Bharat Express DD Free Dish

अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को रूस ने दी मान्यता, ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बना रूस

अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को औपचारिक मान्यता देने वाला रूस पहला देश बन गया है. रूस के इस फैसले को अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने ऐतिहासिक बताया है.

फाइल फोटो

फाइल फोटो

रूस ने एक ऐसा कदम उठाया है जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है. अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को औपचारिक मान्यता देने वाला रूस पहला देश बन गया है. ये वही तालिबान है जिसने 2021 में अमेरिका और नाटो सेनाओं की वापसी के बाद अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया था.

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री फैसले को बताया ऐतिहासिक

रूस के इस फैसले को अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने ऐतिहासिक बताया है. तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने इसे बहादुरी भरा और मिसाल कायम करने वाला कदम कहा है. रूस ने अफगानिस्तान के नए राजदूत गुल हसन हसन के परिचय पत्र को स्वीकार कर यह मान्यता दी है.

अफगानिस्तान को स्थिर करने के लिए तालिबान से बातचीत जरूरी

अब सवाल ये उठता है कि रूस ने ऐसा क्यों किया? असल में रूस का मानना है कि अफगानिस्तान को स्थिर करने के लिए तालिबान से बातचीत और सहयोग जरूरी है. रूस पहले ही तालिबान को प्रतिबंधित संगठनों की सूची से हटा चुका है और अब यह कदम दोनों देशों के बीच व्यापार, ऊर्जा, शिक्षा और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देगा.

रूस का फैसला बाकी देशों को लिए चुनौती !

लेकिन यह फैसला विवादों से भी घिरा है. तालिबान सरकार पर महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को कुचलने, शिक्षा और नौकरी से रोकने जैसे गंभीर आरोप हैं. यही वजह है कि अब तक किसी भी देश ने तालिबान को आधिकारिक मान्यता नहीं दी थी. रूस का यह कदम एक तरह से दुनिया के बाकी देशों के लिए चुनौती भी है. क्या अब चीन, ईरान या भारत जैसे देश भी तालिबान को मान्यता देंगे? या फिर रूस अकेला ही इस रास्ते पर चलेगा? चीन, पाकिस्तान और ईरान जैसे कई देश अपने यहां तालिबान राजदूत को तैनात कर रखा है, लेकिन अभी तक किसी ने भी तालिबान सरकार को आधिकारिक तौर मान्यता नहीं दी थी.

तालिबान के लिए बड़ी जीत

तालिबान के लिए यह मान्यता बहुत बड़ी जीत है. क्योंकि इससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक वैध सरकार के रूप में पहचान मिलने की शुरुआत हो सकती है. लेकिन यह भी साफ है कि तालिबान को अब दुनिया को यह दिखाना होगा कि वह सिर्फ सत्ता में नहीं बल्कि जिम्मेदारी से शासन करने के भी काबिल है.

दोस्ती से दुश्मनी और फिर बातचीत तक

तालीबान की शुरुआत 1994 में अफगानिस्तान के कंधार शहर से शुरू हुई थी. उस वक्त अफगानिस्तान में हालात बहुत खाराब थे. 1989 में जब सोवियत सेना अफगानिस्तान से बाहर आई तो वहां सत्ता के लिए अलग-अलग गुटों में लड़ाई शुरू हो गई. इन्ही गुटों में से एक गुट था तालिबान.

तालिबान गुट में ज्यादातर मुजाहिदीन

तालिबान गुट में ज्यादातर वहीं थे जो पहले मुजाहिदीन कहलाते थे. ये लोग अमेरिका की मदद से सोवियत सेना के खिलाफ लड़े थे. उस समय अमेरिका ने तालिबानियों को पैसा और हथियार दोनों दिया था. अमेरिका का एक ही मकसद था रूस को पीछे हटाना. इसलिए शुरुआती दिनों में अमेरिका तालिबान का साथ दे रहा था.

2003 में तालिबान आतंकी संगठन घोषित

लेकिन धीरे-धीरे समय बितता गया और तालिबान की छवि बदलने लगी. 1990 दशक के लास्ट तक तालिबान पर एक बड़ा आरोप लगने लगा. आरोप लगा कि वो आतंकियों को अपने यहां रखता है और ट्रेनिंग भी देता है. 1999 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक प्रस्ताव पास किया जिसमें तालिबान की आलोचना की गई थी.

2003 में रूस की सुप्रीम कोर्ट ने तालिबान को ऑफिशियल रूप से आतंकी संगठन घोषित कर दिया. रूस का कहना था कि तालिबान का चेचन्या के आतंकियों से गहरा रिश्ता है और वो मध्य एशिया के देशों जैसे उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान में अशांति फैलाने की कोशिश में लगा है. बात यहीं खत्म नहीं हुई. 2017 में रूस ने अफगानिस्तान में शांति बनाए रखने के लिए फिर से तालिबान से बातचीत की कोशिश की थी.



इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.

Also Read