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क्या आपका मोबाइल फोन सुरक्षित है?

कुछ वर्षों पहले जब ‘पेगसस’ द्वारा जासूसी का मामला उठा था तो यह सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा जहां ये आज भी लंबित पड़ा है।

आईफोन हैकिंग मामला

आए दिन हमें यह सुनने को मिलता है कि किसी बड़े व्यक्ति या मशहूर शख़्सियत ने अपने मोबाइल फ़ोन में छेड़-छाड़ या टैपिंग की शिकायत की है। ऐसा आरोप अक्सर उस व्यक्ति के प्रतिद्वंदी या दुश्मनों पर लगते हैं। यह सब तब भी होता है जब फ़ोन टैपिंग का शिकार व्यक्ति किसी ऐसे कार्य को अंजाम देने वाला होता है जिससे उसके प्रतिद्वंदियों को भारी नुक़सान पहुँचने की आशंका होती है। ऐसी घटनाएँ केवल राजनीति के मैदान में नहीं होती। कॉर्पोरेट सेक्टर और खेल के मैदान में भी ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं। फ़ोन टैपिंग के ज़रिये जासूसी करना कोई नई बात नहीं है। ऐसा कार्य, सरकारी एजेंसियाँ अक्सर देश विरोधी गतिविधियों की जाँच के लिए करती आईं हैं। परंतु पिछले कुछ वर्षों में फ़ोन टैपिंग के ग़ैर-क़ानूनी इस्तेमाल की खबरें भी सामने आई हैं।

ताज़ा मामला आईफ़ोन बनाने वाली अमरीकी कंपनी ऐपल द्वारा दिये गये चेतावनी संदेश का है। उपभोक्ताओं को भेजे गये चेतावनी संदेश के अनुसार, ‘राज्य प्रायोजित हमलावर’ उनके आईफोन को निशाना बना सकते हैं।ऐपल ने दुनिया भर में 150 से अधिक देशों में अपने कुछ उपभोक्ताओं को ऐसे चेतावनी संदेश भेजे हैं। जैसे ही यह संदेश भारत के कुछ प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं के पास पहुँचे तो सभी विपक्षी दलों के नेताओं को सरकार पर हमला करने का मौक़ा मिल गया। चुनावी माहौल में यदि विपक्ष के नेताओं पर ऐसा कुछ हो रहा है तो सरकारी तंत्र सवालों के घेरे में आएगा ही। मामले के तूल पकड़ते ही सरकार ने भी बयान जारी किया कि वह चिंतित है और उन्होंने इस घटना की जांच के आदेश दिए हैं।

मोबाइल फ़ोन निर्माताओं में ऐपल कंपनी का आईफ़ोन सुरक्षा की दृष्टि से सर्वोत्तम माना जाता है। इन उपकरणों में हैकिंग या जासूसी रोकने के लिए सुरक्षा की दृष्टि से सबसे उन्नत तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, जो एक अभेद्य क़िले के समान होती है। साइबर विशेषज्ञों के अनुसार यदि किसी हैकर को किसी के आईफ़ोन को हैक करना है तो वह काफ़ी कठिन और महँगा होता है परंतु असंभव नहीं होता। इसलिए यदि किसी हैकर को किसी का आईफ़ोन हैक करना है तो उसे पैसे और तकनीक की दृष्टि से काफ़ी मज़बूत होना पड़ेगा। जानकारों के अनुसार, भले ही किसी का आईफ़ोन हैक हो जाए, लेकिन जैसे ही उस आईफ़ोन का सॉफ्टवेयर अपडेट होगा तो उसमें पड़ा जासूसी वाला सॉफ़्टवेयर स्वतः ही निष्क्रिय हो जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि आईफ़ोन जैसे सुरक्षित मोबाइल भी ख़तरे में कैसे हैं? क्या आईफ़ोन के सुरक्षा सॉफ़्टवेयर का तोड़ भी साइबर अपराध के हैकरों के हाथ लग गया है?

