दिल्ली हाईकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत न्यायेतर तलाक के माध्यम से विवाह विच्छेद के लिए पारिवारिक न्यायालय अधिनियम की धारा 7 के तहत दाखिल किसी भी याचिका पर विचार करते समय पारिवारिक अदालतों के मार्गदर्शन के लिए निर्देश जारी किया है. न्यायमूर्ति रेखा पल्ली एवं न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी की पीठ ने निर्देश दिया कि पारिवारिक अदालत प्रतिवादी को नोटिस जारी करने के बाद दोनों पक्षों के बयान दर्ज करेगा.
पीठ ने कहा कि जहां तलाक की शत्रे किसी समझौते यानी तलाक नामा, खुला नामा या मुबारत समझौते में दर्ज है तो उसका मूल प्रति पारिवारिक अदालत के समक्ष पेश करना होगा. उन समझौते की संतुष्टि के बाद अदालत उनका विवाह विच्छेदन का आदेश पारित करेगा. उसने यह दिशा-निर्देश एक पत्नी की अपील पर विचार करते हुए जारी किया. पत्नी ने याचिका दाखिल कर पारिवारिक अदालत के उस उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें दंपत्ति की ओर से घोषणा के अनुसार उनके विवाह विच्छेद का आदेश मांगा गया था.
हाईकोर्ट ने कहा कि यह समझौता केवल पक्षों के बीच एक निजी समझौता है. अगर पक्षकार चाहते हैं कि उनके विवाह विच्छेद को सार्वजनिक दस्तावेज़ में दर्ज किया जाए तो उनके लिए पारिवारिक कानून की धारा 7(बी) के तहत अपने विवाह की स्थिति के बारे में घोषणा करना हमेशा खुला रहता है. उसने पत्नी की अपील को स्वीकार करते हुए दोनों के बीच विवाह विच्छेद मान लिया.
-भारत एक्सप्रेस
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