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ज्ञानवापी जैसी एक और कानूनी लड़ाई: महाभारत काल के लाक्षागृह की भूमि पर मजार बनाने का मामला न्यायालय में, 12 सितंबर को आएगा फैसला?

Lakshagraha or cemetery in Barnawa Baghpat: उत्‍तर प्रदेश में ज्ञानवापी और अयोध्या मंदिर जैसा विवाद अब बागपत जिले में भी न्यायालय में चल रहा है. बागपत सिविल कोर्ट लाक्षाग्रह विवाद में आगामी 12 सितम्बर को फैसला सुना सकती है.

कुलदीप पंडित.

अयोध्‍या के राम मंदिर और वाराणसी के ज्ञानवापी जैसा एक और मजहबी विवाद न्‍यायालय में पहुंचा है. यह विवाद है, महाभारत काल के लाक्षागृह की भूमि पर मजार और कब्र बनाने का, उस प्रॉपर्टी को हिंदू पक्ष वापस पाना चाहता है. इसके लिए दोनों पक्षों की बागपत न्यायालय में सुनवाई हुई है.

बता दें कि महाभारत ग्रंथ में वारणावत का इतिहास दर्ज है. वारणावत में ही पांडवों को जलाकर मारने की साजिश रची गई थी, इसके लिए शकुनी और दुर्योधन ने लाक्षागृह का निर्माण करवाया था. वो घटना द्वापर युग की थी और अब तक उसे हजारों वर्ष हो चुके हैं. हिंदू अनुयायियों का कहना है कि मुस्लिमों ने उसी जमीन पर बदरुद्दीन की मजार बनवा दी थी, और उसे वे अब कब्र की जमीन कहते हैं.

50 साल से चल रहा कोर्ट में मुकदमा

संवाददाता के अनुसार, बागपत के बरनावा गांव के हिंदू-मुस्लिम अनुयायियों के बीच यह विवाद चल रहा है, जिसे लाक्षागृह और बदरुद्दीन की मजार का विवाद कहा जा रहा है, जिसे लेकर 50 साल से कोर्ट में मुकदमा चल रहा है. आगामी 12 सितंबर को इस मामले पर बागपत सिविल कोर्ट फैसला सुना सकता है. हिंदू पक्ष मजार को लाक्षागृह का हिस्सा बता रहा है. जबकि मुस्लिम पक्ष इस हिस्से को बदरुद्दीन की मजार और उसके आस पास उनके अनुयायी की कब्र बताता है. इस मामले को लेकर 1970 में मुकीम खा ने वर्ष 1970 में मेरठ सिविल कोर्ट में वाद दायर किया था, जो अब तक बागपत कोर्ट में चल रहा है.

ऐसे हैं हिंदू मुस्लिम पक्ष के दावे

मुस्लिम पक्ष की मानें तो बरनावा गांव निवासी मुकीम खां ने वर्ष 1970 में वाद दायर करते हुए मेरठ अदालत से मालिकाना हक की मांग उठाई थी. अलग जिला बनने के बाद ये मामला बागपत कोर्ट में ट्रांसफर हो गया था, जो अब सिविल कोर्ट में विचाराधीन है. मुकीम खान ने टीले पर बदरुद्दीन शाह की दरगाह और मजार होने का दावा किया था. जो सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बतोर वक्फ प्रोपर्टी रजिस्टर्ड है. मामले में ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया गया था. जिसमें आरोप लगाया था की कृष्ण दत्त इसे खत्म कर हिंदुओं की तीर्थ बनाना चाहते हैं. जबकि कृष्णदत्त ने दावा किया था, की प्राचीन टीला और मजार लाक्षा गृह का हिस्सा हैं. जहां कोई भी मजार और कब्रिस्तान कभी नहीं रहा.

12 सितंबर को फैसला आ सकता है

टीले की कुछ भूमि का एएसआई सर्वेक्षण ने अधिग्रहण कर रखा है. शेष भूमि पर गांधी आश्रम समिति द्वारा महानद संस्कृत विद्यालय का संचालन हो रहा है. पिछले 50 साल से चल रहे विवाद का अब निपटारा होने की उम्मीद है. अब मामला फैसले की सुनवाई की तरफ बढ़ रहा है. जिसमें 12 सितंबर को फैसला होना तय माना जा रहा है.

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‘लाक्षागृह में ही रची गई थी पांडवों को जलाकर मारने की साजिश’
हिंदू अनुयायी मानते हैं कि महाभारत काल के समय में बागपत में कौरवों ने पांडवों को जलाने की साजिश रची थी, इसके लिए यहां लाक्षागृह बनवाया गया था. हालांकि, पांडव चतुराई से एक गुफा के रास्‍ते बच निकले थे. आज भी उस गुफा का वजूद बताया जाता है.

— भारत एक्सप्रेस

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