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रूस-यूक्रेन में बढ़ी तकरार, फिर निकलेगी परमाणु हमले की तलवार?

समस्या यह है कि युद्ध को शुरू हुए सवा साल से ज्यादा वक्त बीत गया है लेकिन किसी को भी यह नहीं पता कि युद्ध रुकेगा कैसे? इतिहास में कई बार दुनिया का चौधरी बन चुका अमेरिका भी इस बार लाचार होकर भारत की ओर देख रहा है।

June 4, 2023

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, पीएम मोदी और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की

रूस-यूक्रेन की लड़ाई में एक बार फिर वैश्विक जंग की आहट सुनाई दे रही है। बीते सप्ताह यूक्रेनी ड्रोन ने मॉस्को के रिहाइशी इलाकों में हमला किया जिसे रूस ने तुरंत द्वितीय विश्व युद्ध से जोड़ते हुए पिछले सात दशक में मॉस्को पर सबसे खतरनाक हमला करार दे दिया। रूसी सांसद मैक्सिम इवानोव ने इस हमले की तुलना द्वितीय विश्व युद्ध में नाजी जर्मनी के आक्रमण से की और कहा कि इससे सिद्ध होता है कि रूसी शहरों पर यूक्रेनी हमले महज आरोप नहीं, बल्कि वास्तविकता हैं। बेशक इन हमलों से रूस को जान-माल का कोई खास नुकसान तो नहीं हुआ लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि जिन इलाकों को निशाना बनाया गया वहां रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और देश के कुछ अमीर लोगों के निवास भी हैं। हालांकि जिस वक्त ये हमला हुआ तब पुतिन क्रेमलिन में थे। यूक्रेन की ओर से इस हमले में सीधे तौर पर शामिल होने से इनकार तो किया गया लेकिन आधिकारिक तौर पर इस घटना पर खुशी जताते हुए ऐसे और हमलों की भविष्यवाणी भी की गई। करीब चार हफ्ते पहले भी रूस ने आरोप लगाया था कि दो ड्रोन ने पुतिन की जान लेने की कोशिश में क्रेमलिन को निशाना बनाया था। हालांकि उस वक्त पुतिन वहां से करीब 25 किलोमीटर दूर नोवो-ओगारेवा में अपने शासकीय निवास में थे। उस तथाकथित हमले के बाद रूस में यूक्रेन पर परमाणु हमले की मांग जोर पकड़ती दिखी थी। रूसी संसद के स्पीकर ने भी राष्ट्रपति पुतिन पर अटैक की कोशिश को रूस पर हमला बताते हुए परमाणु हमले का समर्थन किया था। रूस का परमाणु सिद्धांत है कि जब राष्ट्र का अस्तित्व खतरे में हो तो रूसी सेना परमाणु बलों का उपयोग कर सकती है। इन हमलों के अलावा भी इस सप्ताह रूस के सीमावर्ती बेलगोरोद क्षेत्र का दो बार अतिक्रमण हुआ है। पहले आक्रमण को तो यूक्रेन ने रूस के ही लड़ाकों की कारगुजारी बताकर पल्ला झाड़ लिया था लेकिन दूसरे हमले पर यूक्रेन ने न तो अपनी हिस्सेदारी की पुष्टि की है, न ही खंडन।

इधर इस घटना को लेकर अमेरिका की स्थिति विचित्र हो गई है। यूक्रेन पर रूसी हमलों के जवाब में तो उसकी प्रतिक्रिया मुखर और आक्रामक तो रहती है लेकिन मॉस्को पर यूक्रेनी ड्रोन हमलों को लेकर वो बचाव की मुद्रा में है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि जबसे युद्ध शुरू हुआ है तब से यूक्रेन को हथियारों की सबसे ज्यादा आपूर्ति अमेरिका से ही हो रही है। हालांकि इसकी शर्त यह है कि यूक्रेन इन हथियारों का उपयोग केवल अपनी रक्षा के लिए या फिर रूसी सेना द्वारा कब्जा किए गए यूक्रेनी क्षेत्र को वापस लेने के लिए करेगा। ऐसे में जब हमले रूस के रिहाइशी इलाकों में हुए हैं तो अमेरिका को कहना पड़ा है कि वो इन हमलों का समर्थन नहीं करता है। हालांकि अब अमेरिका यह पता लगाने की कोशिश कर रहा है कि मॉस्को पर हुए हमलों में किन हथियारों का प्रयोग किया गया था?

