निजी संपत्ति संविधान के अनुच्छेद 39 (B) के तहत समुदाय के भौतिक संसाधन की परिभाषा के अंतर्गत आएगी या नहीं इसको लेकर सीजेआई की अध्यक्षता (CJI D.Y Chandrachud) वाली 9 जजों की संविधान पीठ (9 Judges Constitutional Bench) ने बहुमत से अपना फैसला सुनाया है. पीठ ने अपने फैसले में कहा कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं कह सकते, कुछ खास संसाधनों को ही सरकार सामुदायिक संसाधन मानकर इसका इस्तेमाल सार्वजनिक हित में कर सकती है.
साथ संवैधानिक पीठ ने जस्टिस कृष्णा अय्यर के पिछले फैसले को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी सम्पत्तियों को राज्य सरकार अधिग्रहित कर सकती है. संविधान पीठ ने कहा कि पुराना फैसला आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था. हालांकि राज्य सरकारें उन संसाधनों पर दावा कर सकती है, जो भौतिक और सार्वजनिक भलाई के लिए समुदाय द्वारा रखे जाते है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के संविधान पीठ ने दाखिल 16 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है. संविधान पीठ में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धुलिया, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे.
संविधान पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वैंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित अन्य अधिवक्ताओं की दलीले सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस अनुच्छेद में जनहित के लिए संपत्ति के पुनर्वितरण से संबंधित है. सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन महाराष्ट्र की अपीलों पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 1986 में महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट एक्ट (म्हाडा) में अध्ययन 8 ए की शुरुआत पर सवाल उठाया गया था, जिसके द्वारा राज्य 1 सितंबर 1940 से पहले निर्मित सम्पत्तियों का अधिग्रहण कर सकता था और ग्रुप हाउसिंग सोसाइटियों द्वारा कब्जा कर लिया गया.
अनुच्छेद 39 (C) में कहा गया है कि आर्थिक प्रणाली के संचालन के परिणामस्वरूप सामान्य हानि के लिए धन और उत्पादन के साधनों का संकेन्द्रण नहीं होता है. संविधान पीठ ने अनुच्छेद 39 के विस्तार का उल्लेख किया और कहा कि जिस प्रश्न में वह अदालत की सहायता कर रहे है वह यह है कि क्या निजी संपत्ति अनुच्छेद 39 के अंतर्गत आएगी. उन्होंने अनुच्छेद 39 के बारे में अपनी धारणा के बारे में बारे में विस्तार से बताया. पीओए और अन्य ने अधिनियम के अध्याय आठ-ए को चुनौती देते हुए दावा किया है कि इस अध्याय के प्रावधान संपत्ति मालिकों के खिलाफ है और उन्हें बेदखल करने का प्रयास करते हैं.
मुख्य याचिका पीओए द्वारा 1992 में दायर की गई थी और 20 फरवरी 2002 को नौ सदस्यीय संविधान पीठ को भेजे जाने से पहले इसे तीन बार पांच और सात जजों की संविधान पीठ के पास भेजा गया था. मुंबई के प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन सहित अन्य पक्षकारों ने दलील दी है कि संवैधानिक प्रावधान के नाम पर राज्य के अधिकारी निजी संपत्ति पर कब्जा नहींं कर सकते है. एसोसिएशन के कहना है कि अनुच्छेद 39 (B) और 31 (C) की संवैधानिक योजनाओं के तहत संपत्ति पर कब्जा नहीं किया जा सकता है.
-भारत एक्सप्रेस
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