विराट कोहली और सुनील गावस्कर (फोटो- सोशल मीडिया)
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर एक बार फिर से सुर्खियों में हैं. टीम इंडिया के दिग्गज बल्लेबाज विराट कोहली को लेकर उन्होंने अपनी नाराजगी जताई है. पूरा मामला विराट के स्ट्राइक रेट को लेकर उनके बयान को लेकर है. आईपीएल के मौजूदा सीजन में सुनील गावस्कर स्टार स्पोर्ट पर बतौर एक्सपर्ट कमेंटेटर जुड़े हुए हैं. गुजरात के खिलाफ मैच के बाद विराट कोहली के एक इंटरव्यू को से स्टार स्पोर्ट्स पर बार-बार दिखाया जा रहा है. उस इंटरव्यू में विराट कोहली ने अपने स्ट्राइक रेट को लेकर आलोचकों को जवाब दिया था. अब गावस्कर ने उस पर अपना जवाब दिया है. उन्होंने कहा, हम सभी ने थोड़ा बहुत क्रिकेट खेला है, हम जो देखते हैं, वही कहते हैं.’
विराट कोहली ने क्या कहा था?
गुजरात टाइटंस के खिलाफ मैच खत्म होने के बाद विराट कोहली ने कहा था कि, कई लोग उनकी टी20 स्ट्राइक रेट और स्पिन के खिलाफ खेलने की क्षमता को आंकते हैं. ये वही लोग हैं, जो बॉक्स में बैठकर आपस में कुछ भी बातें करते हैं. लेकिन मेरे लिए टीम को जिताना ज्यादा जरूरी है. कोहली ने आगे कहा था कि अगर आप 15 साल से इसी तरह से खेलते हुए अपनी टीम को जीता रहे हैं तो इसमें कोई खराबी नहीं है. आप बॉक्स में बैठकर कुछ भी कमेंट कर सकते हैं लेकिन मुझे नहीं लगता कि खेल को लेकर बात करने के लिए वो उपयुक्त जगह है. ग्राउंड पर खेलना और बॉक्स में बैठकर बातें करने में काफी अंतर है.
गुजरात के खिलाफ मैच के बाद के कोहली के इंटरव्यू को स्टार स्पोर्ट्स पर अभी तक कई बार दिखाया जा चुका है. अब गावस्कर ने स्टार स्पोर्ट पर हैरानी जताते हुए कहा कि, मैच के बाद का इंटरव्यू इस चैनल पर कई बाद दिखाए जा चुके हैं. मुझे भरोसा है कि चैनल इस बात को समझेगा कि जब यह दिखाया जा रहा है कि आलोचक कहां हैं, तो आलोचक आपके कमेंटेटर ही हैं, जिनसे सवाल पूछे जा रहे हैं.
सुनील गावस्कर ने आगे कहा कि जिस समय कोहली के स्ट्राइक रेट 118 थी, उस समय कमेंटेटर्स ने उनके स्ट्राइक रेट पर प्रतिक्रिया दी थी. अगर बल्लेबाज ने 118 के स्ट्राइक रेट से बल्लेबाजी की है और 14 से 15 ओर तक उसकी स्ट्राइक रेट वही रहती है तो उसके लिए अगर आप चाहते हैं कि लोग प्रशंसा करें, तो यह थोड़ा अजीब है. उन्होंने आगे कहा कि स्टार स्पोर्ट्स इसे आगे फिर से दिखाता है तो मुझे काफी निराशा होगी और सभी कमेंटेटरों पर सवाल उठाएगा.
एक बात ये है कि वर्तमान हो या पूर्व, क्रिकेट खिलाड़ियों में थोड़ा अहंकार तो होता है. वे उस खेल के बारे में शिक्षित होना पसंद नहीं करते जिसे उन्होंने जीवन भर जुनूनी रूप से अपनाया है. अमुमन क्रिकेटरों की याददाश्त काफी तेज होती है. उन्हें खेल, परिस्थितियां, हार और अपमान याद रहते हैं. वे भूलते नहीं, अधिकांश क्षमा भी नहीं करते. हो सकता है कि कमेंट्री बॉक्स में और चाकू तेज किए जा रहे हों और इसकी संभावना नहीं है कि उनका उपयोग नहीं किया जाएगा.
आईपीएल 2024 के खत्म होने के कुछ ही दिनों के भीतर अपनी वर्ल्ड टी20 यात्रा शुरू करने के लिए तैयार है और उनके पीछे कमेंटेटरों का एक ही समूह होगा, इस आदान-प्रदान का दूसरा चरण जल्द ही शुरू होने की उम्मीद है. वेस्टइंडीज और अमेरिका में आईपीएल से भी ज्यादा में दांव होगा. यदि खेल एक प्रक्षेप्य होता, तो इसका प्राकृतिक प्रक्षेप पथ परवलया होता. ज्वारीय लहरों की नियमितता से शिखर और गर्त खेल के मैदानों से टकराते हैं. चाहे वह प्रतिद्वंद्वी प्रशंसकों के बीच झगड़ा हो या टीवी पर ‘क्रोधित क्रिकेटरों बनाम क्रोधित टिप्पणीकारों’ की. बहस, खेल गैर-पक्षपातपूर्ण रहता है. दोनों पक्षों को शामिल करता है, उन्हें आगे बढ़ने का समान अवसर प्रदान करता है.
