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टोक्यो में सावन के महीने में 82 किमी लंबी कांवर यात्रा, बिहार के सुल्तानगंज से ले जाया गया था गंगाजल

Japan: जापान की राजधानी टोक्यो में सावन के दूसरे सोमवार के पावन अवसर पर कांवर यात्रा निकाली गई. दूर देश में इस कांवर यात्रा की शुरुआत टोक्यो के फुनाबारो स्थित राधा-कृष्ण मंदिर से हुई.

Kanwar Yatra In Japan

जापान में निकाली गई कावंर यात्रा

Japan: हिंदू धर्म में सावन मास को सबसे पवित्र मास में से एक माना जाता है. यह पूरा माह भगवान शिव को समर्पित माना जाता है. कहा जाता है कि जो व्यक्ति सावन के सोमवार का व्रत करता है भगवान भोलेनाथ उसकी सभी मुरादें पूरी करते हैं. पवित्र श्रावण मास की शुरुआत कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है. वहीं सावन की शुरुआत होते ही शिव भक्त कांवड़ उठा चल पड़ते भोलेनाथ को जल अर्पित करने. देश में इस समय जहां कांवर उठाए भक्त शिवालयों में रोज भगवान शिव को जल अर्पित कर रहे हैं, वहीं विदेशों में भी कांवर यात्रा निकाली जा रही है.

जापान में बोल बम

जापान की राजधानी टोक्यो में सावन के दूसरे सोमवार के पावन अवसर पर कांवर यात्रा निकाली गई. दूर देश में इस कांवर यात्रा की शुरुआत टोक्यो के फुनाबारो स्थित राधा-कृष्ण मंदिर से हुई और 82 किमी की लंबी यात्रा करते हुए कांवरियों ने सीतामा के शिव मंदिर जाकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया. वहीं इस कांवर यात्रा की जो सबसे विशेष बात रही वह यह है कि बिहार के सुल्तानगंज से भोलेनाथ को अर्पित करने के लिए गंगाजल जापान ले जाया गया. हर साल की तरह इस साल भी इस यात्रा का आयोजन बिहार-झारखंड एसोसिएशन की ओर से किया गया जाता है. जापान में भारत के राजदूत सिबी जॉर्ज ने पारंपरिक तरीके से इस यात्रा की शुरुआत की. जापान में बिहार-झारखंड एसोसिएशन और बिहार फाउंडेशन के जापान चैप्टर की ओर से इस यात्रा का आयोजन किया गया था.
सिबी जॉर्ज ने इस अवसर पर कहा कि भारत से दूर अपनी संस्कृति को इतनी मजबूती से आगे बढ़ाने के लिए भारतीय सराहना के पात्र हैं.

बिहार फाउंडेशन के जापान चैप्टर के अध्यक्ष को दी बधाई

वहीं बिहार के मुख्यमंत्री के विशेष सलाहकार ने बिहार फाउंडेशन के जापान चैप्टर के अध्यक्ष आनंद विजय सिंह को इसके लिए बधाई दी है. उन्होंने कहा कि जापान जैसे देश में बिहार के रहने वाले लोग काफी कम हैं. बावजूद इसके इस तरह की यात्रा का सफलतापूर्वक आयोजन सराहनीय कदम है. इस तरह के आयोजन से विदेशों में रह रहे लोगों को अपनी पारंपरिक रीति-रिवाजों को जीवित रखने में मदद मिलेगी.



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