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एक जुलाई से ब्रिटिश राज के इन औपनिवेशिक कानूनों का हो जाएगा अंत, थाने से लेकर कचहरी तक बढ़ी हलचल

नए कानून लागू होने के मद्देनजर आपराधिक कानून के जानकारों ने कमर कस ली है। थाने से लेकर कचहरी तक इसको लेकर हलचल है।

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ब्रिटिश राज के औपनिवेशिक कानूनों का एक जुलाई को अंत हो जाएगा है। इस इसका स्थान भारतीय न्याय संहिता-2023, भारतीय सुरक्षा संहिता-2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम -2023 ले लेगा। इन तीनों कानून के तहत जीरो एफआईआर, ऑनलाइन पुलिस शिकायत, इलेक्ट्रॉनिक माध्यमो से समन भेजना और गंभीर अपराधों में क्राइम सीन की वीडियोग्राफी अनिवार्य हो गया है। इन कानूनों का लागू करने का मुख्य उद्देश्य सभी के लिए अधिक सुलभ, सहायता और प्रभावी न्याय प्रणाली सुनिश्चित करना है।

इन कानूनों में हुआ बदलाव

पिछले साल पारित ये नए कानून ब्रिटिश काल के क्रमशः भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्थान ले लिया है। तीनों आपराधिक कानूनों को लागू होने से पहले बुनियादी स्तर पर 40 लाख लोगों को प्रशिक्षित किया गया है। इसमें 5.65 लाख पुलिस कर्मी, जेल अधिकारी भी शामिल है। इन सभी को इन नए कानूनों के बारे में सबको जागरूक करने के लिए भी प्रशिक्षित किया गया है। एक व्यक्ति सशरीर पुलिस स्टेशन में उपस्थित हुए बगैर भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से घटना की रेपोरर कर सकता है। इससे पुलिस को भी त्वरित कार्रवाई में मदद मिलेगी।

जीरो एफआईआर की शुरुआत

नए कानून में जीरो एफआईआर की शुरुआत की गई है। पीड़ित किसी भी थाने क्षेत्र में अपनी एफआईआर दर्ज करा सकता है। पीड़ित को एफआईआर की निःशुल्क कॉपी भी मिलेगी। सशक्त जांच के लिए गंभीर आपराधिक मामलों में सबूत जुटाने के लिए क्राइम सीन पर फॉरेंसिक विशेषज्ञों का जाना अनिवार्य। सबूत एकत्र करने की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी अनिवार्य होगी। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध में जांच एजेंसियों को दो महीने के अंदर जांच पूरी करनी होगी। 90 दिनों के अंदर पीड़ितों को केस में प्रगति की नियमित अपडेट देनी होगी।

अपराध के शिकार महिला और बच्चों को सभी अस्पतालों में फर्स्ट एड या ईलाज निःशुल्क मिलने की गारंटी होगी। चुनौती भरी परिस्थितियों में भी पीड़ित जकड़ ठीक हो सकेंगे। गवाहों की सुरक्षा व सहयोग के लिए सभी राज्य सरकारें विटनेस प्रोटेक्शन प्रोग्राम लागू करेंगी। दुष्कर्म पीड़िताओं को ऑडियो-वीडियो माध्यम से पुलिस के समक्ष बयान दर्ज करने की छूट मिलेगी।

नए कानून में मामूली अपराधों के लिए दंडस्वरूप सामुदायिक सेवा विधा शुरू। समाज के लिए सकारात्मक योगदान देकर दोषी अपनी गलतियों को सुधारने का काम करेगा। सुनवाई में देरी से बचने और न्याय की त्वरित बहाली के लिए कोई अदालत किसी मामले को अधिकतम दो बार ही स्थगित कर सकेगी। सभी कानूनी कार्यवाही इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से हो सकेगी। पीड़ित महिला की अदालती सुनवाई महिला मजिस्ट्रेट ही करेगी। अन्यथा संवेदनशील मामले में किसी महिला की उपस्थिति में पुरुष मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज होगा।

नए कानून का दिलचस्प पहलू

नए कानून में जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि गिरफ्तारी की सूरत में व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार दिया गया है। इससे गिरफ्तार व्यक्ति को तुरंत सहयोग मिल सकेगा। महिलाओं 15 साल से कम उम्र के लोगों 60 वर्ष की आयु से अधिक के लोगों और दिव्यांग या गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों को पुलिस थाने आने से छूट दी जाएगी और वे अपने निवास स्थान पर ही पुलिस सहायता प्राप्त कर सकता है।

पिछले साल शीतकालीन सत्र में हुई थी चर्चा

संसद ने पिछले साल शीतकालीन सत्र में इन विधेयकों पर चर्चा की थी और इन्हें पारित किया था। लोकसभा के कुल 37 सदस्यों और राज्य सभा के 40 सदस्यों ने इस चर्चा में भाग लिया था। वही नए कानून लागू होने के मद्देनजर आपराधिक कानून के जानकारों ने कमर कस ली है। थाने से लेकर कचहरी तक इसको लेकर हलचल है। क्योंकि एफआईआर से लेकर कोर्ट के निर्णय तक की सुनवाई पूरी तरह से ऑनलाइन होगा। बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके है कि तीनों विधेयकों का उद्देश्य दंड देने का नही है। बल्कि न्याय देने का है। उन्होंने कहा था कि नए आपराधिक कानूनों के लागू होने से तारीख पे तारीख युग का अंत सुनिश्चित होव और तीन साल में न्याय मिलेगा।

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