दिल्ली हाईकोर्ट
लोकसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन कर सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी भाषण देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य उम्मीदवारों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है.
याचिककर्ता शाहीन अब्दुल्ला, अमिताभ पांडे व देब मुखर्जी ने अपनी याचिका में 21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा में दिए गए प्रधानमंत्री के भाषण का हवाला दिया है और उस आधार पर कार्रवाई की मांग की है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कि भारत का चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है और अदालत इसका सूक्ष्म प्रबंधन नहीं कर सकती हैं. वह चुनाव आयोग के कामकाज को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि कौन तय करेगा कि आचार संहिता का उल्लंघन हुआ है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता निजाम पाशा ने कहा कि चुनाव आयोग की कार्रवाई इस बात पर निर्भर नहीं कर सकती कि नफरत फैलाने वाला व्यक्ति कौन है. प्रतिक्रिया एक समान होना चाहिए.
चुनाव आयोग की ओर से अधिवक्ता सुरुचि सूरी ने कहा कि आयोग ने शिकायत पर नोटिस जारी किया है. वह कानून के अनुसार कार्रवाई करेगा. इसके बाद न्यायमूर्ति याचिकाकर्ताओं से अपनी याचिका के समर्थन में सामग्री पेश करने को कहा और सुनवाई 13 मई के लिए स्थगित कर दी.
नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो
याचिका में आचार संहिता का उल्लंघन कर नफरत फैलाने वाले भाषण देने वाले उम्मीदवारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने सहित कानून के अनुसार तत्काल कार्रवाई करने को लेकर चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई है. इसमें कहा गया है कि अब्दुल्ला सहित कई नागरिकों ने काफी संख्या में शिकायतें दर्ज कराई हैं. इसके बावजूद चुनाव आयोग ने कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया है.
याचिका के अनुसार, आयोग की तरफ से इस तरह की निष्क्रियता स्पष्ट रूप से मनमानी, दुर्भावनापूर्ण व अस्वीकार्य है. यह उसके संवैधानिक कर्तव्य का उल्लंघन है. साथ ही यह आयोग को निरर्थक बनाने जैसा है, जिसका मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि चुनाव में जीत हासिल करने के लिए उम्मीदवारों की ओर से सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे की भावना को नजरअंदाज न किया जाए.
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि चुनाव आयोग की इस तरह की चूक संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 324 का पूर्ण और प्रत्यक्ष उल्लंघन है, बल्कि स्वतंत्र, निष्पक्ष और निष्पक्ष आम चुनावों में बाधा डाल रही है. प्रत्याशियों का उपरोक्त भाषण सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर व्यापक रूप से प्रसारित किए जा रहे हैं.