12 साल की उम्र में ओलंपिक में हिस्सा लिया, इंग्लिश चैनल पार कर भारत का परचम बुलंद किया था और न जाने ऐसे कितने बड़े कारनामे किए जिसने उन्हें दुनिया में एक बड़ी पहचान दिलाई. इस दिग्गज भारतीय महिला तैराक का नाम था आरती साहा, जिसे ‘हिंदुस्तानी जलपरी’ के नाम से भी शोहरत मिली.
तैराकों के लिए आरती किसी प्रेरणा से कम नहीं. उनका जन्म 24 सितंबर 1940 को एक सामान्य मध्यम परिवार में हुआ था. इंग्लिश चैनल पार कर देश का नाम करने से लेकर ‘पद्मश्री’ से सम्मानित होने तक उन्होंने साहस और समर्पण की नई मिसाल पेश की.
नए-नए कीर्तिमान तो दुनिया में हर दिन रचे जाते हैं पर आरती साहा का 29 सिंतबर से बेहद खास कनेक्शन है. आरती साहा ने 29 सितंबर, 1959 को 16 घंटे और 20 मिनट में इंग्लिश चैनल को पार किया था. वे भारत तथा एशिया की ऐसी पहली महिला तैराक थीं, जिसने इंग्लिश चैनल तैरकर पार किया था.
आरती के जीवन का शुरुआती दौर काफी मुश्किल रहा. उन्होंने काफी छोटी उम्र में अपनी मां को खो दिया था. आरती को उनकी दादी ने पाला. वह अपने पिता से काफी प्यार करती थीं और उनके बेहद करीब थीं. उनके पिता भी तैराक थे. जब उन्होंने पहली बारी आरती को तैरते देखा, तो समझ गए कि उनकी बेटी में एक अच्छी तैराक बनने के सारे गुण हैं.
फिर क्या था, पास के एक स्विमिंग स्कूल में उन्होंने आरती का नाम लिखवा दिया और यहीं से आरती के ‘हिंदुस्तानी जलपरी’ बनने का सफर शुरू हुआ. उनकी तैराकी प्रतिभा को कोच सचिन नाग ने तराशा. बताया जाता है कि आरती की सफलता के पीछे सचिन नाग की बड़ी भूमिका रही है.
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आरती ने वर्ष 1951 में 100 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक में नेशनल रिकॉर्ड बनाया. फिर स्टेट और नेशनल लेवल पर भी लगातार जीतती रहीं. 1951 तक वह अपने नाम 22 मेडल जीत चुकी थींं. 1952 में वह सिर्फ 12 साल की थीं, जब फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में ओलंपिक में भाग लिया था. ऐसे कई बड़े रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज हैं.
1960 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया था. वे ‘पद्मश्री’ प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी थीं. 1999 में उनके नाम से डाक टिकट भी जारी हुआ. 1994 में वह काफी बीमार पड़ीं. उन्हें पीलिया हो गया था और इस तरह 23 अगस्त 1994 को वह इस दुनिया से चली गईं.
-भारत एक्सप्रेस
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