अटल बिहारी वाजपेयी.
टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात, कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं.
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बाधाएं आती हैं आएं,
घिरें प्रलय की घोर घटाएं
पावों के नीचे अंगारे
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं
निज हाथों में हंसते हंसते
आग लगा कर जलना होगा,
कदम मिला कर चलना होगा.
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क्षमा करो बापू! तुम हमको
वचन भंग के हम अपराधी
राजघाट को किया अपावन
मंज़िल भूले, यात्रा आधी
जयप्रकाश जी! रखो भरोसा
टूटे सपनों को जोड़ेंगे
चिताभस्म की चिंगारी से
अंधकार के गढ़ तोड़ेंगे.
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ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िंदगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िंदगी-सिलसिला, आज-कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?
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भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाईं से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें, बुझी हुई बाती सुलगाएं
आओ फिर से दिया जलाएं
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वर्तमान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएं
आओ फिर से दिया जलाएं
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने नव दधीचि हड्डियां गलाएं
आओ फिर से दिया जलाएं.
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भारत जमीन का टुकड़ा नहीं
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघाएं हैं
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है
यह चंदन की भूमि है, अभिनंदन की भूमि है
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है
इसका कंकर-कंकर शंकर है
इसका बिंदु-बिंदु गंगाजल है
हम जिएंगे तो इसके लिए
मरेंगे तो इसके लिए.
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