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AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को बरकरार रखने के फैसले पर जमात-ए-इस्लामी हिंद ने कहा- यह हजारों संस्थानों के अल्पसंख्यक चरित्र को संरक्षित करेगा

जमात-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सदातुल्लाह हुसैनी ने कहा, यह हजारों ऐसे संस्थानों के अल्पसंख्यक चरित्र को संरक्षित करने के लिए बाध्य है, जिन्हें कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता था.

सैयद सदातुल्लाह.

जमात-ए-इस्लामी हिंद (Jamat-e-Islami Hind) के अध्यक्ष सैयद सदातुल्लाह हुसैनी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे को बरकरार रखने वाले सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है.

यह ऐतिहासिक फैसला है

सर्वोच्च न्यायालय ने एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में 1967 के फैसले, जिसमें कहा गया था कि किसी कानून द्वारा गठित कोई संस्थान अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा नहीं कर सकता, को खारिज करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. यह हजारों ऐसे संस्थानों के अल्पसंख्यक चरित्र को संरक्षित करने के लिए बाध्य है, जिन्हें कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता था और जिससे संविधान में मान्यता प्राप्त उनके शैक्षिक और सांस्कृतिक अधिकारों का गंभीर रूप से हनन हो सकता था. इस फैसले से देश में सभी धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण होगा.

एएमयू की स्थापना सर सैयद ने की

सैयद सदातुल्लाह हुसैनी ने  बयान में कहा कि, चूंकि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मामले को एक नियमित पीठ को सौंप दिया है ताकि यह जांच की जा सके कि विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की और इसके पीछे “दिमाग” किसका था. इसलिए एएमयू की अल्पसंख्यक स्थिति को न्यायालय द्वारा सुरक्षित रखा जाना चाहिए. यह स्थापित और निर्विवाद इतिहास है कि एएमयू की स्थापना सर सैयद अहमद खान ने अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के शैक्षिक उत्थान के लिए की थी.

सरकार अपना रवैया बदले

सैयद सदातुल्लाह ने कहा, हमें उम्मीद है कि सरकारें और स्थानीय अधिकारी यह समझेंगे कि अल्पसंख्यक, खास तौर पर मुसलमान, भारत का एक अहम हिस्सा हैं और शिक्षा, आजीविका, सुरक्षा और संरक्षा के मामले में उनके बुनियादी अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए. भारत में मुसलमानों ने लगातार देश के लिए सकारात्मक योगदान दिया है और उनके शिक्षण संस्थान जाति या धर्म के किसी भी भेदभाव के बिना छात्रों की सेवा करते हैं. सरकार को अपना रवैया बदलना चाहिए ताकि अल्पसंख्यकों को अपने मुद्दों को हल करने के लिए हमेशा अदालतों का दरवाजा खटखटाने की जरूरत न पड़े.

विकास एजेंडे में अल्पसंख्यकों को शामिल करें

सदातुल्लाह ने आगे कहा, सरकार को अपने विकास एजेंडे में अल्पसंख्यकों को सक्रिय रूप से शामिल करने के लिए पर्याप्त संवेदनशील होना चाहिए. यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें किसी भी भेदभाव का सामना न करना पड़े. विकास एजेंडे में उनके संस्थानों की सुरक्षा और उन्हें आवश्यक रियायतें देना, सकारात्मक कार्रवाई करना और उनकी गिरती सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए लाभ प्रदान करना जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं. धार्मिक अल्पसंख्यकों को ऐसे उपाय प्रदान करना किसी भी लोकतांत्रिक देश की विशेषता है.

-भारत एक्सप्रेस

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