महिला नागा साधु
Woman Naga Sadhu: हर साल की तरह इस बार भी प्रयागराज में माघ मेले की शुरुआत हो चुकी है. माघ पूर्णिमा के दिन से शुरु इस मेले का समापन महाशिवरात्रि के दिन होगा. इस दौरान देश-दुनिया के कोने-कोने से लोग यहां पर संगम स्नान करने आते हैं. इसके अलावा लाखों की संख्या में लोग कल्पवास करते हैं.
इस दौरान अलग-अलग अखाड़ों के संत और महात्मा भी यहां खास तिथियों पर आकर आस्था की डुबकी लगाते हैं. वहीं माघ मेले में आए नागा साधुओं को देखकर लोगों के अंदर एक जिज्ञासा की भावना बनी रहती है. वहीं महिला नागा साधुओं को देखकर यह जिज्ञासा काफी बढ़ जाती है.
महिला नागा साधुओं की दुनिया होती है अलग
जानकारी के अनुसार पुरुषों की तरह ही महिला नागा साधुओं की दुनिया भी काफी रोचक होती हैं. पुरुषों की तरह महिला नागा साधु भी सभी मोह माया को छोड़कर नागा जीवन व्यतीत करती हैं.
गृहस्थ जीवन से दूर महिला नागा साधुओं की दिन की शुरुआत ईश्वर की साधना से होती है. नागा महिला साधुओं का जीवन बड़ा जटिल होता है. नागा जीवन के कई नियमों का पालन इन्हें पुरुषों की तरह ही करना पड़ता है.
महिला नागा साधुओं के भी होते हैं अखाड़े
जानकारों के अनुसार साधु-संतों में नागा एक पदवी होती है. महिला नागा साधु बनने के बाद सभी उन्हें माता कहकर बुलाया जाता है. महिला नागा साधुओं के भी होते हैं अखाड़े.
इसी तरह के एक अखाड़े में माई बाड़ा नाम का अखाड़ा ऐसे है, जिसमें नागा महिला साधु होती हैं. इसे अब दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा का नाम दिया गया है. बताया जाता है कि साधुओं में तीन संप्रदाय होते हैं, वैष्णव, शैव और उदासीन. इन्हीं संप्रदायों के अखाड़े नागा साधु बनाते हैं.
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इस तरह बनती हैं महिला नागा साधु
नागाओं में जहां पुरुष नागा साधु नग्न रह सकते हैं, वहीं महिला नागा साधु को इस बात की इजाजत नहीं होती है. पुरुष नागा साधुओं की तरह महिलाओं को भी दीक्षा दी जाती है और नागा बनाया जाता है.
इनकी वेशभूषा में वह गेरुए रंग का सिर्फ एक कपड़ा पहन सकती हैं और महिला नागा साधुओं को अपने मस्तक पर तिलक लगाना जरूरी होता है. गेरुए रंग बिना सिले कपड़े को गंती कहा जाता है.
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