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जून माह में पड़ने वाली हलहारिणी अमावस्या है खास, किसान करते हैं इस चीज की पूजा तो पितृ दोष के लिए करें यह उपाय

Amavasya 2023: किसानों के लिए यह अमास्या बहुत ही अधिक मायने रखती है. वर्षा ऋतु का आरंभ आषाढ़ मास की इस अमावस्या तक  हो जाता है.

Amawasya

अमावस्या

Amavasya 2023: हिंदू धर्म में हलहारिणी अमावस्या का विशेष महत्व है. किसानों के लिए यह अमास्या बहुत ही अधिक मायने रखती है. वर्षा ऋतु का आरंभ आषाढ़ मास की इस अमावस्या तक  हो जाता है. वहीं फसल की बुआई के लिए यह समय उत्तम माना जाता है. यही कारण है कि इसे आषाढ़ी अमावस्या भी कहा जाता है.

हल की पूजा का महत्व

हलहारिणी अमावस्या के दिन हल की पूजा की जाती है. इसके माध्यम से प्रकृति और भगवान की पूजा की जाती है. विधि-विधान से हल का पूजन कर फसल के हरी भरी बने रहने की प्रार्थना की जाती है.

दूर होगा यह दोष

जिस किसी की कुंडली में काल सर्प दोष है तो अमावस्या के दिन इसके निवारण का सबसे कारगर उपाय है. कुंडली में कालसर्प जैसे दोष के होने पर इससे मुक्ति के लिए भी इस दिन विशेष उपाय किए जाते हैं. अमावस्या के दिन किसी मंदिर में जाकर चांदी से बने नाग नागिन के जोड़े की पूजा करें. यहा जोड़ा आपको बाजार से खरीदकर लाना होगा. पूजा करने के बाद इन्हें किसी नदी या बहते जल में प्रवाहित कर दें. ऐसा करने से राहु की वजह से बनने वाले काल सर्प दोष से मुक्ति मिल जाएगी.

जानें अमावस्या के दिन की तिथि और मुहूर्त

इस साल आषाढ़ महीनेकी अमावस्या तिथि दो दिन यानी 28 और 29 को पड़ रही है. बता दें कि 28 जून को श्राद्ध और पितरों की विशेष पूजा की जाएगी. वहीं 29 जून को स्नान और दान का महत्व है. उदया तिथि के अनुसार 29 जून को सूर्यादय के कुछ देर बाद तक अमावस्या रहेगी.  इसलिए अमावस्या तिथि 28 जून मंगलवार को ही रहेगा.

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मिलेगी पितृ दोष से मुक्ति

अमावस्या के दिन पितरों की कृपा पाने और उनकी प्रसन्नता के लिए तर्पण और श्राद्ध करने का विधान है. माना जाता है कि इससे  पितृ प्रसन्न होते हैं और अपने परिवारी जनों को आशीर्वाद देते हैं. भगवान भोलेनाथ की कृपा प्राप्त होती है. अमावस्या के दिन नकारात्मक शक्तियों की ताकत बढ़ जाती है.अमावस्या के दिन मंदिर के पास स्थित पीपल के पेड़ की पूजा विशेष रूप से फलदायी है. मान्यता है कि इस पेड़ के नीचे अपने पितरों की मंगलकामना करते हुए उनके नाम से घी का दीपक जलाने से उनकी कृपा बनी रहती है.

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