मंसूर अली खान पटौदी
क्रिकेट के मैदान पर धाक तो कई खिलाड़ियों ने जमाई लेकिन मंसूर अली खान पटौदी अलग थे. ‘टाइगर’ के नाम से मशहूर ये भारतीय क्रिकेटर किसी पहचान का मोहताज नहीं. उनका नाम भारत के बेहतरीन टेस्ट कप्तानों में शुमार है. महज 21 साल 77 दिन की उम्र में कप्तानी कर उन्होंने सबसे युवा कप्तान होने का गौरव भी हासिल किया था. हालांकि, कई साल बाद यह रिकॉर्ड टूट गया.
एक आंख से भी मैदान पर छाए ‘टाइगर’
क्रिकेट जगत में ‘टाइगर पटौदी’ की धाक अलग थी. राजघराने से ताल्लुक रखने वाला यह क्रिकेटर मैदान पर जितना फोकस था, उतना मैदान के बाहर खुशमिजाज और जिंदादिल भी था. मंसूर अली खान को नवाब पटौदी जूनियर के नाम से भी जाना जाता था. हालांकि, एक हादसे में उन्होंने अपनी एक आंख गंवा दी थी. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और एक आंख से भी वो खतरनाक गेंदबाजों की धज्जियां उड़ा देते थे.
व्यक्तिगत जीवन और लव स्टोरी
उनका जन्म 5 जनवरी 1941 को हुआ था और उन्होंने अपनी अंतिम सांस 22 सितंबर 2011 को ली थी. तब उनकी उम्र 70 साल थी. चलिए उनके संघर्ष भरे जीवन की कहानी जानते है. क्रिकेट के साथ-साथ पटौदी अपनी लव स्टोरी के लिए भी मशहूर हैं. उन्होंने शर्मिला टैगोर से शादी की थी. मशहूर एक्ट्रेस और सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष रह चुकीं शर्मिला से उनकी पहली मुलाकात उनके कोलकाता स्थित घर पर तब हुई थी, जब पटौदी अपने एक मित्र के साथ वहां एक कार्यक्रम में गए थे और यहीं से दोनों की लव स्टोरी शुरू हुई थी.
क्रिकेट करियर और रिकॉर्ड्स
1961 से 1975 के बीच मंसूर अली खान पटौदी ने भारत के लिए 46 टेस्ट मैच खेले. जिसमें उन्होंने 6 शतक और 16 अर्धशतक की मदद से 2,793 रन बनाए. पटौदी 46 में से 40 मैचों में टीम के कप्तान थे. उनकी कप्तानी में 9 जीत, 19 हार और 12 मैच ड्रॉ खेले गए. 1968 में उनकी कप्तानी में भारत ने न्यूजीलैंड के खिलाफ विदेशी सरजमीं पर अपनी पहली टेस्ट सीरीज जीती थी.
टाइगर के नाम टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में छठे स्थान पर बल्लेबाजी करते हुए एक टेस्ट मैच में सबसे अधिक गेंदों का सामना करने का रिकॉर्ड है. उन्होंने नंबर-6 पर बल्लेबाजी करते हुए 554 गेंदों का सामना किया था.
टाइगर 1962 में इंडियन क्रिकेटर ऑफ द ईयर व 1968 में विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर चुने गए. 1969 में उनकी आत्मकथा ‘टाइगर टेल’ लॉन्च हुई थी. कुछ इस तरह एक आंख से खेलते हुए मंसूर अली खान ने क्रिकेट की दुनिया में काफ़ी नाम कमाया. पटौदी कभी रिकॉर्ड बनाने के लिए नहीं खेलते थे उनका एक ही लक्ष्य था टीम को जीत दिलाना.
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-भारत एक्सप्रेस
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