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कैदियों की समयपूर्व रिहाई के आवेदन को सरसरी तौर पर नहीं निपटाया जाना चाहिए- दिल्ली हाई कोर्ट

न्यायमूर्ति ने इस बात पर गौर किया कि एसआरबी ने केवल उस कारक पर विचार किया था कि क्या अपराध ने बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित किया था, लेकिन अन्य कारकों को स्पष्ट करने में विफल रहा है.

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दिल्ली हाई कोर्ट

हाई कोर्ट कहा कि लंबे समय तक जेल में रहने वाले कैदियों की समयपूर्व रिहाई के आवेदन को सरसरी तौर पर नहीं निपटाया जाना चाहिए. न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी यह टिप्पणी एक दोषी हरि सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसे एक विमान अपहरण का दोषी ठहराए जाने के बाद 19 साल से अधिक समय तक जेल में रखा गया था. उन्होंने इसके साथ ही सिंह को राहत देते हुए मामले को स्पष्ट तर्क के साथ समयपूर्व रिहाई के आवेदन पर पुनर्विचार करने के लिए महानिदेशालय (जेल) और एसआरबी को वापस भेज दिया.

न्यायमूर्ति ने इस बात पर गौर किया कि एसआरबी ने केवल उस कारक पर विचार किया था कि क्या अपराध ने बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित किया था, लेकिन अन्य कारकों को स्पष्ट करने में विफल रहा है. उन्होंने ने कहा कि यह अदालत सिंह के अपराध की गंभीरता को पहचानती है, लेकिन यह उसकी समयपूर्व रिहाई से इनकार करने का एकमात्र कारण नहीं होना चाहिए.

सिंह ने लगभग 16 साल और पांच महीने की कैद काटी थी और कुल मिलाकर लगभग तीन साल और नौ महीने की छूट अर्जित की थी. उनके समग्र जेल आचरण को संतोषजनक माना गया था और उन्हें बिना किसी घटना के कई बार जमानत, पैरोल और फर्लो दी गई थी. दोषी सिंह ने उप सचिव (गृह) के वर्ष 2021 में समयपूर्व रिहाई के अपने आवेदन की अस्वीकृति किए जाने को चुनौती दी है. उन्हें अपहरण विरोधी अधिनियम, 1982 और 2021 में भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. उन्होंने कहा था कि वे अप्रैल 1993 से न्यायिक हिरासत में हैं.

कोर्ट ने कहा कि सबसे गंभीर अपराध के लिए भी कारावास का उद्देश्य सुधारात्मक है, न कि प्रतिशोधात्मक. खासकर जब एक दोषी को कारावास की पर्याप्त और लंबी अवधि से गुजरना पड़ा हो. दोषी की उम्र, स्वास्थ्य, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, पारिवारिक संबंध, सजा के बाद और जेल आचरण जैसे अन्य कारकों पर विचार किए बिना, केवल अपराध की प्रकृति के आधार पर किसी दोषी को छूट का लाभ देने से इनकार नहीं किया जाना चाहिए.

सिंह वर्ष 2019 में समय से पहले रिहाई के पात्र बन गए, लेकिन उनका नाम दो साल की देरी के बाद सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) को भेजा गया था. सिंह ने आरोप लगाया कि एसआरबी ने दिल्ली जेल नियमों और उनके संवैधानिक अधिकारों के विपरीत, यांत्रिक तरीके से उनके आवेदन को खारिज कर दिया.

-भारत एक्सप्रेस

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