टी20 वर्ल्ड कप की बात करें तो रोहित शर्मा की अगुवाई वाली भारतीय टीम मजबूत दो दिखती है, लेकिन प्रबल पसंदीदा नहीं है. टी20 फॉर्मेट गारंटी के साथ आता है. यहां एक खिताब से टीम को अपने आलोचकों पर निशाना साधने में मदद मिलेगी. लेकिन सवाल ये है कि अगर वे नहीं जीते तो क्या होगा? टी20 वर्ल्ड कप के लिए चुनी गई टीम के मूल में बिना आईसीसी खिताब वाले वरिष्ठ खिलाड़ी हैं.
कोहली ने 2011 में 50 ओवर का खिताब जीता है लेकिन वह टी20 विश्व चैंपियन नहीं हैं. यदि भारत की कपलेसनेस जारी रहती है, उस पीढ़ी के लिए जो टी20 मूल निवासी नहीं है, तो यह लगातार तीसरी विफलता होगी. ऐसी फुसफुसाहट पहले से ही है कि भारत उस फॉर्मेट के साथ तालमेल नहीं बिठा पाया है, जहां बल्लेबाज 200-स्ट्राइक रेट की आकांक्षा रखते हैं. कमेंटेटर्स बॉक्स से लगातार सवाल पूछ रहे हैं. इरफान पठान को हार्दिक पंड्या की टीम इंडिया में शामिल होना समझ नहीं आ रहा है. वहीं कृष्णामाचारी श्रीकांत रिंकू सिंह के बाहर होने से हैरान हैं.
वर्ल्ड कप में अक्सर खिलाड़ी को मैदान पर कमेंट्री कर रहे पूर्व खिलाड़ियों से भिड़ना पड़ता है. खिलाड़ी और क्रिकेट पंडितों की बीच सबसे पहले साल 2003 में साउथ अफ्रीका में वर्ल्ड कप के दौरान देखने को मिला था. जब कप्तान सौरव गांगुली लड़ाई को कमेंट्री बॉक्स में ले गए. वे भारतीय क्रिकेट के लिए कठिन दिन थे. भारत ने 2003 वर्ल्ड कप अभियान की भयानक शुरुआत की थी. मात्र 125 रन पर सिमटने के बाद गांगुली के लड़कों को ऑस्ट्रेलियाई टीम से अपमानित होना पड़ा था. टिप्पणीकारों ने अनुपात की भावना खो दी. खिलाड़ियों पर कई बेबुनियाद आरोप लगाए गए थे.
गांगुली ने ड्रेसिंग रूम का प्रभार संभाला और कहा कि “ईमानदारी से कहूँ तो, उनमें से कुछ मज़ाक बन रहे हैं, वे जो भी महसूस करते हैं वही कहते हैं और कभी-कभी वे जो कहते हैं वह अपरिपक्व होता है,” वह कहते थे. जवागल श्रीनाथ ने कहा कि टीवी पंडितों का बयान प्रशंसकों को उनके घरों पर हमला करने के लिए उकसा सकता है. 2003 की कहानी में एक सुखद मोड़ में, खिलाड़ियों ने इस आलोचना का इस्तेमाल फिर से संगठित होने के लिए किया. उस समय के कप्तान गांगुली ने इसे “हम बनाम दुनिया” वाली स्थिति में बदल दिया.
यहां तक कि खुद कैप्टन एमएस धोनी जैसे किसी व्यक्ति ने भी कमेंटेटरों को बुलाने का मौका नहीं जाने दिया. साल 2007 के टी20 वर्ल्ड कप जीत के बाद कप्तान एमएस धोनी, जिन्हें टीम के अन्य वरिष्ठों पर तरजीह दी गई थी, कमेंटेटर रवि शास्त्री को टूर्नामेंट से पहले लिखी गई बात याद दिलाना नहीं भूले. धोनी ने कहा था कि “आपने कहा कि अगर भारत (कप्तान के रूप में) मेरे साथ जाता है, तो ऑस्ट्रेलिया पसंदीदा है. हमने आपको गलत साबित कर दिया”. बता दें कि वर्ल्ड कप में टारगेट का निर्धारण सिर्फ खेल के मैदान पर ही नहीं होता है और न ही बल्ले से ही सारी बातें की जाती है.
-भारत एक्सप्रेस
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