित्यनाथ

UP News: समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक और वर्तमान समय के भाजपा नेता दारा सिंह चौहान के इस्तीफे के साथ ही घोसी विधानसभा में चुनावी माहौल काफी गरम हो गया है. हर दल के संभावित उम्मीदवार अपने लिए सियासी जमीन तलाशने के चक्कर में लग गए हैं. कोई जातिगत आधार पर अपनी जमीन तलाश रहा है, तो कोई धार्मिक और सामाजिक आधार पर अपनी उपयोगिता सिद्ध करने में लगा हुआ है. ऐसे में कुछ चुनावी रणनीतिकारों का तो यहां तक मानना है कि यह उपचुनाव का रास्ता दिल्ली तक जाएगा. यानी स्पष्ट शब्दों में कह लें तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जो भी दल इस चुनाव में बाजी मारेगा वह लोकसभा चुनावों में भी अपनी मजबूत दावेदारी सिद्ध करेगा. ऐसे में इस उपचुनाव में सभी राजनैतिक दल अपने चुनावी पैतरों को काफी संयम से रख रहे हैं.

आजादी से अबतक का घोसी विधानसभा का सियासी सफर

घोसी विधानसभा में शुरू में लाल झंडे का असर दो दशक तक रहा लेकिन उसके बाद घोसी की फिजा बदली. आज़ादी के बाद से झारखंडे राय 1968 तक लगातार घोसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक एवं मंत्री रहे. इसके बाद रामबिलास पाण्डेय, जफर आजमी, विक्रमा राय, केदार सिंह, फागु चौहान, सुभाष यादव, अछैबर भारती, सुधाकर सिंह, दारा सिंह चौहान आदि विधायक रहे.

घोसी विधानसभा के अबतक के इतिहास में सबसे अधिक समय तक फागू चौहान विधायक रहे हैं. दो दूसरे पायदान पर झारखंडे राय काबिज हैं. वहीं सबसे कम समय तक विधायक कांग्रेस पार्टी के सुभाष यादव रहे जो दसवीं विधानसभा में मात्र 488 दिन ही विधायक रहे.

1980 में घोसी विधानसभा का चुनाव जब इंदिरा गांधी का कार्यालय रिपोर्टिंग लेने लगा

1980 में मऊ आजमगढ़ जनपद का हिस्सा हुआ करता था और विधानसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के करीबी कल्पनाथ राय ने कहने पर आजमगढ़ जनपद के सभी प्रत्याशियों का चयन हुआ था. उस वक्त घोसी से विक्रमा राय विधायक थे और कांग्रेस ने उनके खिलाफ केदार सिंह को प्रत्याशी बना दिया. जैसे – जैसे चुनाव नजदीक आ रहा था वैसे – वैसे केदार सिंह को हार का डर सता रहा था और उन्होंने इंदिरा गांधी के कार्यालय में पत्र भेजा की कल्पनाथ राय को घोसी में कैम्प कराया जाए नहीं तो घोसी की सीट कांग्रेस हार जायेगी. उसके बाद चुनाव भर कल्पनाथ राय घोसी विधानसभा में ही कैम्प कर गये और पूरी रिपोर्टिंग इंदिरा गांधी के कार्यालय को जाती थी और जब चुनाव परिणाम आया तो कांग्रेस की जीत दर्ज हुई.

क्या हैं स्थानीय जातिगत समीकरण?

वर्तमान समय में किसी भी चुनाव में जातिगत समीकरण बहुत मायने रखता है. ऐसे में घोसी विधानसभा का जातिगत आंकड़ा किसी भी प्रत्याशी और राजनैतिक दल के लिए काफी महत्वपूर्ण है. अगर घोसी विधानसभा क्षेत्र के अनुमानित जातिगत आंकड़ों की बात की जाए तो घोसी में सिंधी 800, मुसहर 900, कुम्हार 1200, नाई 1300, लाला 1600, गोंड/खरवार 3500, ब्राम्हण 4100, खटीक 4200, दुसाध 5400, कुर्मी 5700, कोइरी 6200, राजपूत 15000, निषाद 16000, लोनिया 36000, राजभर 40000, यादव 42000, भूमिहार 48400, दलित 62300, और मुसलमान मतदाता 60000 तथा अन्य मतदाता लगभग 70000 के करीब हैं जो घोसी विधानसभा में उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करते हैं. इस प्रकार से घोसी विधानसभा में एक तरफ जहां पिछड़े और सवर्ण का फैक्टर हावी हैं तो वहीं दूसरी तरफ दलित और मुसलमान का फैक्टर भी प्रभावी है इन दोनों फैक्टर को जो भी साध लेता है वह घोसी विधानसभा क्षेत्र का सिकंदर बन नेतृत्व करता है.



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