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तुर्की थिंक टैंक का ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ नक्शा: भारत की संप्रभुता को खुली चुनौती, पूर्वोत्तर राज्यों पर दावा कर बढ़ी चिंता

तुर्की के एक इस्लामी थिंक टैंक द्वारा जारी विवादित नक्शे में भारत के कई राज्यों को ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ का हिस्सा दिखाया गया है, जिससे देश की सुरक्षा और अखंडता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं.

Greater Bangladesh map

नई दिल्ली, 23 मई 2025। तुर्की आधारित एक इस्लामी थिंक टैंक ‘Turkish Century’ द्वारा हाल ही में जारी किए गए एक विवादित नक्शे ने भारत की सुरक्षा और अखंडता को लेकर नई चिंता पैदा कर दी है. इस नक्शे में ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ की अवधारणा को दर्शाते हुए भारत के कई राज्यों को इसका हिस्सा बताया गया है, जिनमें असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, सिक्किम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्य शामिल हैं.

‘Turkish Century’ स्वयं को एक मुस्लिम थिंक टैंक बताता है जो तुर्की और उसके आसपास के क्षेत्रों के आर्थिक, रक्षा और भू-राजनीतिक मामलों पर केंद्रित है. यह थिंक टैंक तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोगान की विचारधारा यानी ‘एर्दोगान लाइन’ को भारत के पूर्व और पूर्वोत्तर में बढ़ावा दे रहा है.

बंग्लादेश की भूमिका और खतरनाक इरादे

चौंकाने वाली बात यह है कि यह योजना बांग्लादेश के वर्तमान ‘यूनुस शासन’ के सहयोग से संचालित की जा रही है, जिसे न तो चुना गया है और न ही लोकतांत्रिक मान्यता प्राप्त है. इस शासन को कट्टर इस्लामी संगठन हिज्ब उत-तहरीर और अन्य इस्लामवादी ताकतों का समर्थन प्राप्त है.

यूनुस खुद कई बार सार्वजनिक रूप से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर दावा करने वाले बयान दे चुके हैं. यह वही विचारधारा है जिसे मौलाना भासानी ने 20वीं सदी में बढ़ावा दिया था. उन्होंने बांग्लादेश के लिए ‘लेबेनस्राम’ यानी रहने की जगह की मांग करते हुए भारत के पूर्व और पूर्वोत्तर राज्यों को अवैध मुस्लिम प्रवासियों के ज़रिए कब्जाने की रणनीति बनाई थी.

मौलाना भासानी की विरासत और आज की स्थिति

मौलाना भासानी का यह ‘इस्लामी विस्तारवाद’ नाज़ी जर्मनी के ‘लेबेनस्राम सिद्धांत’ पर आधारित था. उस समय वे न केवल इस्लामवादियों बल्कि वामपंथियों के भी प्रिय थे. आज यही सोच ‘खिलाफत 2.0’ के रूप में फिर से सिर उठा रही है, जिसमें अवैध मुस्लिम प्रवासियों के ज़रिए भारत के संवेदनशील राज्यों में जनसंख्यात्मक बदलाव लाने की कोशिशें देखी जा रही हैं. भारत के खुफिया सूत्रों का मानना है कि इस अभियान का उद्देश्य न केवल सांस्कृतिक घुसपैठ है, बल्कि यह भारत की आंतरिक सुरक्षा को भी कमजोर करने की एक सुविचारित साजिश है.

भारत को अब इस नए खतरे को केवल एक विचारधारा नहीं, बल्कि एक संगठित रणनीति के रूप में देखना होगा. केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि वे न केवल सीमाओं की निगरानी बढ़ाएं, बल्कि अवैध घुसपैठ, आतंरिक प्रोपेगैंडा और जनसंख्यात्मक असंतुलन को लेकर भी ठोस नीति बनाएं. यह सिर्फ नक्शे की बात नहीं है — यह भारत की संप्रभुता और सुरक्षा पर खुली चुनौती है.

-भारत एक्सप्रेस 



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