इन हमलों पर रूस की प्रतिक्रिया को लेकर नाटो देश भी नर्वस दिखाई दे रहे हैं। इसमें कोई फायदे में दिख रहा है तो वो यूक्रेन ही है क्योंकि रूसी पलटवार की किसी भी स्थिति में अमेरिका और नाटो को उसके पीछे खड़े होना ही पड़ेगा। जमीनी हालात को भांपते हुए यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी सदस्यता के सवाल को लेकर नाटो पर दबाव बढ़ा दिया है और एक तरह से अपनी ओर से उसकी समय सीमा भी तय कर दी। अगले महीने लिथुआनिया की राजधानी विलनियस में नाटो का वार्षिक शिखर सम्मेलन होना है और जेलेंस्की चाहते हैं कि उससे पहले इस विचार पर एक राय बन जाए कि यूक्रेन पर कोई सकारात्मक निर्णय सभी के लिए सकारात्मक होगा। जेलेंस्की को यह कहने की जरूरत इसलिए पड़ी कि नाटो में यूक्रेन की सदस्यता अब ऐसा मसला बन गया है जिस पर नाटो देशों के बीच ही जंग छिड़ी हुई है। जो देश यूक्रेन को सदस्यता देने के पक्ष में हैं, वे भी इस बात पर एक राय नहीं हैं कि यूक्रेन को पूर्ण सदस्यता दी जाए या नाटो की ओर से सुरक्षा गारंटी के समर्थन तक ही सीमित रखा जाए। ब्रिटेन, पोलैंड और तीनों बाल्टिक देश – एस्टोनिया, लिथुआनिया और लातविया यूक्रेन को पूर्ण सदस्य बनाए जाने के पक्ष में हैं जबकि फ्रांस और कनाडा सदस्यता के बजाय लंबे समय की सुरक्षा गारंटी के समर्थन में हैं। वहीं, जर्मनी पहले ही साफ कर चुका है कि जारी युद्ध के बीच नए सदस्य बनाने की नाटो में परंपरा नहीं है। अमेरिका की भी ऐसी ही राय है। अमेरिका और जर्मनी की ही तरह फ्रांस भी इस मामले में किसी तरह की जल्दबाजी के पक्ष में नहीं है।

इस सबके बीच पेंचीदा मसला यह है कि संयम यूक्रेन का ही नहीं, रूस का भी जवाब देने लगा है। अप्रैल के आखिरी सप्ताह में रूस की सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष दिमित्री मेदवेदेव ने परमाणु तनाव बढ़ने और एक नए विश्व युद्ध की आशंका जाहिर की थी। तब से लगभग रोजाना रूस की ओर से युद्ध या रूस के कथित दुश्मनों को लेकर आक्रामक बयान सामने आ रहे हैं। मॉस्को में अधिकारी बार-बार चेतावनी दे रहे हैं कि दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से सबसे खतरनाक दशक का सामना कर रही है। एक अवसर पर पुतिन खुद कह चुके हैं कि रूस एक ऐतिहासिक सीमा पर खड़ा है जिसके आगे एक ऐसा अप्रत्याशित भविष्य है जहां अपनी रक्षा के लिए रूस को हर उपलब्ध साधन का उपयोग करना पड़ सकता है। इन बयानों के संदर्भ में पुतिन का अमेरिका के साथ परमाणु संधि से बाहर निकलने और यूक्रेन से सटे बेलारूस में सामरिक परमाणु हथियार तैनात करने का ऐलान किसी आशंकित वैश्विक युद्ध के लिहाज से अहम हो जाता है। 1990 के दशक के मध्य के बाद ये पहली बार है जब रूस अपने परमाणु हथियार देश से बाहर अपने किसी मित्र देश में तैनात कर रहा है। चूंकि अमेरिका दशकों से यूरोप में कई जगहों पर अपने परमाणु हथियार तैनात करता रहा है इसलिए रूस को रोकने का उसके पास नैतिक अधिकार भी नहीं है।

समस्या यह है कि युद्ध को शुरू हुए सवा साल से ज्यादा वक्त बीत गया है लेकिन किसी को भी यह नहीं पता कि युद्ध रुकेगा कैसे? इतिहास में कई बार दुनिया का चौधरी बन चुका अमेरिका भी इस बार लाचार होकर भारत की ओर देख रहा है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की भी हाल ही में जापान में हुई जी-7 की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से व्यक्तिगत रूप से मिलकर मदद की गुहार लगा चुके हैं। युद्ध की शुरुआत से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार ‘ये युद्ध का युग नहीं’ और ‘संवाद से समाधान’ का मंत्र देते आए हैं जिसका युद्ध की आग को भड़कने से रोकने में बड़ा प्रभाव भी दिखा है।

ऐसा भी नहीं है कि दुनिया इस वक्त केवल रूस-यूक्रेन के कारण गंभीर तनाव के दौर से गुजर रही है। ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच ठनी हुई है, तो सीरिया गृहयुद्ध की आग से नहीं उबर पा रहा। ईरान और इजरायल में भी संघर्ष छिड़ने के आसार हैं, सूडान और पाकिस्तान में भी आंतरिक तनाव बढ़ता ही जा रहा है। चिंता की बात यह है कि कहीं भी तनाव रोकने के ठोस प्रयास होते नहीं दिख रहे। पहले और दूसरे विश्व युद्ध के पहले भी इसी तरह के हालात बने थे। दूसरे विश्व युद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी की विभीषिका के बाद तो दुनिया परमाणु हमले के दुष्परिणामों से भी परिचित हो चुकी है। लेकिन उस भयावह अंजाम से सबक सीखने को कोई तैयार नहीं दिख रहा है। रूस-यूक्रेन में अटैक और काउंटर अटैक के बीच हर बीते दिन के साथ हालात बदतर होते जा रहे हैं। ऐसे में रूस के तेवरों को देखते हुए एक बार फिर परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की किसी आशंका से पूरा विश्व सहमा हुआ दिख रहा है।

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