ग़ौरतलब है कि ऐपल ने अपने स्पष्टीकरण एक अहम बात भी स्पष्ट की है। ऐपल ने कहा, “हम इस बारे में जानकारी देने में असमर्थ हैं कि किस कारण से हमें खतरे की सूचनाएं जारी करनी पड़ रही हैं, क्योंकि इससे राज्य-प्रायोजित हमलावरों को भविष्य में पता लगाने से बचने के लिए अपने व्यवहार को अनुकूलित करने में मदद मिल सकती है।”इससे यह बात तो स्पष्ट है कि ऐपल अभी भी फ़ोन हैकरों से एक कदम आगे है। ऐसे में ऐपल को अपने सॉफ्टवेयर को बहुत जल्द अपडेट भी करना पड़ेगा, जिससे कि यदि फ़ोन हैक हुए भी हैं तो उनमें से हैकिंग निकाली जा सके।

जानकारों के मुताबिक़ स्टेट स्पॉन्सर्ड अटैक करने वाले हैकर एक छोटे समूह को ही अपना लक्ष्य बनाते हैं। ये हैकर तकनीक की दृष्टि से एकदम नए और आधुनिक संसाधनों का ही इस्तेमाल करते हैं। अन्य साइबर अपराधियों की तरह ये एक बड़े समूह को अपना शिकार नहीं बनाते, जिस कारण इनको ट्रैक करना मुश्किल होता है। ऐसे अटैक काफ़ी जटिल होते हैं और इनका ईजाद करने में करोड़ों का ख़र्च आता है। इन अटैकों की समयावधि भी बहुत छोटी होती है। परंतु ऐसे हैकरों द्वारा हैक किए गये आईफ़ोन पूरी तरह उनके इशारों पर चलते हैं। यदि आप किसी से फ़ोन पर बात नहीं भी कर रहे हैं तब भी आपके आईफ़ोन के माइक के ज़रिये फ़ोन के आसपास होने वाली हर बात को सुना जा सकता है। आपकी मर्ज़ी के बिना आपके आईफ़ोन के कैमरे का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। आप अपना फ़ोन लिये कहाँ-कहाँ गये, इसकी जानकारी भी हैकर को मिल जाती है। इसलिए हमें काफ़ी सचेत रहने की ज़रूरत है। किसी भी अनजान व्यक्ति द्वारा भेजी गई तस्वीर, वीडियो या लिंक को अपने फ़ोन में नहीं खोलना चाहिए। फ़ोन के सॉफ्टवेयर को हमेशा अपडेट रखें।

कुछ वर्षों पहले जब ‘पेगसस’ द्वारा जासूसी का मामला उठा था तो यह सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा जहां ये आज भी लंबित पड़ा है। यदि इन ताज़ा अटैक के मामले को लें तो जिस तरह से इस अटैक की चेतावनी वाले संदेश केवल विपक्षी नेताओं को गये हैं तो सरकार पर आरोप लगना ज़ाहिर सी बात है। वहीं यदि सरकार की बात मानें तो ऐपल ने अपने स्पष्टीकरण यह बात साफ़ नहीं की है कि किस सरकारी तंत्र ने ऐसा अटैक दुनिया भर में किया। क्या कोई अन्य देश ऐसे अटैक कर रहा है, जिसकी मंशा भारत में राजनैतिक अस्थिरता लाना है? यदि ऐसा है तो केवल विपक्षी नेताओं के फ़ोन में ही ऐसा अटैक क्यों हुआ? ऐसे में सरकार को भी एक स्पष्टीकरण जारी करना चाहिए और इस मामले में अपना रुख़ साफ़ कर देना चाहिए। वरना हर फ़ोन इस्तेमाल करने वाला सोचेगा कि क्या उनका फ़ोन सुरक्षित है?

*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं।



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