सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार (21 अक्टूबर) को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की उस सिफारिश पर रोक लगा दी, जिसमें शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) का पालन नहीं करने वाले मदरसों (Madrasas) को बंद करने की बात कही गई थी. अदालत ने केंद्र और उत्तर प्रदेश व त्रिपुरा सरकारों द्वारा जारी निर्देशों पर भी रोक लगा दी गई.
यह अंतरिम आदेश भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने जमीयत उलमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama-i-Hind) की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया. याचिका में दावा किया गया था कि इससे अनुच्छेद 30 के तहत धार्मिक अल्पसंख्यकों को शिक्षा प्रदान करने का अधिकार प्रभावित होता है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की पीठ में सीजेआई के अलावा जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे. पीठ ने निर्देश दिया, ‘अगले आदेशों तक राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के 7 जून और 26 जून 2024 के पत्र और उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्य सचिव के 26 जून 2024 के परिणामी पत्र और भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के शिक्षा और साक्षरता विभाग के सचिव द्वारा जारी 10 जुलाई 2024 के पत्र और त्रिपुरा सरकार के प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय द्वारा जारी 28 अगस्त 2024 के पत्र पर कार्रवाई नहीं की जाएगी.’
7 जून 2024 को एनसीपीसीआर ने यूपी के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर आरटीई अधिनियम का पालन न करने वाले मदरसों की मान्यता वापस लेने को कहा था. 25 जून को लिखे अपने पत्र में आयोग ने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव से कहा था कि वे सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मौजूदा मदरसों का निरीक्षण करने और आरटीई अधिनियम की आवश्यकताओं का पालन न करने वाले मदरसों की मान्यता वापस लेने के निर्देश जारी करें.
26 जून 2024 को यूपी के जिला कलेक्टरों को ‘राज्य में सभी सरकारी सहायता प्राप्त/मान्यता प्राप्त मदरसों की विस्तृत जांच करने’ और ‘मदरसों में नामांकित सभी बच्चों का स्कूलों में तत्काल प्रवेश सुनिश्चित करने’ के लिए कहा गया. त्रिपुरा सरकार भी 28 अगस्त 2024 को इसी तरह के निर्देश जारी करती है. एनसीपीसीआर के संचार के बाद केंद्र ने भी 10 जुलाई 2024 को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर उनसे उचित कार्रवाई करने को कहा था.
-भारत एक्सप्रेस
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