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Makar Sankranti 2023: मकर संक्रांति के दिन भगवान श्रीराम से जुड़ी है पतंग उड़ाने की रोचक कथा, पतंग लाने हनुमान जी पहुंचें थे इंद्रलोक

Makar Sankranti 2023: मकर संक्रांति के दिन देश के तमाम हिस्सों में पतंग उड़ाने की परंपरा है. देश में कई जगहों पर इस दिन पतंग से जुड़ी प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं.

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सांकेतिक तस्वीर

Makar Sankranti 2023: मकर संक्रांति के दिन का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य का परिवर्तन होता है और यह धनु राशि से निकलकर मकर राशि में चले जाते हैं.

मकर संक्रांति के दिन से शुभ कामों की शुरुआत होने लगती है. इस दिन पूजा पाठ से लेकर स्नान और दान का विधान है. इसके अलावा इस दिन घरों में गुड़ और तिल के लड्डू बनाये और खाये जाते हैं. वहीं इस दिन पतंग भी उड़ाये जाते हैं.

मकर संक्रांति के दिन देश के तमाम हिस्सों में पतंग उड़ाने की परंपरा है. देश में कई जगहों पर इस दिन पतंग से जुड़ी प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन पतंग उड़ाने से जुड़ी मान्यता क्या है?

पतंग उड़ाने से जुड़ी है भगवान श्रीराम की रोचक कथा

मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने को लेकर कुछ धार्मिक मान्यताएं भी हैं. इन्हीं में से एक के अनुसार तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस में इस बात का जिक्र किया है कि भगवान श्रीराम ने अपने बाल्यकाल में मकर संक्राति के दिन पतंग उड़ायी थी.

राम इक दिन चंग उड़ाई.

इंद्रलोक में पहुंची जाई.

भगवान श्रीराम की पतंग उड़ते-उड़ते इन्द्रलोक में पहुंच गयी. पंतंग की सुंदरता देख इन्द्र के पुत्र जयंती की पत्नी ने यह सोचकर पतंग की डोर तोड़कर अपने पास रख ली कि जिसकी पतंग इतनी सुन्दर है, उसे उड़ाने वाला कितना सुंदर होगा. उनके अंदर उस व्यक्ति को देखने की इच्छा प्रबल हो उठी.

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जब हनुमान जी पतंग लाने पहुंचे इंद्रलोक

उधर पतंग कटने के बाद भगवान श्रीराम ने हनुमान जी से पतंग को ढूंढकर लाने के लिए कहा. हनुमान जी पतंग को ढूंढते-ढूंढते इंद्रलोक पहुंच गये. वहां जयंत की पत्नी से जब उन्होंने पतंग मांगा तो उन्होंने प्रभु श्रीराम को देखने के बाद पतंग देने की बात कही.

हनुमान जी उनका संदेश लेकर भगवान श्रीराम के पास वापस आ गये. जब उन्होंने यह बात श्रीराम को बताई तो भगवान श्रीराम ने कहा कि अपने वनवास काल के दौरान वह जयंत की पत्नी को दर्शन देंगे. हनुमान जी से प्रभु श्रीराम का यह आश्वासन पाकर जयंत की पत्नी ने वह पतंग वापस कर दी.

तिन सब सुनत तुरंत ही, दीन्ही दोड़ पतंग.

खेंच लइ प्रभु बेग ही, खेलत बालक संग.

तब से लेकर आज तक मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है.

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