प्रतीकात्मक चित्र
मॉरिशस की सरकार ने देशभर में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है, जो कि आगामी आम चुनावों के एक दिन बाद तक, यानी 11 नवंबर तक प्रभावी रहेगा. सरकार ने यह निर्णय उस समय लिया, जब अक्टूबर के दौरान सोशल मीडिया पर कई ऑडियो रिकॉर्डिंग्स लीक हो गईं, जिनमें राजनेताओं, पुलिस, वकीलों, पत्रकारों और नागरिक समाज से जुड़े लोगों की बातचीत शामिल थी. इस फैसले का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को किसी भी बाहरी हस्तक्षेप से सुरक्षित रखना और चुनाव में संभावित अवरोधक तत्वों पर नियंत्रण रखना बताया गया है.
लीक ऑडियो रिकॉर्डिंग्स ने बढ़ाई चिंता
यह विवाद तब शुरू हुआ जब मिस्सी मूस्टास (Mr. Moustache) नाम के एक अकाउंट ने इन ऑडियो रिकॉर्डिंग्स को TikTok पर शेयर करना शुरू किया. इन रिकॉर्डिंग्स में कुछ सरकारी अधिकारियों की संवेदनशील बातें भी शामिल हैं. एक रिकॉर्डिंग में पुलिस कमिश्नर कथित तौर पर एक डॉक्टर से एक केस में रिपोर्ट बदलने की बात कर रहे थे. इस केस में एक व्यक्ति की पुलिस हिरासत में पिटाई के बाद मौत हो गई थी. इस लीक के बाद केस की जांच भी शुरू कर दी गई है. इसके अलावा, ब्रिटिश हाई कमिश्नर चार्लोट पिएरे की भी कुछ निजी कॉल्स लीक हुई हैं. सरकार ने इन रिकॉर्डिंग्स के चलते सोशल मीडिया पर रोक लगाई है ताकि और जानकारी बाहर न फैले.
क्यों लगाया सोशल मीडिया पर प्रतिबंध
शुक्रवार को प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ (Pravind Kumar Jugnauth) की सरकार ने इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (Internet service providers) को सोशल मीडिया ब्लॉक करने का आदेश दिया. सरकार का कहना है कि इन रिकॉर्डिंग्स के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है. टेलीकॉम कंपनी ईएमटेल (EMTEL) के अनुसार, यह रोक 11 नवंबर तक जारी रहेगी. फेसबुक, इंस्टाग्राम, TikTok और X (पहले ट्विटर) जैसे प्लेटफॉर्म ब्लॉक कर दिए गए हैं. सरकार का कहना है कि यह कदम जरूरी है ताकि देश की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंध सुरक्षित रहें.
विपक्ष का विरोध
इस फैसले का विपक्ष ने कड़ा विरोध किया है. विपक्ष के नेता पॉल बेरेंजर (Paul Berenger) ने इस कदम को “चौंकाने वाला, गलत और अस्वीकार्य” कहा. उन्होंने इसे सरकार का घबराहट में लिया गया कदम बताया. उन्होंने कहा कि वे इस फैसले को कानूनी तौर पर चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं.
विपक्ष के एक और नेता नंदो बोधा (Nando Bodha) ने कहा कि यह सरकार का “आखिरी और निराशाजनक कदम” है. उन्होंने इसे संविधान में मिले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला बताया और चुनाव आयोग से अपील की कि वह चुनाव की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप करे.
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मीडिया और चुनाव प्रचार पर असर
इस फैसले का असर स्थानीय मीडिया और चुनाव प्रचार पर भी पड़ रहा है. सोशल मीडिया के बिना राजनीतिक पार्टियां और मीडिया लोगों तक अपनी बात नहीं पहुंचा पा रहे हैं. इस समय देश के नागरिक भी महत्वपूर्ण जानकारी से वंचित हो रहे हैं.
प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ, जो 2017 में अपने पिता के निधन के बाद प्रधानमंत्री बने और 2019 में फिर से चुने गए, अब दोबारा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. लेकिन इस फैसले ने उनके लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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