सांकेतिक फोटो-सोशल मीडिया
Days Getting Longer On Earth: जलवायु परिवर्तन धीरे-धीरे दुनिया के लिए नया संकट बनता जा रहा है. मौसमों में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहे हैं. बर्फ की चादरें और वैश्विक ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. समुद्र का स्तर बढ़ रहा है तो इसी के साथ ही दिन भी लंबे होते जा रहे हैं. एक नई रिसर्च में ये बात सामने आई है कि ध्रुवीय बर्फ के पिघलने से पृथ्वी ग्रह अधिक धीमी गति से घूम रहा है, जिससे दिनों की लंबाई ‘अभूतपूर्व’ दर से बढ़ रही है.
नासा (NASA) की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के सुरेंद्र अधिकारी ने बताया है कि जनर्ल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित रिसर्च पेपर से पता चलता है कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका से बहने वाले पानी की वजह से भूमध्य रेखा के आसपास अधिक द्रव्यमान है.
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एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दिन के बढ़ने की वजह को लेकर ईटीएच ज्यूरिख के बेनेडिक्ट सोजा ने कहा, ‘आमतौर पर पृथ्वी को एक गोले के रूप में माना जाता है, लेकिन इसे ‘तिरछा गोलाकार’ कहना ज्यादा ठीक होगा, जो भूमध्य रेखा के चारों ओर कुछ हद तक सत्सुमा की तरह उभरा है. इसका आकार लगातार बदल रहा है. दैनिक ज्वार के प्रभाव से जो महासागरों और परतों को प्रभावित करते हैं. टेक्टोनिक प्लेटों के बहाव, भूकंप और ज्वालामुखी के कारण भी इसमें बदलाव आता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च-उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत अनुमानों से संकेत मिलता है कि जलवायु-प्रेरित दिन लंबा होने की दर 2100 तक प्रति शताब्दी 2.62 मिलीसेकंड तक पहुंच सकती है. इससे जलवायु परिवर्तन दिन की लंबाई में दीर्घकालिक बदलावों में सबसे महत्वपूर्ण कारण बन जाएगा. ये धरती पर मानवीय गतिविधियों के गहरे प्रभाव की ओर इशारा करते हैं, यहां तक कि हमारे दिनों की लंबाई में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों तक भी दिखा रहे हैं.
आने वाले सालों में बड़े होने लगेंगे दिन
जीआईए (ग्लेशियल आइसोस्टैटिक एडजस्टमेंट) और चंद्र ज्वारीय घर्षण (पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण खिंचाव) के प्रभावों को मिलाकर शोधकर्ता समकालीन जलवायु परिवर्तन के महत्वपूर्ण प्रभाव से पहले, पिछले तीन सहस्राब्दियों में देखी गई दिन की लंबाई में लगातार वृद्धि की व्याख्या कर सकते हैं. रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने ग्लेशियल आइसोस्टैटिक एडजस्टमेंट (जीआईए) के प्रभाव को मापा है. पिछले हिमयुग के दौरान बर्फ की चादरों से संपीड़ित होने के बाद पृथ्वी की सतह धीरे-धीरे पलट रही है. रिसर्च में सामने आया है कि यह पलटाव प्रभाव उस दर को कम कर रहा है जिस दर से दिन लंबे हो रहे है.
धीरे-धीरे बढ़ रहा है दिन
शोधकर्ताओं ने 1900 से अधिक एकत्र किए गए डेटा का उपयोग करते हुए ये पाया है कि 20वीं शताब्दी के दौरान जलवायु परिवर्तन के कारण दिन की लंबाई (एलओडी) में प्रति शताब्दी 0.3 और 1.0 मिलीसेकंड के बीच वृद्धि हुई तो वहीं 2000 के बाद से यह दर बढ़कर 1.33 मिलीसेकंड प्रति शताब्दी हो गई है. विशेष रूप से ध्रुवीय बर्फ और ग्लेशियरों के पिघलने के कारण ये हुआ है, जो पिछले कुछ दशकों में तेज हो गया है. यह महत्वपूर्ण त्वरण पृथ्वी की सतह पर द्रव्यमान की गति से जुड़ा है.
बदल जाता है पृथ्वी का आकार
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिघलती बर्फ से महासागरों तक द्रव्यमान के पुनर्वितरण से पृथ्वी का आकार बदल जाता है, जिससे यह थोड़ी अधिक चपटी (ध्रुवों पर चपटी और भूमध्य रेखा पर उभरी हुई) हो जाती है. द्रव्यमान में यह बदलाव ग्रह के घूर्णन को प्रभावित करता है, जिससे दिन लंबे हो जाते हैं. रिसर्च में ये बात भी सामने आई है कि यह जन परिवहन पिछले तीस वर्षों में पृथ्वी के आकार में देखे गए परिवर्तनों के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है.
-भारत एक्सप्रेस
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