भीमताल.
शिव सत्य है, शिव अनादि है, शिव भोले हैं शिव ओंकार है, शिव ब्रह्म है. शिव शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव सबसे पहले महाशिवरात्रि पर ही शिवलिंग के रूप में सामने आए थे. इसी मान्यता के चलते हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करते हुए महाशिवरात्रि मनाई जाती है. इस साल महा शिवारात्रि 8 मार्च को पड़ रही है. देश भर के शिव मंदिरों में अभी से उस उत्सव की तैयारियां चल रही हैं. भगवान शिव अपने में अनेक रहस्यों को समेटे हुए हैं. गले में सांप, सिर पर माता गंगा और साथ में शिव गणों की लंबी फौज के अलावा दुनिया में कुछ ऐसी जगहें हैं जिनके रहस्य सुलझाने अभी बाकि हैं.
महाशिवरात्रि के दिन लगती है भक्तों की भीड़
महाशिवरात्रि है तो शिव जी के निवास स्थान माने जाने वाले कैलाश पर्वत को लेकर भी श्रद्धालुओं के मन में जिज्ञासा बढ़ जाती है. लोगों का मानना है कि इस दिन कैलाश के आस पास एक नई तरह की सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में एक ऐसी जगह है जहां एक और कैलाश पर्वत स्थित है. यह पर्वत कहीं और नहीं बल्कि देव भूमि उत्तराखंड के नैनीताल में है.
हालांकि कैलाश जितना विशाल नहीं होने का कारण इसे छोटा कैलाश पर्वत कहा जाता है. नैनीताल के पिनरों गांव की एक पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है. वहीं भक्तों की अपार श्रद्धा के कारण यहां पर प्राचीन काल में एक भव्य मंदिर का निर्माण भी कराया गया है, जहां हर साल धूमधाम से महाशिवरात्रि मनाई जाती है.
मंदिर से जुड़े हैं कई रहस्य
हालांकि, मंदिर के बारे में और इसकी प्राचीनता को लेकर कुछ रहस्य अभी भी बरकरार हैं. छोटा कैलाश मंदिर की पहाड़ी आसपास दूसरी पहाड़ियों में सबसे ऊंची है. वहीं इस कैलाश मंदिर के रास्ते से गुजरते हुए आपको एक अलौकिक अनुभव होगा. इस जगह की सबसे खास बात जो कही जाती है वह यह है कि यहां से ही माता पार्वती और भोलेनाथ ने राम-रावण का युद्ध देखा था. वहीं पांडवों ने इस पर्वत की चोटी पर एक रात भी बिताई थी. महाशिवरात्रि के दौरान हर साल यहां देश भर से श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है. मंदिर को लेकर मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु पूरे भक्ति भाव से यहां भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
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भगवान शिव ने किया था यह काम
नैनीताल के भीमताल में स्थित इस छोटे कैलाश को लेकर कहा जाता है कि यहां भगवान शिव और माता पार्वती ने अपनी मुख्य कैलाश पर्वत की यात्रा के दौरान विश्राम किया था. वहीं इस पावन जगह पर भगवान शिव ने धूनी भी रमाई थी. कहा जाता है कि तभी से इस स्थान पर अखंड धूनी जलाई जा रही है. इस स्थान के महत्व को देखते हुए महाशिवरात्रि की रात छोटे कैलाश में श्रद्धालु रात भर अनुष्ठान, पूजा पाठ, भजन कीर्तन आदि करते हुए रात्रि जागरण करते हैं.
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