नारी को ही इस संपूर्ण सृष्टि की जननी मानते हैं. हमारे समाज में नारियों को पुरुषों के समान ही अधिकार भी प्राप्त हैं, लेकिन आज भी हमारे समाज में कुछ ऐसे कुंठित मानसिकता के लोग हैं जो एक मंच से नारियों के समानता की बात तो खुब करते हैं, लेकिन जब उनके सामने एक नारी की बात आती है तो वे उसे एक अबला समझने की भूल कर बैठते हैं. उन्हें यह नहीं पता होता कि जब कोई नारी अपने आत्मसम्मान और अधिकारों की लडाई लड़ती है, और खासतौर से यह लड़ाई जब उसके परिवार के सम्मान की होती है, तो वह शक्ति का रूप धारण कर लेती है. आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसी ही सशक्त महिला की जिन्होंने अपने परिवार के लिये तो लड़ा ही साथ ही साथ समाज के हित के लिए भी उत्कृष्ट कार्य किया. जी हाँ हम बात कर रहे हैं 1981 में राजस्थान के झालावाड जिले के झलारापाटन में जन्मी उत्तर प्रदेश व राजस्थान में सामाजिक सरोकार के लिए निरंतर बेहतरीन कार्य करने वाली मुकुल चौधरी राजस्थान कैडर के 2009 बैच के आईपीएस अधिकारी पंकज चौधरी की धर्मपत्नी हैं, मुकुल चौधरी ने आम जनमानस की सेवा से खुद को इस कदर जोड़ा कि वो आम महिलाओं के लिए एक मिसाल बन गयी हैं.
चुनौतियों से भी हार नहीं मानी
बड़े लोगों के लिए तो हर कोई सोचता है, लेकिन जो व्यक्ति वास्तव में जमीन से जुड़ा होता है वही जमीन से जुड़े लोगों के बारे में सोचता है. ऐसे में मुकुल चौधरी राजस्थान के उन लाखों सफाई कर्मियों की आवाज बनी, जिनकी पीड़ा आमतौर पर कोई नहीं सुनता था. उन्होंने देखा कि जब कोई सफाई कर्मचारी गहरे नाले या सीवर में सफाई करने के लिए उतरता है तो वह उसके लिए कितना खतरनाक होता है? उन्होंने इस समस्या को लेकर करोना काल में पीआईएल के ज़रिए आवाज उठाना शुरू कर दिया और राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश व डबल बेंच के द्वारा 03 जुलाई 2020 को पारित ऐतिहासिक फ़ैसले ने राज्य सरकार को सफ़ाईकर्मियों की माँग मानने को मजबूर कर दिया.
जब पति सरकार के निशाने पर आये
राज्य सरकार ने उनकी इस जनहित के ज़रिए मांग को स्वीकार तो कर लिया लेकिन इसकी वजह से पंकज चौधरी सरकार के निशाने पर आ गये. पंकज चौधरी ने एसपी जैसलमेर रहते हुए 2013 में गाजी फ़क़ीर की हिस्ट्रीशीट व तत्कालीन विधायक व वर्तमान मंत्री सालेह मोहम्मद के खखिलाफ एक मामले में मुक़दमा दर्ज करा दिया था इसके बाद मात्र 48 घंटे में ही पंकज चौधरी का तबादला कर दिया था, जिसकी वजह से तत्कालीन सरकार की बहुत किरकिरी भी हुई थी.
सरकारें बदलती रहीं लेकिन पंकज चौधरी की मुसीबतें कम होती नहीं दिखीं, 2009 बैच के अधिकांशत: आईपीएस डीआईजी बन गये हैं लेकिन पंकज चौधरी का प्रमोशन रुका हुआ है लेकिन इतना सब होने के बाद भी मुकुल चौधरी ने हार नहीं मानी और अपनी लडाई जारी रखी,जिसके फलस्वरूप वर्ष 2021 में उन्होंने अपने पति को उनका खोया हुआ सम्मान न्यायालय से वापस दिलाया. पंकज चौधरी एक लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद भारतीय पुलिस सेवा में पुनः शामिल हुए. लोग बताते हैं कि पंकज चौधरी जहां भी रहे उन्होंने अपनी अलग छाप छोड़ी है. बाँसवाड़ा, जैसलमेर व बूंदी एसपी रहते हुए पंकज चौधरी ने साहसिक कार्य से अमिट पहचान बनायी है.
मुकुल चौधरी का अध्यात्म से बेहद जुड़ाव है मात्र 40 वर्ष की आयु में चारों धाम ,12 ज्योतिर्लिंग का तीन-तीन बार सपरिवार दर्शन कर चुकी हैं. अध्यात्म में रुचि ने वृंदावन की तरफ़ आकर्षित किया. मुकुल चौधरी पिछले 3 वर्ष से अध्यात्म के उत्थान के लिए प्रतिष्ठित संतों के सानिध्य में वृंदावन व बरसाना में सक्रिय हैं एवं ब्रज के विकास के लिए भी निरंतर कार्य कर रही हैं.
सम्मान के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री से भी लिया राजनीतिक लोहा
मुकुल चौधरी को यह बात अब खटकने लगी थी कि जब एक प्रसाशनिक सेवा के शीर्ष व्यक्ति के साथ ऐसा हो सकता है तो फिर आम जनता का क्या? इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ झलारापाटन से राजस्थान विधान सभा चुनाव में ताल ठोक दिया. इसके बाद उन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव में जोधपुर सीट से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत के खिलाफ भी चुनाव लड़ा और उस लोकसभा क्षेत्र से गजेंद्र सिंह शेखावत विजयी हुए. उनके चुनाव लड़ने का मतलब हार और जीत नहीं बल्कि सत्ता के मद में चूर सरकारों को आईना दिखाना था, मुकुल चौधरी के इस हिम्मत की दाद पुरा राजस्थान देता है. मुकुल चौधरी को उनके बेहतर कार्यों के लिए उन्हें वर्ष 2022 का प्रतिष्ठित ग्लोबल इंस्पिरेशन इंटरनेशनल अवार्ड लंदन में दिया गया है.
काठमांडू नेपाल में डाक्टरेट की उपाधि से हुई सम्मानित
उत्तर प्रदेश व राजस्थान में सामाजिक सरोकार के लिए बेहतरीन कार्य करने वाली मुकुल चौधरी को हाल ही में काठमांडू, नेपाल में आयोजित समारोह में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया. इस अवसर पर नेपाल के पूर्व उपराष्ट्रपति, कई सांसदो व विधायकों समेत सैकड़ों बुद्धिजीवी शामिल हुए थे.
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