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भारत हमेशा दुनिया से आगे रहा है, एक समय 19 में से 18 विश्वविद्यालय यहीं थे: डॉ इंद्रेश कुमार

भारत हमेशा से आगे था, एक समय 19 विश्वविद्यालयों में से 18 भारत में स्थित थे. एक विश्वविद्यालय चीन में था जब कि पश्चिम में एक भी नहीं था.

भारत हमेशा से आगे था, एक समय 19 विश्वविद्यालयों में से 18 भारत में स्थित थे. एक विश्वविद्यालय चीन में था जब कि पश्चिम में एक भी नहीं था. उपनिवेशवादियों ने हमसे ज्ञान वापस ले लिया और हमें सभ्यता की अपनी अवधारणा सिखाई और हमें असंस्कृतिबद्ध किया. ये विचार आरएसएस के राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य और राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच (आरएसजेएम) के संरक्षक डॉ. इंद्रेश कुमार ने भारत, गिरमिटिया और अफ्रीका पर चौथे हिमालय हिंद महासागर राष्ट्र समूह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह में कही. राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच (आरएसजेएम), जामिया मिल्लिया इस्लामिया, सेंटर फॉर हिमालयन स्टडीज़ और दिल्ली विश्वविद्यालय लॉ फ़ेकल्टी के संयुक्त तत्वाधान में दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न हो गया.

सम्मेलन में कई अंतरराष्ट्रीय वक्ताओं, राजनयिकों और शिक्षा, राजनीति और सामाजिक विशेज्ञों ने भाग लिया. इनमें उल्लेखनीय थे राजनयिक एच.ई. सूडान के डॉ. मुआविया एल्बुखारी, एच.ई. जाम्बिया की नोरा बकुकु, एच.ई. जाम्बिया के स्टीवन चिसुलो, एच.ई. चाड के डी’जिमटोल कोडजिनम, एच.ई. गैबो एच.ई. की जोसफीन पैट्रिशिया गैबॉन के नत्यम एह्या, एच.ई. टोगो के यावो एडेम अकपेमाडो, एच.ई. बुर्किना फासो के डॉ. डिज़ायर बोनिफेस और एच.ई. सिएरा लियोन की तेजिंदर कौर. 27 देशों के प्रतिनिधित्व के साथ, सम्मेलन ने भारत, गिरमिटिया और अफ्रीका के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक सहयोग पर व्यावहारिक चर्चा और सहयोग के उपायों पर विमर्श किया गया.

डॉ. इंद्रेश कुमार ने कहा कि भारत और गिरमिटिया के बीच केवल रणनीतिक या आर्थिक कारणों से ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों के कारण भी बहुत करीबी रिश्ता है। भारत और गिरमिटिया के बीच संघर्ष का कोई इतिहास नहीं है, स्थानीय लोगों को भारतीयों से कभी कोई समस्या नहीं थी, जिसका कारण हमारे रहन-सहन का तरीका था.

टोगो के राजदूत यावो एडेम अकपेमाडो ने कहा कि भारत और अफ्रीका के बीच संबंधों को समझने की गहरी आवश्यकता है और हम राष्ट्रों के बीच समझ और सहयोग को बढ़ावा देने वाले प्लेटफार्म की सराहना करते हैं. चाड के राजदूत ने कहा कि चाड और भारत के बीच ऐतिहासिक संबंध गहन जुड़ाव और साझेदारी की नींव के रूप में काम करते हैं. इस सम्मेलन जैसी पहल साझा हितों का पता लगाने और सामान्य लक्ष्यों की दिशा में काम करने का अवसर प्रदान करती है.

सम्मेलन के विषय पर बोलते हुए बुर्किना फासो के राजदूत डॉ. डिज़ायर बोनिफेस सोमे ने कहा कि सहकारी और राजनयिक संबंधों को मजबूत करने की आवश्यकता है क्योंकि हम एक इतिहास और सांस्कृतिक विरासत साझा करते हैं. अभिसरण के क्षेत्रों की पहचान करना और अपने-अपने राष्ट्रों के हित के लिए उनका लाभ उठाना अनिवार्य है. इस सम्मेलन जैसे मंच संवाद को बढ़ावा देने और सहयोग के पुल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

देश-दुनिया की जानी-मानी हस्तियों ने इस विषय पर अपनी गहरी समझ प्रस्तुत की. एयर मार्शल (डॉ.) आर.सी. बाजपेयी, प्रो. ए.बी. शुक्ला (सेवानिवृत्त आईएएस), आईजीएनसीए, लेफ्टिनेंट जनरल के.जे. सिंह, डॉ. राजीव नयन, आईडीएसए, प्रो. अबुजर खैरी, जेएमआई और डॉ. मुलेटा सेडाटो, इथियोपिया उन हस्तियों में शामिल थे, जिन्होंने सम्मेलन के शैक्षणिक सत्र की अध्यक्षता की और संगठन के उद्देश्यों पर अपने विचार व्यक्त किए.

इस अवसर पर राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) गोलोक बिहारी ने कहा कि भारतीय परंपराओं का पालन न केवल भारत में बल्कि अफ्रीका में भी सांस्कृतिक जुड़ाव को उजागर करते हुए उसी सार के साथ किया जाता है. उन्होंने यह भी बताया कि कैसे गांधी जी ने अंग्रेजों के भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अफ्रीका में एक चमकता हीरा बन गए.

स्वागत भाषण देते हुए जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रेजोल्यूशन के निदेशक प्रोफेसर एम. महताब आलम रिजवी ने कहा कि भारतीय और गिरीमितियन संस्कृति अपने साझा इतिहास के कारण एक दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं. उन्होंने सम्मेलन के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि दो दिवसीय सम्मेलन में आयोजित शैक्षणिक सत्र में व्यक्त किए गए बहुमूल्य सुझाव भारत और अफ्रीकी देशों के संबंधों को और अधिक मज़बूत करने में सहायक साबित होंगे. दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन ऑफ वर्क्स, प्रो. बी डब्ल्यू पांडे ने सम्मेलन में उपस्थित सभी लोगों विश्वविद्यालय की ओर से स्वागत किया.
आरएसजेएम के सह संगठन मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने सम्मेलन को सफल बनाने में उनके अमूल्य योगदान के लिए सभी प्रतिभागियों, वक्ताओं, आयोजकों और सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया. उन्होंने साझा चुनौतियों से निपटने और व्यापक भलाई के लिए सामूहिक क्षमता का दोहन करने में निरंतर बातचीत और सहयोग के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने विशेष रूप से आरएसजेएम के संरक्षक डॉ. इंद्रेश कुमार को उनके अमूल्य समय के लिए और प्रोफेसर अलका चावला निदेशक, सीएलसी को आयोजन स्थल और संसाधन उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद दिया.

-भारत एक्सप्रेस



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