बिहार एनडीए में चाचा-भतीजे की खींचतान.
Pashupati Paras Chirag Paswan tussle: देश में लोकसभा चुनाव 2024 की रणभेरी बज चुकी है. इंडिया और एनडीए गठबंधन सभी राज्यों में सीट बंटवारे और उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने में जुटे हैं. इस बिहार एनडीए में सीट बंटवारे के बाद घमासान शुरू हो चुका है. हालांकि सीट बंटवारे को लेकर अभी तक कोई ऐलान नहीं किया गया है. इस बीच लोक जनशक्ति पार्टी अध्यक्ष पशुपति पारस सियासी चौराहे पर खड़े हैं. पारस अभी तक यह मान कर चल रहे हैं कि बीजेपी उन्हें गठबंधन में सम्मानजनक सीटें देगी. वहीं चिराग पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अमित शाह से मुलाकात के बाद एनडीए में सब कुछ ठीक होने की बात कह चुके हैं.
बिहार के सियासी जानकारों की मानें तो अगर पशुपति पारस की लोजपा को एनडीए में सीटें नहीं मिलती है तो वे 3 संभावित कदम उठा सकते हैं. पहली संभावना पशुपति पारस महागठबंधन में शामिल हो सकते हैं. हालांकि महागठबंधन की ओर से अभी पशुपति को कोई न्योता नहीं मिला है. वैसे तेजस्वी ने चिराग पासवान को 8 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऑफर दिया था. ऐसे में वे महागठबंधन में शामिल हो सकते हैं. लेकिन राजद के सूत्रों की मानें तो महागठबंधन से जेडीयू के जाने के बाद सीटों का बंटवारा फाइनल हो चुका है. बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से राजद 28 सीटों पर, कांग्रेस 9 सीटों पर, माले 2 और सीपीआई 1 सीट पर चुनाव लड़ सकती है. वहीं खगड़िया सांसद महबूब अली केसर और वैशाली सांसद वीणा सिंह ने चिराग पासवान का दामन थाम लिया है.
भाजपा का पशुपति को राज्यपाल का ऑफर
वहीं अगर महागठबंधन से पशुपति को ऑफर नहीं मिलता है तो वे अकेले ही चुनाव मैदान में उतर सकते हैं. ठीक वैसे ही जैसे चिराग उतरे थे 2020 के विधानसभा चुनाव में. जानकारों की मानें तो बीजेपी बिहार में सीट बंटवारे का फाॅर्मूला तय कर चुकी है. भाजपा 17 सीटों पर, जेडीयू 16 सीटों पर, 5 सीटों पर लोजपा (आर) और 1-1 सीट उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी को मिल सकता है. हालांकि सीट बंटवारे मांझी और कुशवाहा दोनों ही खुश नहीं हैं. कुशवाहा जेडीयू के शामिल होने से पहले ही एनडीए में आ गए थे. तब वे 3 सीटों का दावा कर रहे थे लेकिन जेडीयू के शामिल होने के बाद अब स्थितियां बदल गई है.
जानकारी के अनुसार भाजपा ने पशुपति पारस को राज्यपाल का प्रस्ताव दिया है. वहीं प्रिंस को बिहार सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है. ऐसे में पशुपति के पास मुलतः 2 ही रास्ते बचे हैं या तो वे सक्रिय राजनीति को अलविदा कहकर राज्यपाल बन जाएं या चुनावी मैदान में उतर जाएं.
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