प्रतीकात्मक तस्वीर
पाकिस्तान में शायद ही कोई दिन ऐसा जाता है जब अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों के खिलाफ कोई हमला न किया गया हो. केवल दो दिनों के दौरान, तीन ऐसे ही घटनाओं में देश के विभिन्न हिस्सों में अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों की मौतें हुई हैं. पेशावर में, एक सिख दुकानदार दयाल सिंह को 31 मार्च को एक अज्ञात हमलावर ने गोली मार दी थी. जबकि 1 अप्रैल को काशीफ मसीह नाम के एक ईसाई व्यक्ति की इसी तरह अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.
कराची में प्रमुख हिंदू अनुसूचित जाति (एससी) के सदस्य डॉ बीरबल गिन्नी को निशाना बनाया गया था. उनकी 30 मार्च को हत्या कर दी गई थी. पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हमले लगातार जारी हैं लेकिन वहां की सरकार और स्थानीय प्रशासन इसे नजरअंदाज करता रहा है.
अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर 2021 की अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में स्थानीय कानून प्रवर्तन धार्मिक अल्पसंख्यकों और ईशनिंदा के आरोपी व्यक्तियों की रक्षा करने में विफल रहा है. सेंटर फॉर सोशल जस्टिस (CSJ) नामक एक एनजीओ ने बताया कि 2021 में 84 और 2020 में 199 ईशनिंदा के मामले दर्ज किए गए थे.
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पाकिस्तान में कानून व्यवस्था में सुधार के प्रयासों के बजाय ऐसे मामलों में गिरावट को कोविड -19 लॉकडाउन के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था. CSJ की पिछली रिपोर्टों में पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों की अधीनता में योगदान देने वाले चार प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डाला गया था: ईशनिंदा कानूनों का दुरुपयोग, जबरन धर्मांतरण की व्यापकता, राष्ट्रीय जनसंख्या जनगणना में अल्पसंख्यकों का कम प्रतिनिधित्व, और शिक्षा सुधार के मुद्दे.
पेशावर और कराची में टारगेटेड किलिंग्स के बढ़ते मामले यह साबित करते हैं कि पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए इन चिंताओं को दूर करने के लिए बहुत कम प्रयास किया गया है. पाकिस्तान के अल्पसंख्यक सिख समुदाय के प्रवक्ता रणवीर सिंह ने मीडिया को बताया कि मृतक दयाल सिंह का बहुसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति से कोई विवाद नहीं था. रणवीर सिंह ने कहा कि सिख देश में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और हाल के वर्षों में उनके समुदाय के 11 सदस्य मारे गए हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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