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…जब हुआ था ऐतिहासिक Power Cut, 21 राज्यों में गुल हो गई थी बिजली, लगभग 67 करोड़ लोग हुए थे प्रभावित

साल 2012 में 30 और 31 जुलाई को देश में ऐसा पावर कट हुआ, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. इसकी वजह से कम से कम 21 राज्यों की बिजली गायब हो गई थी.

गर्मी के दिनों में कुछ घंटे के लिए बिजली चली जाए तो आम लोगों का हाल-बेहाल हो जाता है. बिजली कंपनियों के टॉल फ्री नंबर पर शिकायतों की बाढ़ आ जाती है. सोसाइटी, कॉलोनियों में बिजली कंपनी के खिलाफ लोगों में गुस्सा फूटने लगता है. फिर थक हारकर बिजली आने का इंतजार करने लगते हैं.

30 जुलाई 2012

कुछ ऐसा ही इंतजार एक दशक पूर्व देश के 21 राज्यों के लोग कर रहे थे. दरअसल साल 2012 में 30 और 31 जुलाई को ऐसा पावर कट हुआ, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. इसे ऐतिहासिक पावर कट के तौर पर भी जाना जाता है. इस दिन कम से कम 21 राज्यों में एक साथ बिजली चली गई. ग्रामीण इलाकों में लोग संयमित थे, लेकिन शहरी इलाके त्राहिमाम कर रहे थे.

तीन ग्रिड हुए थे फेल

किस्सा कुछ यूं है कि 30 जुलाई 2012 को देर रात करीब ढाई बजे बिजली चली गई. लोगों को लगा कि बिजली गई है तो आ जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जब लोगों को पता चला कि कई राज्यों की बिजली चली गई है तो यह चर्चा का विषय बन गया.

सबसे पहले भारत का उत्तरी ग्रिड फेल हुआ, जो पिछले दिन भी ध्वस्त हो गया था, जिससे अनुमानत: 35 करोड़ लोग 15 घंटे तक अंधेरे में रहे. इसके तुरंत बाद पूर्वी ग्रिड फेल हो गया और फिर इस ​कड़ी में उत्तरी ग्रिड भी हो गया. इस तरह अनुमानत: लगभग 67 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे, ​जो विश्व की कुल आबादी का 10 प्रतिशत था.

21 राज्य हुए थे प्रभावित

उत्तर भारत में आगरा-बरेली ट्रांसमिशन सेक्शन को बिजली देने वाली 400-KV बीना-ग्वालियर लाइन देर रात 2:35 बजे ट्रिप हो गई और उत्पादन और ट्रांसमिशन सिस्टम पर कहर बरपा दिया, जिससे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में हाइड्रोपावर स्टेशनों सहित सभी प्रमुख प्लांट बंद हो गए, जो उत्तरी ग्रिड से जुड़े हुए थे. इसका तत्काल प्रभाव लगभग 32,000 मेगावाट की कमी के रूप में सामने आया.

हालांकि ये शुरुआत थी, इसके बाद 2 और ग्रिड फेल हो गए. तीन पावर ग्रिड फेल होने से प्रभावित राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, बिहार, ओडिशा, झारखंड, मिजोरम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, असम, मेघालय, त्रिपुरा, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, चंडीगढ़ शामिल थे.

रेल यातायात प्रभावित हुआ था

इंजीनियरों को समस्या को ठीक करने में घंटों संघर्ष करना पड़ा. बिजली के गुल होने का असर सीधे तौर पर रेल यातायात पर पड़ा. कई ट्रेनों को रोकना पड़ गया. दिल्ली मेट्रो का परिचालन बाधित हुआ. लोग परेशान हो गए. पावर कट से सैकड़ों रेलगाड़ियों का संचालन ठप हो गया. इस वजह से उत्तर में कश्मीर से लेकर पूर्वी सीमा पर नगालैंड तक हजारों मील लंबी पटरियों पर यात्री फंस गए.

भारत के इतिहास में इससे पहले इस तरह का पावर कट शायद ही हुआ हो. करीब 15 घंटे तक बिजली गुल रही थी. देर शाम घर रोशन हुए तो कुछ देर बाद फिर बिजली गुल हो गई. फिर काफी मशक्कत के बाद स्थिति में सुधार हुआ था.

अस्पतालों में बैकअप सप्लाई के लिए काफी भीड़ रही. अधिकांश अस्पतालों ने वैकल्पिक व्यवस्था होने का दावा किया गया, फिर भी कई स्थानों पर स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुई थीं. पिछली बार जब साल 2001 में ग्रिड फेल हुआ था, तो आधी रात को आपूर्ति बंद हो गई थी और शाम 4:30 बजे तक सामान्य स्थिति बहाल हो सकी थी.

व्यवस्था पर सवाल उठे थे

लगातार दो दिन ब्लैकआउट ने भारत के बुनियादी ढांचे और देश की बढ़ती ऊर्जा की मांग को पूरा करने की सरकार की क्षमता के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा कर दी थीं. तत्कालीन बिजली मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने बिजली कटौती के लिए राज्यों को जिम्मेदार ठहराया था. उनका दावा था कि राज्य अपने आवंटित हिस्से से अधिक बिजली ले रहे थे.

उस समय कांग्रेस नेतृत्व वाली UPA की सरकार थी. इस भीषण पावर कट के बाद शिंदे को गृह मंत्री के पद पर पदोन्नत कर दिया था. मानव इतिहास के दो सबसे बड़े ब्लैकआउट के बाद केंद्र सरकार ने ऐसा किया था. शिंदे के बाद वीरप्पा मोइली ऊर्जा मंत्री बनाए गए थे.

इन स्थितियों के बाद व्यवस्था को लेकर सवाल उठे, कमेटी बनी, जिसने बताया कि 2012 के दौरान बिजली का कोई ऑडिट न होने की वजह से यह स्थिति पैदा हुई थी. इससे 48,000 मेगावॉट का नुकसान हुआ था. इतने बड़े स्तर पर पावर कट की वजह सभी स्टेशनों का काम न करना था. पावर फेलियर के दौरान महज चार सब स्टेशन ही काम कर रहे थे. लोड बढ़ा तो ग्रिड फेल हो गए थे.

अन्य देशों की बिजली कटौती

1. दूसरे देशों में हुई बड़ी बिजली कटौती की बात करें तो इंडोनेशिया में 2005 का बिजली संकट शामिल है, जिसमें ग्रिड समस्याओं के कारण कम से कम 10 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे.

2. एक और बड़ी कटौती 2009 में हुई थी, जब प्राकृतिक आपदा ने पैराग्वे और ब्राजील की सीमा पर एक जलविद्युत परियोजना को तबाह कर दिया था, जिससे लगभग 6 करोड़ लोगों की बिजली आपूर्ति बाधित हो गई थी.

3. 2008 की शुरुआत में चीन में एक बड़ी बिजली विफलता के कारण लगभग 4 लाख लोग बिना बिजली के रह गए थे.

-भारत एक्सप्रेस

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