राजयोग
wakri grah: ज्योतिष के अनुसार जब अपने सामान्य गति से चलते हैं तो समान रूप से फल देते हैं. वही तीव्र गति से चलने पर वह अलग तरह के फल देते हैं. समान गति को मार्गी और तीव्र गति को अतिचारी कहते हैं कहते हैं. लेकिन यही ग्रह जब उल्टी चाल चलने लगते हैं तो उनकी इस चाल को वक्री कहा जाता है.
ऐसे में इनके द्वारा मिलने वाले फल अलग-अलग ग्रहों के हिसाब से अलग-अलग होते हैं.ज्योतिष के अनुसार जब कभी भी ग्रहक आभासी रूप से उल्टी चलने लगते हैं तो इस अवस्था में कुंडली में विभिन्न दशाओं के अनुसार उस ग्रह से संबंधित जातकों के जीवन पर कई तरह के प्रतिकूल और अनुकूल प्रभाव पड़ते हैं और उसके जीवन में या तो सुखद या दुखद परिणामों की वृद्धि होने लगती है.
हालांकि यह इस बात पर भी काफी हद तक निर्भर करता है कि कौन सा ग्रह वक्री है और व्यक्ति की कुंडली में उसकी क्या स्थिति है. अलग-अलग ग्रहों के वक्री होने का परिणाम अलग अलग होता है. इसके सूर्य और चंद्र ऐसे हैं जो कभी वक्री नहीं होते.
वहीं राहु और केतु की स्थिति में माना जाता है कि यह हमेशा वक्री रहते हैं. आइए जानते हैं कुछ ग्रहों के वक्री रहने पर उनका लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है.
वक्री ग्रहों का फल
अगर मंगल ग्रह वक्री है तो व्यक्ति के अंदर साहस, दया और उदारता आदि गुणों का विकास होता है. इस दौरान व्यक्ति चिकित्सा से संबंधित पेशे में अच्छा करता है. वही मंगल का दुष्प्रभाव होने पर व्यक्ति का खिंचाव अपराध जगत की तरफ होता है. बुध वक्री है तो ऐसा इंसान बेहद ही चतुर होता है वह किसी ना किसी प्रकार से धन आगमन के मार्ग ढूंढ ही लेता है. वही खराब बुध की अवस्था में व्यक्ति पर इसका विपरीत असर पड़ता है और वह आलसी, स्वार्थी और धनहीन होने लगता है. बात करें वक्री बृहस्पति की तो यह व्यक्ति में अध्यात्मिक चेतना का विकास करता है. इससे प्रभावित जातक समाज में विद्वान समझा जाता है.
इसके अलावा बृहस्पति ग्रह के विपरीत होने पर व्यक्ति को जीवन में कई तरह के संघर्ष करने पड़ते हैं. ऐसे में शिवजी की पूजा से व्यक्ति को कुछ राहत मिलती है. कुंडली में शुक्र के वक्री होने पर व्यक्ति का जीवन भोग विलास में लीन रहता है. ऐसे जातक को जीवन में सुख के सभी साधन मिलते हैं.
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