Modi Government affidavit in Supreme Court on Rohingya: केंद्र सरकार ने रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है. कोर्ट में दिए हलफनामें में केंद्र ने कहा कि भारत में शरणार्थियों को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता. दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और सीमित संसाधन वाले विकासशील देश में अपने नागरिकों को प्राथमिकता देना जरूरी है. विधायी ढांचे के बाहर शरणार्थियों की कोई मान्यता नहीं है.
इतना ही नहीं केंद्र ने कहा कि अधिकांश विदेशी भारत में अवैध रूप से घुसे हैं. संविधान के अनुसार मौलिक अधिकार केवल देश के नागरिकों के लिए ही है. ऐसे में याचिकाकर्ता विदेशियों के लिए नए वर्क के निर्माण की मांग नहीं कर सकते हैं. इस तरह के फैसले विधायिका के विशेषाधिकार में होते हैं. न्यायिक आदेशों के माध्यम से इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है. हलफनामे में कहा गया है कि अवैध प्रवासी होने के कारण रोहिंग्या संविधान के भाग – 3 के तहत सुरक्षा का दावा नहीं कर सकते क्योंकि भाग-3 केवल देश के नागरिकों की सुरक्षा करता है.
सरकार ने अपने हलफनामे में आगे कहा कि भारत पहले से अवैध घुसपैठ की समस्या से गुजर रहा है. ऐसे में पड़ोसी देशों से आने वाले अवैध नागरिकों के कारण कई राज्यों का जनसांख्यिकीय संतुलन बिगड़ रहा है. सरकार के पास रिपोर्ट है कि बड़ी संख्या में अवैध घुसपैठिए फर्जी पहचान पत्र हासिल करने, मानव तस्करी और गैर कानूनी गतिविधियों में शामिल है. वो अपनी पहचान छिपाकर वोटर आईडी कार्ड और पासपोर्ट हासिल कर रहे हैं. उनकी पहचान कर उन्हें वापस भेजा जाना जरूरी है.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए हलफनामे में इस दलील को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि रोहिंग्याओं को तिब्बत और श्रीलंका से आने वाले शरणार्थियों के बराबर दर्जा मिले. इसके साथ ही सरकार ने कहा कि भारत शरणार्थियों के दर्जे को लेकर 1951 के रिफ्यूजी कन्वेंशन और शरणार्थी संरक्षण से जुड़े 1967 के प्रोटोकाॅल पर साइन नहीं किए हैं. भारत यूएनएचसीआर के रिफ्यूजी कार्ड को भी मान्यता नहीं देता. भारत शरणार्थियों के संबंध में घरेलू नीतियों के तहत फैसला लेने में स्वतंत्र है.
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